Caste Census:आरएसएस की हरी झंडी, जानिए क्या कर सकती है मोदी सरकार

Caste Census: जातीय जनगणना का मुद्दा अब तुल पकड़ता जा रहा है। विपक्षी इंडिया ब्लॉक के नेताओं से लेकर एनडीए में शामिल कई दल भी जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि इस मुद्दे पर असमंजस में फंसी बीजेपी को क्या संघ के स्टैंड ने अब रास्ता दिखा दिया है?

Update: 2024-09-04 02:38 GMT

Caste Census ( Pic- Social- Media) 

Caste Census: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने लगभग डेढ़ साल से देश में जातीय जनगणना की मांग को लेकर मोर्चा खोल रखा है। वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, आरजेडी के तेजस्वी यादव जैसे नेता भी इस मामले को लेकर काफी मुखर हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान से लेकर उत्तर प्रदेश में अपना दल (सोनेलाल) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल तक जातीय जनगणना की मांग के साथ खड़े दिख रहे हैं।


हाल ही में ओबीसी कल्याण को लेकर संसदीय कमेटी की हुई बैठक में जब विपक्षी दलों ने जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया तब जेडीयू ने भी इस मांग का समर्थन किया था। जेडीए एनडीए के साथ सरकार में शामिल है। अब यहां यह साफ हो गया है कि जातीय जनगणना एक ऐसा मुद्दा है जिसे लेकर सालों बाद अब बीजेपी और मोदी सरकार न सिर्फ विपक्ष का बल्कि अपने सहयोगियों का भी दबाव झेल रही हैं। हालांकि इस मुद्दे पर न ही बीजेपी और न ही मोदी सरकार ने ना तो हां किया है और ना ही इससे इनकार किया है।


जातीय जनगणना के मुद्दे पर इसी असमंजस में फंसी बीजेपी को अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्टैंड ने आगे का रास्ता दिखा दिया है। बीजेपी भी अब जातीय जनगणना करना पर अपनी हामी भर सकती है। दरअसल, केरल के पलक्कड़ में तीन दिन तक चली समन्वय बैठक के बाद संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने जातिगत प्रतिक्रियाओं को संवेदनशील मुद्दा बताया। उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रीय एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण है। यही नहीं उन्होंने जातीय जनगणना के समर्थन का संकेत देते हुए यह भी कहा कि इसका इस्तेमाल चुनाव प्रचार और चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। संघ से हरी झंडी मिलने के बाद अब जातीय जनगणना की गेंद बीजेपी के पाले में है। अब देखना यह होगा कि क्या बीजेपी इस पर फ्रंट फूट पर खिलेगी या बैकफूट पर ही रहेगी।


बीजेपी के सामने यह असमंजस

जातीय जनगणना कराने को लेकर बीजेपी की दुविधा ये है कि अगर जातीय जनगणना कराने का ऐलान कर दिया तो कहीं स्थापना के समय से ही उसका कोर वोटर रहा ब्राह्मण और सवर्ण के साथ ही एससी-एसटी वोटर भी नाराज न हो जाए। वहीं अगर वो जातीय जनगणना नहीं कराती है तो कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समीकरणों की वजह से बीजेपी के साथ आया ओबीसी वोटर ना छिटक जाए। यही वजह रही है कि अब तक बीजेपी न कराएंगे, ना विरोध करेंगे की नीति पर चलती आ रही है।


राज्य चाहें तो अपने स्तर से करा सकते हैं-अमित शाह

खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी यह कह चुके हैं कि बीजेपी जातीय जनगणना की विरोधी नहीं है। राज्य चाहें तो अपने स्तर पर जातीय जनगणना करा सकते हैं। जातीय जनगणना पर अब संघ का ताजा स्टैंड इस मुद्दे पर बीच का रास्ता बताया जा रहा है।


