Bishnoi Samaj Aur Kala Hiran: बिश्नोई समाज और काले हिरण का क्या है कनेक्शन

Bishnoi Samaj Aur Kala Hiran Connection: गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई गैंग बॉलीवुड एक्टर सलमान खान की जान के पीछे पड़ा है। ये मामला काला हिरण के शिकार के बाद शुरू हुआ था। आइए जानें विस्तार में।

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2024-11-13 09:15 IST

Bishnoi Samaj Aur Kala Hiran (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Bishnoi Community Aur Black Deer: गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान (Salman Khan) की जान लेना चाहता है। यह बात कई सालों से हम सुनते आ रहे हैं। हाल ही में सलमान खान को सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये जान से मारने की धमकी (Salman Khan Death Threat) दी गयी और कहा गया कि सलमान यदि पूरे बिश्नोई समाज (Bishnoi Samaj) से सबके सामने माफी मांग लेते हैं तो उन्हें छोड़ दिया जायेगा। लॉरेंस बिश्नोई खुद जेल में है, लेकिन वहीं से सारे गुनाहों को अंजाम देता है। वो अपना गैंग (Lawrence Bishnoi Gang) कई सालों से जेल से ही चला रहा है।

गलती से मारे गए बाबा सिद्दीकी (Baba Siddique Murder)

लॉरेंस बिश्नोई ने बयान जारी करते हुए कहा कि सलमान खान (Salman Khan) की मदद करने वाले लोगों को छोड़ा नहीं जाएगा। बाबा सिद्दीकी तो बस एक बहाना है। आपको बता दें हाल ही में एनसीपी के क़द्दावर नेता बाबा सिद्दीकी की सारेराह गोली मार कर हत्या कर दी गई थी, जिसकी जिम्मेदारी लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने ली थी। बयान जारी करते हुए लॉरेंस बिश्नोई ने कहा कि अगला निशाना सलमान खान होगा। जिसके बाद से सलमान की सुरक्षा बढ़ा दी गयी है।

क्या है मामला (Lawrence Bishnoi Aur Salman Khan Ki Kya Dushmani Hai In Hindi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दरअसल 1998 में ‘हम साथ साथ हैं’ फिल्म की शूटिंग के दौरान राजस्थान के जोधपुर में सलमान और अन्य को-स्टार ने एक काले हिरन का शिकार किया था। 2006 में सलमान खान को आरोपी मानते हुए 1 साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन कुछ समय बाद सलमान खान को बरी कर दिया गया। जिसके बाद से लॉरेंस गैंग सलमान खान की जान के पीछे हाथ धो के पड़ गया है। 1998 में जब यह मामला हुआ तब लॉरेंस की उम्र सिर्फ 5 साल थी। लेकिन बड़े होते- होते लॉरेंस ने सलमान खान से बदला लेने का निश्चय किया।

पर सोचने वाली बात ये है कि आखिर एक काले हिरण के पीछे पूरा बिश्नोई समाज क्यों सलमान खान के खिलाफ है। आइये जानते हैं बिश्नोई समाज और काले हिरण का कनेक्शन (Bishnoi Samaj Aur Kala Hiran Ka Connection In Hindi)।

बिश्नोई समाज और काले हिरण का कनेक्शन (Connection Between Bishnoi Community And Kala Hiran In Hindi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

कहते हैं बिश्नोई समाज वर्षों से जीव जंतु और प्रकृति को भगवान की तरह पूजते आये हैं। बिश्नोई समाज में काले हिरण को कृष्ण के रूप में जाना माना जाता है। इसलिए काले हिरण बिश्नोई समाज में पूजनीय होते हैं। इस समाज की एक और खास बात यह होती है कि इस समाज की महिलाएं अपना दूध काले हिरण को पिलाती हैं। ऐसी कई घटनाएं इतिहास में हुई हैं जो बिश्नोई समाज का जीव जंतु और प्रकृति के प्रति समर्पण और प्रेम को दर्शाते हैं।

बिश्नोई समाज प्रकृति को अपना आराध्य मानते हैं और समय आने पर सभी अपनी जान की परवाह किए बिना प्रकृति की रक्षा भी करते हैं। इन्हें प्रकृति का संरक्षक भी कहा जाता है। हमने इतिहास में ऐसे उदाहरण देखे हैं, जहां पर कई बिश्नोई समाज के लोगों ने प्रकृति के प्रति अपना प्रेम दिखाया है। आपने मेधा पाटकर (Medha Patkar) का नाम सुना होगा जो कि पर्यावरण संरक्षण के लिए आज भी लड़ रही हैं, उनके जैसे बहुत से लोग हैं जो अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आ रहे हैं।

550 साल पुराना है यह रिश्ता

कहते हैं बिश्नोई समाज 550 सालों से काले हिरण को अपने आराध्य मानते आ रहे हैं। बिश्नोई समाज प्रकृति और प्रकृति से जुड़े सभी चीजों को आराध्य मानते हैं।

बिश्नोई समाज क्या है (About Bishnoi Community In Hindi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

इस समाज की स्थापना गुरु जंभेश्वर महाराज जिन्हें जंभाजी भी कहते हैं, ने 15वीं शताब्दी में की थी। बिश्नोई समाज किसी तरह के धर्म को नहीं मानता बल्कि यह 29 निर्देशों पर चलने वाला एक समुदाय है। इन 29 धर्मादेशों (बिश = 20 और नोई = 9) का अनुपालन करने वालों को ही बिश्नोई कहा गया। जो पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है और जीव जंतु की रक्षा करना अपना दायित्व समझता है। यहां तक कि पर्यावरण की रक्षा करने के लिए मेरे बेटे को भी तैयार रहना आवश्यक समझता है। यहां तक कि महिलाएं अपने स्तन का दूध दान देने से नहीं चूकती हैं और काले हिरण को अपना स्तन का दूध पिलाती हैं। लोककथाओं के अनुसार जंभाजी को काले हिरण के अवतार के रूप में आदर किया जाता है।

