बिक रही सरकारी कंपनियां! मोदी गर्वमेंट ने तैयार किया ये बड़ा प्लान
अधिकारी ने कहा कि अगले तीन-चार साल में सरकार की शीर्ष प्राथमिकता निजीकरण की है। ये संभव है। इसके लिए कंपनी कानून की धारा 241 में संशोधन करने की जरूरत होगी।
नई दिल्ली: जहां एक तरफ देश कथित आर्थिक मंदी से जूझ रहा है। एक के बाद एक कंपनियां बंद होती जा रही हैं। देश में लगातार बेरोजगारी बढ़ रही है। वहीं अब मोदी सरकार ने कुछ सरकारी कंपनियों को बेचने की पूरी तैयारी कर ली है।
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सरकार का मानना है कि सरकारी कंपनियों के निजीकरण से हालात सुधरेंगे। वित्त मंत्रालय के एक सीनियर अफसर ने निजीकरण को सरकार की मुख्य प्राथमिकता बताते हुए कहा कि जो भी बिक सकता है उसे बेचा जाएगा।
कई कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम करेगी सरकार
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सरकार कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी प्रतिशत भी कम करेगी। सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी से नीचे लाने के लिए कानून में कुछ संशोधन करने की जरूरत होगी। साथ ही इससे यह भी सुनिश्चित किया जा सकेगा कि ये कंपनियां केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) और नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के नियंत्रण दायरे से बाहर आ सकें।
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मंत्रिमंडल में लिया जाएगा बड़ा फैसला
अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्व में सार्वजनिक उपक्रमों में कम से कम 51 फीसदी हिस्सेदारी रखने का फैसला किया था। अब मंत्रिमंडल को ही इस हिस्सेदारी को इससे नीचे लाने पर फैसला करना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार चुनिंदा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों में अपनी इक्विटी हिस्सेदारी 51 फीसदी से नीचे लाने की योजना बना रही है।
कंपनी कानून की धारा 241 में संशोधन की तैयारी
अधिकारी ने कहा कि अगले तीन-चार साल में सरकार की शीर्ष प्राथमिकता निजीकरण की है। ये संभव है। इसके लिए कंपनी कानून की धारा 241 में संशोधन करने की जरूरत होगी। उन्होंने कहा, 'इसके लिए हमें प्रधानमंत्री का पूरा समर्थन है। उस समर्थन के जरिये मुझे पूरा भरोसा है कि जो भी बिक सकता है उसे बेचा जाएगा, जो नहीं बिकने योग्य है उसे भी बेचने का प्रयास किया जाएगा।'
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सरकार की शीर्ष प्राथमिकता निजीकरण
अधिकारी ने यह भी माना कि इस मामले में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अवरोध खड़े किए जाएंगे। लेकिन सरकार ने अपना मन बना लिया है। उन्होंने कहा कि 70 साल पुरानी मानसिकता को छोड़ना इतना आसान नहीं है। जो भी सार्वजनिक उपक्रमों के शीर्ष पर बैठे हैं वह अपना नियंत्रण नहीं छोड़ना चाहते हैं। लेकिन सरकार निजीकरण को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
ऐसे में यदि सरकार निजीकरण की तरफ बढ़ती है तो विरोध निश्चित है। इसके विरोध में आम आदमी भी सड़कों पर उतर सकते हैं।