नागरिकता बिल: पूर्वोत्तर पर क्या होगा असर, क्या है डर, जानें यहां सब कुछ

मचे सियासी संग्राम के बीच नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा में पास हो गया है। अब इसे राज्यसभा में पास होने की पूरी संभावना है। इस बिल को लेकर पूर्वोत्तर की जनता के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में इन सवालों के जवाब दिए।

Update: 2019-12-10 11:41 GMT

नई दिल्ली: मचे सियासी संग्राम के बीच नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा में पास हो गया है। अब इसे राज्यसभा में पास होने की पूरी संभावना है। इस बिल को लेकर पूर्वोत्तर की जनता के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में इन सवालों के जवाब दिए। उन्होंने इस बिल पर कहा कि नागालैंड का अधिकतर हिस्सा इनरलाइन परमिट सिस्टम से प्रोटेक्टेड है वह चालू रहेगा, मिजोरम में भी लागू नहीं होगा, मणिपुर को भी हम इनर लाइन परमिट सिस्टम में ला रहे हैं, क्योंकि मणिपुर घाटी की जनता लंबे समय से इसकी मांग कर रही है।

अमित शाह ने कहा कि त्रिपुरा में एडीसी क्षेत्र में यह लागू नहीं होगा। मेघालय पूरा छठी अनुसूची में है और उसपर भी असर नहीं होगा। अमित शाह ने कहा कि असम का जहां तक सवाल है अधिकतर एडीसी को नागरिकता बिल से बाहर रखा गया है और जो असम का मूल प्रदेश है वहां छठी अनुसूची के तहत प्रोटेक्टेड है। पूरी पूर्वोत्तर की जनता को कहना चाहता हूं कि सभी राज्यों की चिंता का निराकरण इस बिल में समाहित है, कोई उकसावे में मत आना, कोई आंदोलन मत करना, बहुत हो चुका, अब यह देश शांति से आगे बढ़ना चाहता है।

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इसके बावजूद नागरिकता संशोधन बिल को लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों में विरोध प्रदर्शन हो रहा है। असम के गुवाहाटी में छात्र संगठनों ने सड़कों पर उतर कर विरोध किया। असम के फिल्म एक्टर भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।

असम में नागरिकता संशोधन बिल को लेकर बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने मंगलवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल 2019 के पारित होने का स्वागत किया है। उन्होंने इसे 'ऐतिहासिक क्षण' बताया है।

अमित शाह ने सदन में मणिपुर को इनरलाइन परमिट के तहत लाने का ऐलान कर दिया है। अब इस तरह पूर्वोत्‍तर के तीन राज्‍य अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और मणिपुर पूरी तरह से नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के दायरे से बाहर हो गए हैं।

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इन इलाकों में नहीं होगा लागू

नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 छठी अनुसूची के तहत आने वाले तीन आदिवासी इलाकों (बीटीसी, कर्बी-अंगलोंग और दीमा हसाओ) के अलावा असम के सभी हिस्सोंक पर लागू होगा। इन आदिवासी इलाकों पर स्वालयत्ता जिला परिषदों का शासन है। नागालैंड (दीमापुर को छोड़कर जहां नर लाइन परमिट लागू नहीं है), मेघालय (शिलांग को छोड़कर) और त्रिपुरा (गैर आदिवासी इलाकों को छोड़कर जो संविधान की छठी अनुसूची में शामिल नहीं हैं) को नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के प्रावधानों से कमोबेश छूट मिली हुई है। तो वहीं पूर्वोत्तर के तीन राज्यन अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और मणिपुर पूरी तरह से नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के दायरे से बाहर हो गए हैं। इन राज्यों में इनर लाइन परमिट की व्यवस्था है। मणिपुर में अब तक इसकी जरूरत नहीं थी, लेकिन नागिरकता संशोधन विधेयक में मणिपुर को भी इनर लाइन परमिट के दायरे में ले आया गया है।

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इस बात का डर

असम के लोगों को विरोध इस बात से है कि बांग्लादेश से बड़ी संख्या में पहले से राज्य में घुसे लोग अब नागरिकता पा जायेंगे. इससे असम को लोगों को अपनी पहचान, भाषा और संस्कृति खो जाने का खतरा सता रहा है. असम में विशेषकर आदिवासी बहुल क्षेत्रों में नागरिकता बिल का ज्यादा विरोध है.

जानिए क्या है इनर लाइन परमिट

इनर लाइन परमिट ईस्टर्न फ्रंटियर विनियम 1873 के अंतर्गत जारी किया जाने वाला एक ट्रैवल डॉक्युमेंट है। भारत में भारतीय नागरिकों के लिए बने इनर लाइन परमिट के इस नियम को ब्रिटिश सरकार ने बनाया था। इसके बाद देश आजाद होने के के बाद समय-समय पर फेरबदल कर इसे जारी रखा गया है। यह मुख्यत: दो तरह का होता है। पहला, पर्यटन की दृष्टि से बनाया जाने वाला एक अल्पकालिक इनर लाइन परमिट। दूसरा, नौकरी, रोजगार के लिए दूसरे राज्यों के नागरिकों के लिए बनाया जाने वाला इनर लाइन परमिट।

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नागिरकता बिल की प्रमुख बातें

-यह बिल पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर प्रताड़ित होने वाले छह गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों-हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, पारसी व -ईसाइयों को भारत की नागरिकता देने से जुड़ा है।

-नागरिकता कानून 1955 में बदलाव किया जा रहा है। प्रस्ताव के मुताबिक अगर अल्पसंख्यक एक साल से लेकर 6 साल तक शरणार्थी बनकर भारत में रहें हैं, तो उन्हें भारत की नागरिकता दे दी जाएगी।

-पहले 11 साल रहने पर नागरिकता मिलती थी। अवैध तरीके से प्रवेश करने के बावजूद नागरिकता पाने के हकदार रहेंगे।

-इस बिल में नागरिकता मिलने की बेस लाइन 31 दिसंबर 2014 रखी गई है। यानी इस अवधि के बाद इन तीन देशों से आने वाले अल्पसंख्यकों को 6 साल तक भारत में रहने के बाद नागरिकता मिल जाएगी।

-नॉर्थ ईस्ट के राज्यों के लिए छूट का अलग से प्रावधान किया गया है।

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