आगजनी वाला ये आंदोलनः 19 को दी गई मौत की सजा, 172 को मिली लंबी सजा

विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, उसे नष्ट करने या फूंक देने को आज आंदोलन का हिस्सा माना जाता है। इस दौरान कितने लोग मर जाते हैं कितने घायल होते हैं, इसकी कोई गिनती ही नहीं है। आंदोलन को उत्पात मचाने, अराजकता फैलाने का जरिया समझने वालों को महात्मा गांधी की इस बात से सबक लेना चाहिए

Update:2020-02-05 17:50 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

क्या आप गोरखपुर के चौरी चौरा कस्बे को जानते हैं। क्या आपको पता है कि महात्मा गांधी अहिंसा के सिद्धांतो के प्रति कितना अडिग थे। अपने अहिंसा के व्रत का कितनी कट्टरता के साथ पालन करते थे। इसकी एक मिसाल है, स्वतंत्रता आंदोलन की ये घटना। जब गांधीजी के आंदोलन के दौरान हिंसा से क्षुब्ध होकर वापस लिया था आंदोलन, रखा था पांच दिन का उपवास।

विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, उसे नष्ट करने या फूंक देने को आज आंदोलन का हिस्सा माना जाता है। इस दौरान कितने लोग मर जाते हैं कितने घायल होते हैं, इसकी कोई गिनती ही नहीं है।

आंदोलन को उत्पात मचाने, अराजकता फैलाने का जरिया समझने वालों को महात्मा गांधी की इस बात से सबक लेना चाहिए। महात्मा गांधी ने अपने आंदोलन के दौरान हिंसा होने पर अपने देशव्यापी आंदोलन को ही वापस ले लिया था।

जलियांवाला बाग कांड के विरोध में हुई शुरुआत

1919 में जलियांवाला बाग कांड के बाद 31 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ देशव्यापी शांतिपूर्ण और अहिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत की थी।

इस आंदोलन को पूरे देश में व्यापक समर्थन मिला था। जगह-जगह इसके समर्थन में लोग सड़कों पर उतर आए थे। लोगों ने विदेशी हुकूमत के प्रति अपना आक्रोश जताने के लिए सार्वजनिक परिवहन को छोड़ दिया, विदेशी सामान, विदेशी कपड़ों को खरीदना बंद कर दिया, स्थानीय स्तर पर तैयार किए गए सामानों को खरीदना शुरू कर दिया। जगह-जगह विदेशी सामानों की होली जलाई।

गांधी की अपील का व्यापक असर

गांधी की अपील से प्रभावित लोगों ने सरकारी दफ्तर और फैक्ट्रियों को छोड़ दिया। वकीलों ने कोर्ट को छोड़ दिया। विदेशी हुकूमत द्वारा संचालित स्कूलों, पुलिस, सेना से लोगों ने खुद को अलग करके आजादी की लड़ाई में कूदने का फैसला कर लिया।

असहयोग आंदोलन के दौरान। पूरा देश उबल रहा। लेकिन उन्हें गाइड करने के लिए गांधी का अहिंसा का हथियार था। अहिंसा की सीमा रेखा के रक्षक महात्मा गांधी थे। लेकिन अचानक चौरी चौरा कांड हो गया। इस कांड ने आंदोलन की दिशा ही बदल दी।

चौरी चौरा कांड के दौरान हिंसा होने पर लोगों का विरोध दरकिनार कर महात्मा गांधी ने अपना यह आंदोलन वापस ले लिया। घटना से व्यथित गांधी प्रायश्चित स्वरूप अनशन पर बैठ गए। उन्होंने कहा कि मैं अहिंसा के अपने सिद्धांतों से किसी कीमत पर समझौता नहीं कर सकता। गांधी की घोषणा का विश्वव्यापी असर हुआ। क्योंकि तब तक गांधी के नेतृत्व में देश की आजादी की मांग को तकरीबन पूरे विश्व का समर्थन मिलने लगा था। गांधी देश की आजादी का प्राणाधार थे। लेकिन हिंसा की एक घटना ने गांधी को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया।

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क्या था चौरी चौरा कांड?

