Congress President: नेता जो बने कांग्रेस अध्यक्ष लेकिन नहीं था गांधी सरनेम

Congress President: देश जब 1947 में आजाद हुआ था, उस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष जेबी कृपलानी हुआ करते थे। तो आइए एक नजर कांग्रेस के उन अध्यक्षों पर डालते हैं, जिनके नाम में गांधी सरनेम नहीं लगा हुआ था।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2022-08-26 17:43 IST

Congress President: नेता जो बने कांग्रेस अध्यक्ष लेकिन नहीं था गांधी सरनेम

Congress President: जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र में कांग्रेस की कई सरकारों में काम कर चुके दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे (Ghulam Nabi Azad resignation) ने कांग्रेस के अंदरूनी खींचतान को एकबार फिर बाहर ला दिया है। साल 2014 में बड़े अंतर से चुनाव हारकर सत्ता गंवानी वाली देश की यह ग्रैंड ओल्ड पार्टी 8 साल बाद भी वापसी के लिए जद्दोजहद करती नजर आ रही है। इस दरम्यान कई वरिष्ठ और युवा चेहरे पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं और ये सिलसिला कब तक चलेगा, इसका अंदाजा कांग्रेस नेताओं को भी नहीं है।

साल 2019 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha 2019) में मिली अपमानजनक पराजय के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था। तब से सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर पार्टी चला रही हैं। कांग्रेस में पूर्णकालिक अध्यक्ष की नियुक्ति न होने को लेकर गांधी परिवार सीनियर नेताओं के निशाने पर है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के अध्यक्ष बनने से इनकार किए जाने के बाद अब गांधी परिवार से बाहर के किसी शख्स को इस पद पर बैठाने की तैयारी चल रही है।

हालांकि, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और कमलनाथ जैसे क्षत्रप वर्तमान सियासी हालातों को देखते हुए दिल्ली आने के बजाय अपने राज्यों में ही रहना चाहते हैं। जिससे कांग्रेस की इस कवायद को भी झटका लगा है। कांग्रेस में पूर्व में भी ऐसे नेता हुए हैं जिन्होंने गांधी सरनेम न होते हुए भी अध्यक्ष का पद संभाला है। देश जब 1947 में आजाद हुआ था, उस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष जेबी कृपलानी हुआ करते थे। तो आइए एक नजर कांग्रेस के उन अध्यक्षों पर डालते हैं, जिनके नाम में गांधी सरनेम नहीं लगा हुआ था।


जेबी कृपलानी (JB Kriplani)

जेबी कृपलानी (JB Kriplani) जो बाद में आचार्य कृपलानी के नाम से मशहूर हुए एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ – साथ शिक्षक भी थे। खालिस गांधीवादी, सादगी के प्रतीक कृपलानी की एक बड़ी पहचान ये भी है कि उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित होने के बाद जेबी कृपलानी साल 1946 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। कृपलानी के संबंध गांधी परिवार से अच्छे नहीं रहे। पंडित नेहरू से मनमुटाव के कारण उन्होंने पार्टी तक छोड़ दी। चीन के साथ युद्ध में भारत की अपमानजनक हार के बाद उन्होंने संसद में नेहरू सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाया था, जो कि लोकसभा के इतिहास में लाया गया पहला अविश्वास प्रस्ताव था। कृपलानी पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की भी कड़ी मुखालफत किया करते थे।


पट्टाभि सीतारमैया (Pattabhi Sitaramayya)

पट्टाभि सीतारमैया (Pattabhi Sitaramayya) दक्षिण भारत से आने वाले एक जाने माने कांग्रेस नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। 1942 की ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन में वो भी जेल गए थे। साल 1948 में जेबी कृपलानी का कार्यकाल खत्म होने के बाद पंडित नेहरू के समर्थन से सीतारमैया आजाद भारत में कांग्रेस के दूसरे अध्यक्ष बने। वो 1950 तक इस पद पर रहे।


पुरूषोत्तम दास टंडन (Purushottam Das Tandon)

भारत रत्न से सम्मानित पुरूषोत्तम दास टंडन (Purushottam Das Tandon) साल 1950 में पट्टाभि सीतारमैया का कार्यकाल समाप्त होने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए मैदान में थे। उस समय उनके सामने थे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष जेबी कृपलानी। बताया जाता है कि पुरूषोत्तम दास टंडन सरदार पटेल की पसंद थे जबकि जेबी कृपलानी को नेहरू का समर्थन हासिल था। बावजूद पंडित नेहरू के समर्थन के कृपलानी चुनाव हार गए और टंडन कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए। सरदार पटेल की मृत्यु के बाद दोनों के रिश्ते सहज नहीं रहे। आखिरकार कार्यकाल पूरा होने से पहले ही टंडन ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद पीएम पद पर काबिज पंडित नेहरू अध्यक्ष का पद भी अपने पास रख लिए।


यू एन ढ़ेबर (U N Dhebar)

उच्छंगराय नवलशंकर ढ़ेबर एक स्वतंत्रता सेनानी थी। देश आजाद होने के बाद साल 1948 से लेकर 1954 तक वे सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद 1955 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। ढ़ेबर 1959 तक इस पद पर रहे।


नीलम संजीव रेड्डी (Neelam Sanjiv Reddy)