यूपी-बिहार के ओबीसी वोट की मजबूरी

जातीय जनगणना को लेकर बिहार में सबसे पहले आवाज उठनी शुरू हुई थी। बिहार में जातीय जनगणना की मांग को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में जिस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी, उसमें बिहार बीजेपी के नेता भी शामिल थे। जातीय जनगणना हो या आरक्षण की सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव, बीजेपी ने इसका समर्थन भले ही न किया हो लेकिन कभी इसका खुलकर विरोध भी नहीं किया। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश और बिहार की नॉन यादव ओबीसी जातियों पर अपना फोकस किया और एक हद तक इसमें वह सफल भी रही। लेकिन हाल ही में हुए 2024 लोकसभा चुनाव में जातीय जनगणना के मुद्दे पर सपा और आरजेडी जैसी पार्टियां यूपी-बिहार में ओबीसी वर्ग के बीच अपना आधार बढ़ाने में काफी हद तक सफल रही थीं। माना जा रहा है कि जातीय जनगणना से अब बीजेपी के लिए बचना मुश्किल होगा यानी पार्टी जल्द ही जातीय जनगणना पर कोई बीच का फॉर्मूला ला सकती है।


सरकार क्यों कर सकती है जातीय जनगणना का ऐलान

जातीय जनगणना को लेकर अब तक न्यूट्रल स्टैंड दिखाती आई बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार संघ के ग्रीन सिग्नल के बाद इस पर अब अपना स्टैंड बदल सकती है। अब बात यहां यह है कि सरकार क्यों जातीय जनगणना का ऐलान कर सकती है, तो इसे यहां कुछ पॉइंट्स से समझा जा सकता है।


ओबीसी विरोधी का टैग हटाने की कोशिश

बता दें कि अनमुनों के मुताबिक देश में ओबीसी की आबादी सबसे अधिक है वह लगभग पूरी जनसंख्या की आधी है। बिना ओबीसी वर्ग के समर्थन के किसी भी दल के लिए केंद्र या राज्य की सत्ता तक पहुंचा बड़ा मुश्किल है। वहीं इस मुद्दे को लेकर विपक्ष बीजेपी को लेकर ओबीसी विरोधी का नैरेटिव गढ़ने की कोशिश में लगा है। अब बीजेपी ओबीसी विरोधी का टैग हटाने, ओबीसी वोटबैंक को अपने पाले में बनाए रखने की कोशिश में जातीय जनगणना करा सकती है।


विपक्ष से इस मुद्दे को छीनने की रणनीति

अब बीजेपी की रणनीति यह भी हो सकती है कि जातीय जनगणना कराने का ऐलान कर इस मुद्दे को ही खत्म कर दिया जाए जिसे लेकर विपक्ष उसे हर समय घेर रहा है। लेकिन यहां बीजेपी के सामने एक रिस्क यह भी है कि इसका क्रेडिट कहीं विपक्ष ही लेकर न चला जाए। वहीं संघ के रुख को लेकर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट इसी तरफ संकेत कर रहा है। लालू ने एक्स पर पोस्ट कर कहा है कि इनसे उठक-बैठक करवाकर जातीय जनगणना कराएंगे।


रोहिणी कमीशन के बैकफायर करने का खतरा

साल 2017 में आरक्षण लाभ के न्यायसंगत वितरण को लेकर गठित रोहिणी कमीशन को जातीय जनगणना के दांव की काट का हथियार माना जा रहा था। रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट आती, उससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी वर्ग में कोटा के भीतर कोटा को लेकर टिप्पणी पर जिस तरह सियासी हंगामा बरपा, बीजेपी को भी यह लग रहा है कि कहीं ये बैकफायर न कर जाए। रोहिणी कमीशन के जरिये ओबीसी में सबकैटेगरी बनाने की ही तैयारी थी।

क्या हासिल करना चाहता है विपक्ष?

