सेना व होम मिनिस्ट्री का पेंचः जवानों में अंतर, मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े भाजपा नेता व सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट अजय अग्रवाल ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले सशस्त्र बल के कर्मियों के पेंशन लाभ में विसंगतियों व भेदभाव को दूर करने का आग्रह किया गया है।

Update: 2020-10-23 13:43 GMT
सेना व होम मिनिस्ट्री का पेंचः जवानों में अंतर, मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

रायबरेली, 23 अक्टूबर:- रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े भाजपा नेता व सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट अजय अग्रवाल ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले सशस्त्र बल के कर्मियों के पेंशन लाभ में विसंगतियों व भेदभाव को दूर करने का आग्रह किया गया है। ‘हमारा देश, हमारे जवान ट्रस्ट’ की तरफ से यह याचिका ने दायर की है तथा ट्रस्ट की और से ट्रस्टी सुश्री भावना शर्मा द्वारा हलफनामा प्रस्तुत किया है | गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले इन सभी सशस्त्र बलों के जवानों की कुल संख्या पंद्रह लाख के करीब है जबकि रक्षा मंत्रालय के अधीन आने वाले तीनों सशस्त्र बलों – थल सेना, वायु सेना व जल सेना की कुल संख्या बारह लाख है |

कर्मचारी के वेतन से हिस्सा कटता है

याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने नयी अंशदायी पेंशन योजना की शुरुआत की और यह एक जनवरी 2004 से लागू हुई। 22 दिसम्बर, 2003 को जारी अधिसूचना के माध्यम से सरकार ने पेंशन योजना को भागीदारी वाला बना दिया जिसमें कर्मचारी के वेतन से हिस्सा कटता है। एडवोकेट अजय अग्रवाल के मार्फत दायर याचिका में कहा गया है, कि ‘‘केंद्र सरकार गृह मंत्रालय के तहत आने वाले और एक जनवरी 2004 के बाद सेवा में आने वाले सशस्त्र बल के कर्मियों के लिए हाइब्रिड पेंशन योजना लागू कर रही है, जो पुरानी और नयी पेंशन योजना का मिश्रण है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन यह नयी अंशदायी पेंशन योजना भारत सरकार के सशस्त्र बलों पर लागू नहीं होती है।’’

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केंद्र सरकार कोई कार्यवाही नहीं कर रही

एडवोकेट अजय अग्रवाल ने याचिका में आगे कहा है कि गृह मंत्रालय के तहत आने वाले सशस्त्र बलों के लिए 6 अगस्त, 2004 को स्पष्टीकरण जारी किया गया था कि ये सभी गृह मंत्रालय के तहत केंद्र के सशस्त्र बल हैं। गृह मंत्रालय के तहत आने वाले सशस्त्र बलों में बीएसएफ, आईटीबीपी, सीमा सुरक्षा बल, असम राइफल्स, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ तथा एनएसजी शामिल हैं। याचिका में कहा गया है कि गृह मंत्रालय के तहत आने वाले सशस्त्र बलों के हर कर्मी पुरानी योजना के तहत पेंशन पाना चाहते हैं लेकिन केंद्र सरकार कोई कार्यवाही नहीं कर रही है, ‘‘और इस प्रकार गृह मंत्रालय के तहत आने वाले सशस्त्र बलों के साथ भेदभाव हो रहा है जबकि गृह तथा रक्षा मंत्रालय दोनों के अधीन आने वाले बल केंद्र के ही सशस्त्र बल हैं तथा गृह मंत्रालय के अधीन सशस्त्र बलों का कार्य किसी भी प्रकार से रक्षा मंत्रालय के अधीन आने वाले सशस्त्र बलों से कम नहीं है |

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सशस्त्र पैरामिलिट्री फ़ोर्स

एडवोकेट अजय अग्रवाल ने आगे कहा है कि बॉर्डर सिक्यूरिटी फ़ोर्स, इंडो तिब्बत सीमा पुलिस, सशस्त्र सीमा बल और असम रायफल्स दिन रात हमारी सीमाओं की रक्षा करते रहते हैं और रक्षा करते हुए आये दिन इनके जवान वीरगति को प्राप्त होते हैं | सवा तीन लाख जवानों वाली केन्द्रीय रिजर्व पुलिस फ़ोर्स विश्व की सबसे अधिक संख्या वाली सशस्त्र पैरामिलिट्री फ़ोर्स है जो हमारी सीमाओं के पीछे रहती है तथा देश के आतंकवादियों से मुकाबला करती है | अभी पुलवामा में इसी सी.आर.पी.एफ. के चालीस जवानों ने शहादत दी थी और आये दिन इस बल के जवान देश के खातिर अपनी जान न्योछावर करते हैं | एडवोकेट अजय अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देते हुए कहा है कि पेंशन इन सशस्त्र बलों का अधिकार है और रिटायरमेंट के बाद जीवन की संध्या में एक सम्मानित एवं गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए यह बेहद जरूरी है |

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पुरानी पेंशन योजना को बहाल करें

याचिका में एडवोकेट अजय अग्रवाल ने अंत में कहा है कि गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले सशस्त्र बलों के प्रति विसंगति व भेदभाव केंद्र सरकार की स्वयं की नीति के विरुद्ध है जोकि केंद्र सरकार के 22 दिसम्बर, 2003 व 6 अगस्त, 2004 के आदेशों से स्पष्ट होता है | याचिका में कहा गया है कि कई बार आवेदन देने के बावजूद सरकार ने कुछ भी नहीं किया है, इसलिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय, गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले सशस्त्र बलों के प्रति विसंगति व भेदभाव को समाप्त करते हुए उनके लिए भी वही पुरानी पेंशन योजना को बहाल करें जो कि रक्षा मंत्रालय के अधीन सशस्त्र बलों के लिए मान्य की गयी है |

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