शिशिर कुमार सिन्हा
पटना: ‘आधार’ पर गतिरोध सामने देख केंद्रीय मानव संसाधन विभाग ने योजना को लेकर एक रिमाइंडर के जरिए लिखा कि जिन बच्चों का आधार नंबर नहीं है, उनके आधार पंजीयन के लिए स्कूल में ही प्रक्रिया कराई जाए। इसमें एक शर्त ये ऐसा छात्र किसी अन्य स्कूल से मिड-डे मील नहीं ग्रहण कर रहा हो। यानी एक बच्चे को एक ही जगह से मिड-डे मील मिलेगा।
इसके साथ ही आधार लिंक की प्रणाली जब पूरी तरह चालू हो जाएगी तो बायोमीट्रिक उपस्थिति भी संभव है। लेकिन, यह रिमाइंडर भी बिहार में मिड डे मील को आधार से नहीं जोड़ सका। निजी स्कूल अलग कारणों से विभिन्न स्रोतों के जरिए आधार कैंप लगवा कर बच्चों का कार्ड बनवा रहे हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों में इस तरह का प्रयास नहीं दिख रहा।
बायोमीट्रिक लागू होने का डर भी कारण
आधार योजना के लागू होने से स्कूलों में एक तरह से बायोमीट्रिक उपस्थिति हो जाएगी। इस निगरानी से बचने के लिए शिक्षा और मिड डे मील प्रोजेक्ट से जुड़े हर स्तर के अधिकारी कई तरह के गतिरोधों की आशंका बताते हुए आधार योजना की फाइल को धूल के हवाले कर रहे हैं। बिहार में ज्यादातर जिलों में स्कूल प्रबंधन के पास ही मिड डे मील योजना का काम है। बेगूसराय, वैशाली, गया, नालंदा, जमुई और चंपारण के पांच से 10 प्रतिशत स्कूलों में एनजीओ के जरिए मिड डे मील की सप्लाई हो रही है।
एनजीओ संचालक भी कह रहे हैं कि सरकारी तंत्र आधार कार्ड को लागू कराने के लिए प्रयासरत नहीं है। बच्चों का आधार कार्ड बनवाने के लिए हर जिले में प्रयास किया जा सकता है, लेकिन करीब डेढ़ साल से इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है। नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर एक एनजीओ के वरिष्ठ अधिकारी ने कहो ‘जिन स्वयंसेवी संगठनों की ऊपर तक पहुंच है, वह यह पता करने में लगे हैं कि आखिर आधार की अनिवार्यता को लेकर वस्तुस्थिति क्या है।’
दरअसल, केंद्रीय मानव संसाधन विभाग ने पिछले साल जुलाई-अगस्त तक लगातार आधार पंजीयन को लेकर ताकीद भरी चिट्ठी राज्य को भेजी, लेकिन उसके बाद से सबकुछ ठंडे बस्ते में है। आधार योजना लागू होने से एनजीओ का मिड डे मील में मार्जिन घटेगा, साथ ही स्कूल प्रबंधन के पास भी उलटफेर करने की गुंजाइश नहीं बचेगी।
सरकारी महकमा भी कहां चाहता है आधार से जुड़ाव
केंद्र सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि आधार से जोड़े जाने के कारण कई योजनाओं में फर्जीवाड़ा खत्म हुआ है और सरकारी पैसों की भारी बचत हो रही है। बिहार के परिप्रेक्ष्य में मिड-डे मील के तहत ऐसी ही बात तय है। अगर मध्याह्न भोजन के लाभार्थियों को आधार से लिंक किया जाता है और बायोमीट्रिक उपस्थिति की प्रक्रिया लागू होती है तो अरसे से चला आ रहा उपस्थिति का बड़ा खेल पकड़ा जाएगा। ऐसी बातें कई बार सामने आ चुकी हैं और हर स्तर पर अधिकारी भी वाकिफ हैं कि ज्यादा उपस्थिति दिखाकर कागज पर भोजन की आपूर्ति दिखाकर एनजीओ भी खेल करते हैं और स्कूल भी।
एनजीओ से भी भोजन लेने पर उपस्थिति पंजी पर अधिकार के बहाने स्कूल के जिम्मेदार कमाई करते हैं। स्कूल जहां खुद खाना पकाता है, वहां अनाज बेचे जाने की भी खबरें आती रही हैं। कुल मिलाकर आधार लिंक से वास्तविक उपस्थिति का खुलासा होने का खतरा रहेगा और अगर ऐसा हुआ तो बिहार में ड्रॉप आउट के आंकड़े में भी बड़ा फेरबदल संभव है। अब तक मध्याह्न भोजन के आधार पर स्कूलों में उपस्थिति अच्छी दिखाई जाती रही है, लेकिन अगर यह आंकड़ा सही से निकलने लगा तो शिक्षा की वास्तविक तस्वीर भी सामने आने का डर रहेगा। इसी डर के कारण अधिकारी कभी उपस्थिति को लेकर बात नहीं करना चाहते थे और अब आधार पंजीयन पर गतिरोध की वजह पूछे जाने का सवाल टाल रहे हैं।