यह पहली बार नहीं है जब जातिगत जनगणना की मांग उठ रही है। देश में जातिगत जनगणना की मांग दशकों पुरानी है। जातिगत जनगणना का मक़सद अलग-अलग जातियों की संख्या के आधार पर उन्हें गवर्नमेंट सर्विस में आरक्षण देना और ज़रूरतमंदों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाना बताया जाता है। लेकिन इसके पीछे राजनीति भी बड़ी वजह है।

माना जाता है कि बीजेपी को इस तरह की जनगणना से यह डर है कि इससे अगड़ी जातियों के उसके वोटर नाराज़ हो सकते हैं, इसके अलावा बीजेपी का परंपरागत हिन्दू वोट बैंक इससे बिखर सकता है।

विपक्ष की मांग

जातियों की जनसंख्या के मुताबिक़ आरक्षण की मांग सबसे पहले 1980 के दशक में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम ने की थी। यूपी की समाजवादी पार्टी भी जातिगत जनगणना की मांग करती रही है। वहीं जब जातिगत जनगणना की बात आती है तो अक्सर बहुत सी चिंताएं और सवाल भी उठ खड़े होते हैं। इनमें से एक सबसे बड़ी चिंता ये है कि इसके आंकड़ों के आधार पर देशभर में आरक्षण की नई मांग शुरू हो जाएगी।

हिन्दू वोट बैंक पर असर?

जातिगत जनगणना के साथ एक नारा भी लगाया जाता है जिसकी जितनी संख्या भारी.. उसकी उतनी हिस्सेदारी।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली में पिछड़े, दलितों और आदिवासियों के विकास के लिए जातिगत जनगणना की मांग की थी और यही नारा लगाया था। यही नहीं राहुल गांधी ने 2011 जातिगत जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक करने और पिछड़े वर्ग, दलितों और आदिवासियों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण देने की मांग भी की थी। दरअसल जातिगत संख्या के आधार पर आरक्षण की मांग कर विपक्ष दलितों और पिछड़ों के बड़े वोट को अपने पक्ष में लाना चाहता है। इससे बीजेपी के कथित हिन्दू वोट बैंक को भी कमज़ोर किया जा सकता है। विपक्ष संख्या के आधार पर सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी की बात करता है। जबकि दूसरी तरफ यह भी आरोप लगाता है कि सरकार नौकरियों में कटौती कर रही है।

जनगणना का क्या है इतिहास?

भारत में जनगणना कराने की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान साल 1872 में की गई थी। अंग्रेज़ों ने 1931 तक जितनी बार भी भारत की जनगणना कराई, उसमें जाति से जुड़ी जानकारी को भी दर्ज किया गया। आज़ादी के बाद भारत ने जब 1951 में पहली बार जनगणना की तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया। तब से लेकर भारत सरकार ने नीतिगत फ़ैसले के तहत जातिगत जनगणना से हमेशा परहेज़ किया है। लेकिन 1980 के दशक में कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय हुआ जिनकी राजनीति जाति पर आधारित थी। इन दलों ने तथाकथित ऊंची जातियों के वर्चस्व को चुनौती देने के साथ-साथ तथाकथित निचली जातियों को सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण दिए जाने को लेकर अभियान शुरू किया।

1979 में मंडल कमीशन का गठन किया गया

भारत सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के मसले पर 1979 में मंडल कमीशन का गठन किया था। मंडल कमीशन ने ओबीसी श्रेणी के लोगों को आरक्षण देने की सिफ़ारिश की थी। लेकिन इस सिफ़ारिश को 1990 में लागू किया जा सका। इसके बाद देशभर में सामान्य श्रेणी के छात्रों ने उग्र विरोध प्रदर्शन किया था। चूंकि जातिगत जनगणना का मामला आरक्षण से जुड़ चुका था, इसलिए समय-समय पर राजनीतिक दल इसकी मांग उठाने लग गए। आख़रिकार 2010 में बड़ी संख्या में सांसदों की मांग के बाद यूपीए की सरकार इसके लिए राज़ी हुई थी। जुलाई 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि 2011 में की गई सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना में हासिल किए गए जातिगत आंकड़ों को जारी करने की उसकी कोई योजना नहीं है। सरकार के मुताबिक़ इस जनगणना में कई तरह की विसंगतियां थीं। अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी मोदी सरकार से इसे सर्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं।

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