केलुचरण महापात्र: एक सच्चा कला प्रेमी, जिसने विलुप्त नहीं होने दी 'ओड़िसी'
महापात्र एक सच्चे कला प्रेमी थे। कहा जा है कि वो पूरी तरह से ओड़िसी नृत्य में डूबे हुए थे। जब ओड़िसी नृत्य विलुप्त होने की कगार पर पहुंची तो वो केलुचरण महापात्र ही थे, जिन्होंने ओड़िसी को पुनर्जीवित किया।
लखनऊ: आज हम आपको एक ऐसी शख्सियत से रुबरु कराने वाले हैं, जिन्होंने एक नई शास्त्रीय नृत्य शैली का पुनर्विस्तार किया था। एक ऐसे सच्चे कला प्रेमी से जो भले ही इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी कला अभी भी लाखों दिलों में जिंदा है। आज हम आपको गुरु केलुचरण महापात्र (Kelucharan Mohapatra) के बारे में बताने जा रहे हैं। आज देश में उनकी जन्मतिथि मनाई जा रही है। इस मौके पर हम आपको उनके बारे में कुछ खास बातें बताने वाले हैं-
ऐसा रहा केलुचरण महापात्र का बचपन
केलुचरण महापात्र बचपन में अपनी उम्र के बच्चों से काफी ज्यादा परिपक्व थे। 8 जनवरी 1926 को उड़ीसा के रघुराजपुर में जन्मे केलुचरण मोहपात्रा ने बेहद छोटी सी उम्र में ढोल बजाना, पेंट करना, चित्र बनाना, जैसी कलाएं सीख ली थीं। जब केलुचरण केवल नौ साल के छोटे बच्चे थे, तो वो गोतिपुआ मंडलियों और लोक नाटकशाला समूहों में भाग लेने लगे।
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ओड़िसी को किया था पुनर्जीवित
महापात्र एक सच्चे कला प्रेमी थे। कहा जा है कि वो पूरी तरह से ओड़िसी नृत्य में डूबे हुए थे। जब ओड़िसी नृत्य विलुप्त होने की कगार पर पहुंची तो वो केलुचरण महापात्र ही थे, जिन्होंने ओड़िसी को पुनर्जीवित किया। बता दें कि ओड़िसी ओड़िसा की एक शास्त्रीय नृत्य शैली है। साल 1994 में उन्होंने ओडिसी नृत्य का छात्रों को प्रशिक्षण देने के लिए एक संगठन ‘श्रीजन’ की स्थापना कर दी। ताकि ये नृत्य शैली विलुप्त ना हो।
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इन सम्मान से नवाजे जा चुके हैं महापात्र
ओड़िसी नृत्य में उनके योगदान को आज भी सराहा जाता है। इसी योगदान के लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्म श्री (1972), पद्म भूषण (1989), पद्म विभूषण (2000) और कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया था। कालिदास सम्मान उन्हें मध्य प्रदेश की सरकार की ओर से दिया गया था। यहीं नहीं उन्हें सम्मानित करने के लिए साल 1995 में गुरु केलुचरण मोहपात्र पुरस्कार की स्थापना भी की गई थी। इस पुरस्कार को कला के क्षेत्र में योगदान के लिए दिया जाता है।
आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं केलुचरण
ओड़िसी को एक नया जीवन देने वाले गुरु केलुचरण मोहपात्र का 7 अप्रैल 2004 को उड़ीसा के भुवनेश्वर में निधन हो गया। लेकिन आज भी वो अपने कला और कला में दिए योगदान के चलते लोगों के दिलों में जिंदा हैं।
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