चिपको आंदोलन की शुरुआत (Chipko Andolan Kya Hai In Hindi)

1730 में खेजलड़ी गांव के पास पेड़ों को बचाने के लिए 362 बिश्नोईयों ने अपनी जान की कुर्बानी दे दी। दरअसल, यहां के राजा को अपने महल बनवाने के लिए लकड़ियों की आवश्यकता हुई, जिसके लिए उन्होंने मजदूरों को जंगल में भेजा पर बिश्नोई समाज के लोगों ने पेड़ को काटने से मना कर दिया और इसे बचाने के लिए 362 लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी। इसी समय अमृता देवी नाम की महिला आगे आईं और उन्होंने पेड़ से लिपटकर इसका विरोध किया।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अमृता के इस पहल से बाकी लोगों को भी हिम्मत मिली और धीरे-धीरे कई लोग वहां के अलग अलग पेड़ों को जकड़ कर खड़े हो गए। जब राजा के लोगों ने देखा कि गांव वाले इन पेड़ों से हट नहीं रहे हैं तो उन्होंने कुल्हाड़ियों से पेड़ पर वार किया और इस दौरान जो लोग पेड़ से चिपके थे उनकी भी मौत हो गई।

इस पूरी घटना में अमृता देवी की तीन बेटियों ने भी पेड़ को बचाने के दौरान अपनी जान गवां दी। खबरों के मुताबिक, उस वक्त राजा के कारिंदों ने एक एक करके लगभग 362 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। साल 1973 में यही चिपको आंदोलन ने उग्ररूप ले लिया। उनके साथ सभी बिश्नोई समाज एकजुट होकर सामने आए। यह नरसंहार जोधपुर के राजा अभय सिंह (Marwar Ke Raja Abhai Singh) के निर्देश पर हुआ। हालांकि जब इस नरसंहार की खबर राजा तक पहुंची तो उन्होंने खेजड़ी के पेड़ों को काट के लाने का अपना ये आदेश तुरंत वापस ले लिया और आदेश जारी किया कि मारवाड़ में कभी खेजड़ी के पेड़ नहीं काटे जाऐंगे। तब से लेकर आज तक इस इलाके में खेजड़ी के पेड़ नहीं काटे जाते हैं।

इतिहास में भी जा चुकी है कई जानें

साल 1604 में रामसरी गांव में कर्मा और गोरा नाम की दो बिश्नोई महिलाएं थीं, इन दोनों ने खेजड़ी पेड़ों को कटने से बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। ठीक ऐसी ही एक कहानी साल 1643 के समय की है, उस वक्त बुचोजी नाम के एक बिश्नोई ग्रामीण ने होलिका दहन के लिए खेजड़ी पेड़ों को काटे जाने का विरोध करते हुए जान दे दी थी।

बाजरा और पानी का प्रबंध

काले हिरण और चिंकारा भले ही जंगली जीव हैं, लेकिन इनका रहन-सहन सदियों से बिश्नोई समाज के साथ रहा है। जिसकी वजह से थार के शुष्क भागों में काले हिरण और चिंकारा मानव बस्तियों का एक अनिवार्य हिस्सा रहे हैं। कहते हैं सूर्यास्त होने के बाद लोग बेसब्री से इंतजार करते थे ताकि वह इन जंतुओं को आसानी से खिला सके और उनके पानी और बाजरा का प्रबंध कर सके। एक शोध की रिपोर्ट में रेगिस्तान के भाग को नखलिस्तान कहा गया है जिसमें काले हिरण बेखौफ घूमते हैं। यहां पेड़ बहुत आयात में है सूखे की स्थिति होने पर बाजरा और पानी का प्रबंध इन जंतुओं के लिए किया जाता है।

दिनचर्या का हिस्सा

बिश्नोई समुदाय के अनुसार, काले हिरणों की सेवा करना और उन्हें रक्षा देना एक धार्मिक कर्तव्य है। जो कि रोजाना दिनचर्या का हिस्सा है।

राज्य पशु है ब्लेकबग

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

ब्लैक बक यानी काला हिरण या भारतीय मृग, कृष्णमृग बहुसिंगा की एक प्रजाति है। ये बहुसिंगा प्रजाति की इकलौती जीवित प्रजाति है। इसका जूओलॉजिकल नाम एंटीलोप सर्विकपारा है। भारतीय उपमहाद्वीप में इसकी चार प्रजातियां पाई जाती हैं। अपने घुमावदार सींगों के कारण ये सुंदर हिरणों में एक है। नर तीन से चार घुमाव वाले सींग और गहरे भूरे या काले रंग का जबकि मादा बिना सींग के पीलापन लिए भूरे रंग की होती है। यह राजस्थान का राज्य-पशु भी है।

जहां बिश्नोई समाज पर्यावरण और जीवों के प्रति दया करो और संरक्षण का भाव रखता है। वहीं लॉरेंस बिश्नोई जैसे गैंग इस समुदाय को बदनाम करते हैं और समाज में डर का माहौल बनाने की कोशिश करते हैं।

(लेखिका प्रख्यात स्तंभकार हैं।)

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