आस्था एवं आकर्षण का केंद्र सुखानद चैत्य
भारतीय धर्म संस्कृति हमेशा से ही पाश्चात्य संस्कृति में रचे बसे लोगों को अपनी तरफ आकर्ष्ति करती चली आई है।
दुर्गेश पार्थ सारथी
भारतीय धर्म संस्कृति हमेशा से ही पाश्चात्य संस्कृति में रचे बसे लोगों को अपनी तरफ आकर्ष्ति करती चली आई है। पुरातन समय का यवन आक्रमणकारी सिकंदर रहा हो या मध्यकाल का मुगल आक्रमणरी बाबर या आधुनिक युग के ब्रिटिश हुक्मरान, इस सभी में भारतीय धर्मों की आध्यात्मिकता भरी वाणी, शांतिमय साधना-आराधना एवं इनमें छिपे सुखमय जीवन के रहस्यों को जानने की ललक रही है। यही कारण रहा है कि आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व चीनी यात्रियों ह्वेनसांग, फाह्यान एवं इतिसांग ने तत्तकालीन राजाओं के समय में समूचे भारत की यात्रा की ओर यहां की आध्यातिम्कता रूपी गुलाब की सुगंध अपने देशों में फैलाई।
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सदियों पूर्व आध्यात्मिकता का एक ऐसा ही पुष्प खिला था बौद्ध धर्म, जिसकी खुशबू आज भी विश्व के सभी देशों में अपनी तरफ खींचती चली आ रही है। जीवन-मृत्यु के रहस्य की खोज में निकले तथागत भगवान बुद्ध की अमृतबाणि से प्रीाावित हो हम भारतीयों की कौन कहं, विदेशी भी इस तरह मंत्रमुग्ध हुए कि अपनी मातृभूति को छोड़ तथागत के जीवन से जुड़े कालचक्र के हाथों खंडहरों में तब्दील हो एन स्मारकों में सांसारिक बंधनों को झुठला आध्यात्मिकता की मशाल जलाए हुए हैं। जिनसे आज सारा विश्व प्रकाशमान हो रहा है।
बौद्ध धर्म से जुड़ा ऐसा ही एक अति महत्वपूर्ण स्मरक हैं कुशीनगर जहां बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध ने अपने जीवन की आखिरी सांस ली और यहीं पर उनकी देह पंचतत्व में विलीन हुई । भगवान बुद्ध की स्मृति में मन:शांति की खोज में आए विश्व के विभिन्न देखों के बौद्ध अनुयायियों द्वारा एक से बढ़ कर एक चिताकर्षक मंदिरों का निर्ताण कराया गया है। इन्हीं मंदिरों में से एक है संथा जी (सुखानद चैत्य) चैत्य। दूर से ही दृष्टिगोचर होता 108 फुट ऊंचा सुनहरे आवरणों वाला यह मंदिर म्यांमार के बौद्ध भिक्षुओं की अनोखी कृति है जो संभवत: भारत भूमि पर अपनी तरह का अनोखा मंदिर है।
निर्माण में 10 करोड़ आया था खर्च
कुल 108 फुट व्यास वाले इस वृत्ताकार मंदिर के अंदर म्यांमार से लाई गयी लगभग छह फुट ऊंची सुनहरे रंग की पीतल की एक अति आकर्षक प्रतिमा स्थपित की गयी है। इस प्रतिमा के अतिरिक्त भी भगवान बुद्ध के जीवन चरित्र से जुड़ी कई और मूर्तियां प्रतिष्ठित की गई हैं। सात वर्ष के अथक परिश्रमके बावजूद अस्तित्व में आए इस चैत्य के निर्माण खर्च हुए १० करोड़ रुपयों को भारतीय और अन्य देशों के बौद्ध भिक्षुओं एवं धर्म परायण लोगों के सहयोग से एकत्रित किया था।
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108 फुट ऊंचा है मंदिर का शिखर
ओसेट की धार्मिक पवित्रता को बनाए रखने के लिए इस मंदिर को घेरते हुए एक चारदीवारी का निर्माण किया गया है। जिसमें लगभग चारों दिशाओं मकें खुलते चार अलंकृत दरवाजे मंदिर की भव्यता में चार चांद लगाते हैं। नीले अंबर की ओर निहारता इस मंदिर का 108 फुट ऊंचा गगनचुम्बी शिखर शायद यह बताने की कोशिश करता है कि दुनिया वालों यह देखों, यह है अहिंसा के पजारी, शांति के अग्रदूत 'सर्वे भवुंतु सुखिन-, सर्वे संतु निरामया:' का संदेश देता भगवान बुद्ध के अनुयायियों का आराध्य स्थल।
शिखर पर लगे हैं सैकड़ों एयर बेल
मंदिर के ऊंचे खिर से बंधें सैकड़ों की संख्या में एयर बेल (हवा के झोंको से तरंगित होती घंटी) जिनके साथ मदमस्त सोंधी माटी की सुगंध लिए हवा का झोंका जब अठखेलियां करता है तो कुशीनगर की पिफजा में प्रकृति वीणा की मधुर झंकार सुनाई देती है। इस मनोरम ध्वनि को मन श्रद्धालुओं/पर्यटकों का रोम-रोम पुलकित हो उठता है।
महाबोधि मंदिर में हैं ध्यान मुद्रा में बुद्ध
घुंघरुओं सी खनक पैदा करते इस मंदिर के साथ ही स्थित है महाबोधि सरोवर। सुंदर तटों से युक्त इस सरोवर की कारसेवा देश-विदेश -विदेश के अनेक बौद्ध भिक्षुओं, धर्मपरायण लोगों ने की। तालब के मध्य में छत्रयुक्त ऊंचे सिंहासन पर आसीन हैं संगमरमर की ध्यान मुद्रा में स्थित भगवान बुद्ध की सुंदर आकृति जिसके मुखमंडल पर गजब की शांति दिखाई देती है। जिन्हें पर्यटक अपलक नेत्रों से निहारते रहते हैं।
कुशी नगर की प्राचीनता एंव महत्ता के बारे में बताते हुए बर्मा निवासी बौद्ध भिक्षु प्रो: युगनायक कहते हैं कि पुराने समय में कुशीनगर 12 योजन लंबा एवं 8 योजन चौड़ा था जो मल्ल राजाओं के अधिकार क्षेत्र में आता था। इसी स्थान पर तथागत भगवान बुद्ध ने अपने पार्थव शीरर का त्याग बुद्ध पूर्णिमा के दिन 483 में किया था।
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अग भदंत की इच्छा के अनुरूप बना मंदिर
सुखानद चैत्य के निर्माण के बारे में वह कहते हैं यह बौद्ध भिक्षु अग्ग भदंत ज्ञानेश्वर की इच्छा थी कि क्यों न यहां पर एक ऐसे बौद्ध मंदिर का निर्माण करवाया जाए जो भारत भूमि में अपनी तरह का एक अनोखा मंदिर हो। क्यों, पूरी दुनिया में यह एक ऐसा देश है जहां अपने-पराए का भेद नहीं है।
भगवान बुद्ध की यादों को संजोए आज समूचे विश्व के आकर्षण का केंद्र बिंदु बना कुशीनगर उत्तर प्रदेश गोरखपुर जिला मुख्यालय से करीब 51 किमी की दूरी पर 28 राष्ट्रीय राजमार्ग पर व देवरिया जिला मुख्यालय से 35 किमी उत्तर की तरफ स्थित है। यहां सड़क मार्ग से पहुंचने की उत्तम व्यवस्था है।