Chhattisgarh Reservation: छत्तीसगढ़ शैक्षणिक संस्थाओं में 58 फीसदी कोटा हुआ लागू

Chhattisgarh Reservation: यह फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस साल मई में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के मद्देनजर आया है।

Update:2023-08-08 10:25 IST
Chhattisgarh Reservation (photo: social media )

Chhattisgarh Reservation: छत्तीसगढ़ में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। और ठीक उससे पहले कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में एडमिशन के लिए अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को 58 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया है।

यह फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस साल मई में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के मद्देनजर आया है। शीर्ष अदालत ने राज्य को पहले से मौजूद आरक्षण प्रणाली के अनुसार नियुक्ति या चयन प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी है।

मामला आरक्षण का

पिछले साल सितंबर में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में 58 प्रतिशत आरक्षण को "असंवैधानिक" बताते हुए रद्द कर दिया था। दरअसल, 2012 में रमन सिंह सरकार के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में कोटा 58 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था। इसमें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 16 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया, जबकि अनुसूचित जनजाति के लिए इसे बढ़ाकर 32 प्रतिशत कर दिया गया था और ओबीसी के लिए कोटा 14 फीसदी रखा गया था। ये मामला हाई कोर्ट में पहुंचा जहां 2022 में हाईकोर्ट ने यह कहते हुए आदेश को रद्द कर दिया कि 50 प्रतिशत से अधिक कोई भी आरक्षण असंवैधानिक है। इसके बाद मामले की अपील सुप्रीम कोर्ट में की गई।

उच्च न्यायालय के फैसले के कारण, एससी/एसटी समुदायों के लिए आरक्षण कोटा घटाकर अविभाजित मध्य प्रदेश के स्तर पर कर दिया गया था। यह एसटी के लिए 20 प्रतिशत कोटा था जिसके कारण आदिवासी समुदायों ने विरोध प्रदर्शन किया। आदिवासी समुदायों के बीच नाराजगी के बीच, भूपेश बघेल सरकार ने दिसंबर 2022 में राज्य विधानसभा में दो विधेयक पारित किए। इन विधेयकों का लक्ष्य अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 32 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) को 13 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को 4 प्रतिशत तक बढ़ाना है। इस कदम से राज्य में कुल आरक्षण बढ़कर 76 प्रतिशत हो जाता। विधेयकों को छत्तीसगढ़ की तत्कालीन राज्यपाल अनुसुइया उइके को उनकी मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया गया था। हालाँकि, उन्होंने अभी तक अपनी सहमति नहीं दी है और बिल तब से लंबित हैं।

राजनीतिक विवाद

राज्यपाल की मंजूरी में देरी से राज्य में राजनीतिक विवाद छिड़ गया। सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने राज्यपाल पर भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए जानबूझकर विधेयकों को रोकने का आरोप लगाया है। भाजपा ने इन आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि राज्यपाल उचित प्रक्रिया का पालन कर रही हैं।

इस बीच मई 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी कर हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। इसने राज्य सरकार को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को कुल मिलाकर 58 प्रतिशत - एसटी के लिए 32 प्रतिशत, एससी के लिए 12 प्रतिशत और ओबीसी के लिए 14 प्रतिशत - बहाल करने की अनुमति दे दी।

छत्तीसगढ़ सरकार ने कहा है कि अंतरिम आदेश के अनुसार, भूपेश बघेल कैबिनेट ने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश प्रक्रिया को पूर्व आरक्षण प्रणाली के तहत आयोजित करने का निर्णय लिया है।

भर्तियां भी शुरू

एडमिशन प्रोसेस के अलावा, 58 फीसदी आरक्षण के तहत भर्तियाँ भी पहले ही शुरू हो चुकी हैं। दरअसल, जो आरक्षण प्रक्रिया नौकरी भर्ती में लागू होती है वही प्रवेश प्रक्रिया में भी होनी चाहिए। इसलिए, यह निर्णय कैबिनेट में लिया गया।

इस बीच विपक्षी भाजपा ने दावा किया है कि भूपेश सरकार ने आदिवासी समुदायों के हित में उनकी लगातार मांग को मान लिया है। भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता और राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम ने कहा कि सीएम राजनीतिक लाभ या हानि को ध्यान में रखकर निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन हमारे विरोध और आदिवासियों के अधिकारों की मांग के कारण कैबिनेट का फैसला मजबूरी में लिया गया।

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