राहुल ने कुरेदा सिंधिया का दर्द, असंतुष्टों को भी बड़ा संदेश देने की कोशिश

राहुल ने सिंधिया के बहाने पार्टी के असंतुष्टों को भी बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की है। उन्होंने असंतुष्टों को यह बताने की कोशिश की है कि अगर वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाएंगे तो उनका क्या हाल होने वाला है।

Update: 2021-03-09 04:32 GMT
राहुल ने कुरेदा सिंधिया का दर्द, असंतुष्टों को भी बड़ा संदेश देने की कोशिश (PC: social media)

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया की दुखती रगों पर हाथ रखा है। भारतीय युवा कांग्रेस के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए राहुल ने भाजपा में सिंधिया की भूमिका पर करारा तंज कसा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में रहने के दौरान सिंधिया निर्णायक भूमिका अदा करने की स्थिति में थे मगर भाजपा में जाने के बाद भी बैकबेंचर हो गए हैं।

राहुल ने सिंधिया के बहाने पार्टी के असंतुष्टों को भी बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की है। उन्होंने असंतुष्टों को यह बताने की कोशिश की है कि अगर वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाएंगे तो उनका क्या हाल होने वाला है।

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ज्योतिरादित्य सिंधिया को नहीं मिल रहा ज्यादा महत्व

मध्य प्रदेश के सत्ता बदलाव में बड़ी भूमिका अदा करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा में शामिल होने के बाद अभी तक सार्वजनिक रूप से कोई शिकायत नहीं की है मगर सियासी हलकों में यह चर्चा तैरती रही है कि सिंधिया को वह महत्व नहीं मिल पा रहा है जिसके वे हकदार हैं। हालांकि भाजपा की ओर से उन्हें राज्यसभा का सदस्य जरूर बना दिया गया है मगर पार्टी के फैसलों में उनकी ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका नहीं दिख रही है।

rahul gandhi and jyotiraditya scindia (PC: social media)

बीजेपी में जाकर बने बैकबेंचर

यूथ कांग्रेस के कार्यक्रम में राहुल ने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में किस ऊंचाई पर थे मगर आज वह कहां बैठे हैं। भाजपा ने उन्हें पिछली सीट पर जगह दे रखी है जबकि कांग्रेस में वे हमारे साथ बैठा करते थे और पार्टी के फैसलों में उनकी बड़ी भूमिका हुआ करती थी।

भाजपा में नहीं बनेंगे कभी सीएम

राहुल ने कहा कि एक मुलाकात के दौरान मैंने सिंधिया से कहा भी था कि आप मेहनत कीजिए। आने वाले समय में आप निश्चित रूप से मुख्यमंत्री की भूमिका में होंगे। कांग्रेस नेता ने कहा कि सिंधिया के सामने कांग्रेस में कार्यकर्ताओं के साथ काम करते हुए पार्टी को मजबूत बनाने का विकल्प था मगर उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। आज भाजपा में उनकी हालत किसी से छिपी हुई नहीं है।

भाजपा में उनको कभी वह महत्व नहीं मिला जो कांग्रेस पार्टी में मिला करता था। राहुल गांधी ने पूरे दावे के साथ कहा कि मुझसे लिखकर ले लीजिए, वह भाजपा में कभी मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। उन्हें वापस कांग्रेस में आना ही होगा।

इस कारण छोड़ी थी कांग्रेस

उन्होंने पिछले साल 9 मार्च को कांग्रेस से इस्तीफा दिया था। वे पार्टी में अपने स्थान को लेकर असहज और असंतुष्ट थे और इसी कारण उन्होंने भाजपा मुख्यालय में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में भाजपा की सदस्यता ले ली थी।

सिंधिया के गिनती कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में होती थी और उन्होंने करीब 18 वर्षों तक कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पार्टी छोड़ते समय उनका यह कहना था कि मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार ने किसानों और युवाओं के साथ किए गए वादों को पूरा नहीं किया है और इस कारण वे पार्टी से इस्तीफा दे रहे हैं।

राहुल गांधी ने सिंधिया की दुखती रगों पर रखा हाथ

सिंधिया के बारे में खुले रूप से चर्चा करके और राहुल गांधी ने एक बार फिर उनकी दुखती रगों पर हाथ रखा है। इसके साथ ही सिंधिया की चर्चा करके राहुल ने पार्टी के उन असंतुष्टों को भी संदेश देने की कोशिश की है जो एक बार फिर सिर उठाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। हालांकि सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने के बाद कभी अपने दर्द को खुले रूप से बयान नहीं किया है मगर जानकारों का मानना है कि भाजपा में उनकी वह महत्वपूर्ण भूमिका नहीं है जो कांग्रेस में हुआ करती थी। पार्टी के बड़े फैसलों में भी उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं दिखती।

jyotiraditya scindia (PC: social media)

सियासी फायदा नहीं उठा सके सिंधिया

हालांकि वे अपने कुछ समर्थकों को मध्यप्रदेश में मंत्री बनवाने में जरूर कामयाब हो गए हैं, लेकिन भाजपा की राष्ट्रीय सियासत में उनको वह कद नहीं हासिल हो पाया जिसकी उन्हें उम्मीद रही होगी।

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पार्टी के कई विधायकों ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था

उनकी बगावत के बाद ही पार्टी के कई विधायकों ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था जिसकी वजह से कमलनाथ की सरकार गिर गई थी। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो गए और सिंधिया को अपने कुछ समर्थकों को मंत्री बनवाने के सिवा कुछ भी हासिल नहीं हुआ।

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