यूनाइटेड प्रोविंस के गोरखपुर जिले में चौरी चौरा नामक स्थान पर यह घटना हुई। उत्तर प्रदेश का नाम उस समय यूनाइटेड प्राविन्स था। 5 फरवरी 1922 को प्रदर्शनकारियों का एक विशाल समूह असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेते हुए यहां पुलिस से भिड़ गया जिसमें गोलियां भी चलीं। प्रदर्शनकारियों के जवाबी हमले में थाने को आग लगा दी गई।

इस संघर्ष में 3 नागरिक और 22 पुलिसकर्मी मारे गए। क्योंकि महात्मा गांधी किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ थे। इसलिए इस घटना से क्षुब्ध होकर 12 फरवरी 1922 को। उन्होंने अपने इस आंदोलन को वापस ले लिया। 5 फरवरी का महत्व जैसा कि लोग बताते हैं। यह घटना तो 4 फरवरी 1922 को हुई थी लेकिन वहां के तत्कालीन जिलाधिकारी ने इस घटना को रिपोर्ट 5 फरवरी को किया, जिसके चलते इतिहास में चौरी चौरा कांड के लिए 5 फरवरी का दिन ही दर्ज हो गया।

और भीड़ ने पुलिस वालों को जिंदा फूंक दिया

चौरी चौरा कांड की घटना में 2 फरवरी 1922 को सत्याग्रहियों ने असहयोग आंदोलन के दौरान प्रदर्शन किया। जिन्हें स्थानीय पुलिस ने पीट कर खदेड़ दिया। कई नेता गिरफ्तार किए गए। चोरी चोरा थाने में बंद कर दिए गए। इसकी प्रतिक्रिया में पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन का आह्वान किया गया।

5 फरवरी को करीब 2 से ढाई हजार प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए। भीड़ ने पुलिस स्टेशन के सामने जमा हो के नारे लगाना शुरू किया वह अपने नेताओं की रिहाई की मांग कर रहे। पुलिस ने हवाई फायरिंग शुरू की जिस पर आंदोलनकारियों ने पथराव शुरू कर दिया। स्थिति नियंत्रण से बाहर जाते देख एक भारतीय दरोगा में फायरिंग का आदेश दिया, जिसमें 3 नागरिक मारे गए और कई घायल हुए।

पुलिस के इस कदम से आंदोलनकारी उत्तेजित हो गए। और उन्होंने थाने पर हमला कर दिया। उन्होंने थाने को आग लगा दी इस अग्निकांड में थाने के अंदर मौजूद सभी पुलिसकर्मी मारे गए। इस घटना में 22-23 पुलिस वालों की मौत हुई।

सदमे में गांधी हुए गिरफ्तार

इस घटना के बाद ब्रितानिया हुकूमत ने मार्शल ला लगा दिया। तमाम जगह छापे डाले गए। लोगों को गिरफ्तार किया। महात्मा गांधी 5 दिन के अनशन पर बैठ गए, उन्होंने अपना आंदोलन स्थगित कर दिया। गांधी को यह लग रहा था उनका अहिंसा का शस्त्र विफल हुआ है? इस बीच महात्मा गांधी को भी गिरफ्तार किया गया। और उन्हें 6 साल की सजा दी गई। फरवरी 1924 में खराब स्वास्थ्य के आधार पर उन्हें रिहा किया गया।

इनको मिली सजा

चौरी चौरा कांड में 228 लोगों पर मुकदमा चला। जिसमें से 6 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हो गई। जबकि 172 लोगों को फांसी पर लटकाने का आदेश हुआ। इसका व्यापक पैमाने पर विरोध हुआ और इसे विधिक हत्या की संज्ञा दी गई। बाद में 20 अप्रैल 1923 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस निर्णय की समीक्षा की और 19 लोगों को मृत्यु की सजा की पुष्टि की। 110 लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी। अन्य दोषियों को भी लंबी सजा का फैसला सुनाया गया।

 

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