अविभाजित आंध्र प्रदेश से आने वाले दिग्ग्ज कांग्रेस नेता नीलम संजीव रेड्डी (Neelam Sanjiv Reddy) का पहचान देश के सातवें राष्ट्रपति के तौर पर है। रेड्डी कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। साल 1960 में इस पद पर उनकी ताजपोशी हुई थी, 1963 तक वे इस पद पर काबिज रहे। नीलम संजीव रेड्डी देश के इतिहास में निर्विरोध चुने गए इकलौते राष्ट्रपति थे।


के. कामराज (K. Kamaraj)

गांधी – नेहरू परिवार से इतर कांग्रेस के जिन नेताओं की सबसे अधिक चर्चा होती है उनमें तमिलनाडु से आने वाले के.कामराज भी हैं। 13 अप्रैल 1954 से लेकर 2 अक्टूबर 1963 तक लगातार तीन बार तत्कालीन मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री रहे कामराज ने संगठन में काम करने के लिए सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद साल 1964 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 1967 तक वे इस पद पर काबिज रहे। कामराज को आजाद भारत का पहला किंगमेकर भी माना जाता है। साल 1963 में कांग्रेस को तीन लोकसभा उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद उन्होंने पंडित नेहरू के सामने संगठन को दुरूस्त करने के लिए एक योजना रखी थी, जिसे ही आगे चलकर 'कामराज प्लान' कहा जाने लगा। इस योजना के तहत सरकार में जमे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को अपने पद छोड़कर पार्टी के लिए काम करना था।


जगजीवन राम (Jagjivan Ram)

'बाबूजी' के नाम से मशहूर जगजीवन राम एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ – साथ देश के बड़े दलित नेता भी थे। बिहार से ताल्लुक रखने वाले राम साल 1970 में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए। हालांकि इस पद पर वह अधिक समय तक नहीं रहे। अगले साल यानी 1971 में वह सरकार में शामिल हो गए। बांग्लादेश को लेकर पाकिस्तान से जंग के दौरान जगजीवन राम देश के रक्षा मंत्री हुआ करते थे। उनकी बेटी और कांग्रेस नेत्री मीरा कुमार लोकसभा स्पीकर रह चुकी हैं।


शंकरदयाल शर्मा (Shankar Dayal Sharma)

मध्य प्रदेश से आने वाले शंकरदयाल शर्मा शुरू से गांधी – नेहरू परिवार के काफी भरोसेमंद रहे। जिसका उन्हें खूब फायदा भी मिला। सन् 1952 से 1956 तक तत्कालीन भोपाल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शर्मा 1971 में राष्ट्रीय राजनीति में आए और लोकसभा सांसद बने। अगले ही साल यानी 1972 में इंदिरा गांधी ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देते हुए कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया। 1974 तक शर्मा इस पद पर रहे। 1992 में देश के राष्ट्रपति बनने वाले शंकरदयाल शर्मा के बारे में बताया जाता है कि उन्हें सोनिया गांधी ने राजीव गांधी की हत्या के बाद साल 1991 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के साथ – साथ प्रधानमंत्री पद की पेशकश की थी। लेकिन अपने खराब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने इसे ठुकरा दिया था।


नरसिम्हा राव (Narasimha Rao)

देश में बड़े आर्थिक सुधार लाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव साल 1991 में प्रधानमंत्री बनने के साथ – साथ कांग्रेस अध्यक्ष भी बने रहे। शंकर दयाल शर्मा द्वारा पेशकश ठुकराने के बाद गांधी परिवार की कृपा उनपर बरसी। राव 1996 में लोकसभा चुनाव और कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव दोनों हार गए।


सीताराम केसरी (Sitaram Kesari)

पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा की अध्यक्ष पद से विदाई के बाद गांधी परिवार के एक और वफादार सीताराम केसरी को पार्टी की कमान मिली। केसरी लंबे समय तक पार्टी में कोषाध्यक्ष का पद संभाल चुके थे। केसरी गैर गांधी फैमिली से आने वाले आखिरी कांग्रेस अध्यक्ष हैं। 1996 से लेकर 1998 तक कांग्रेस के शीर्ष पद पर रहे केसरी को बेईज्जत करके पद से हटाया गया था। बिहार से आने वाले दलित नेता केसरी को मार्च 1998 में कांग्रेस कार्यसमिति ने अध्यक्ष पद से बर्खास्त करने के लिए प्रस्ताव पारित किया और सोनिया गांधी को पार्टी की बागडोर संभालने के लिए कहा। मगर केसरी ने कुर्सी छोड़ने से इनकार कर दिया। 14 मार्च 1998 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में जमकर बवाल हुआ था। कांग्रेस दफ्तर में केसरी के नेमप्लेट को उखाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया गया था। कहा तो ये भी जा रहा है कि नाराज केसरी जब 24 अकबर रोड छोड़कर जा रहे थे तब यूथ कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं ने उनकी धोती खोलने की भी कोशिश की थी।

पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (Former Prime Minister PV Narasimha Rao) और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी (Former Congress President Sitaram Kesari) दोनों किसी जमाने में गांधी परिवार के वफादार थे। मगर बाद में दोनों को काफी अपमानित होना पड़ा। यही वो यादें हैं जिसकी वजह से आज कांग्रेस का कोई क्षत्रप पार्टी का नेतृत्व संभालने से घबरा रहा है।

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