आ गई वैक्‍सीन: स्‍टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन की तैयारी, जल्द मिलेगी सबको

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (IIS) के वैज्ञानिक एक 'गर्म' वैक्‍सीन पर काम कर रहे हैं। उनके मुताबिक, यह वैक्‍सीन 100 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 90 मिनट के लिए स्‍टोर की जा सकती है।

Update:2020-11-06 12:58 IST
आ गई वैक्‍सीन: स्‍टोरेज और डिसट्रीब्‍यूशन की तैयारी, जल्द मिलेगी सबको

नई दिल्ली: कोरोना महामारी से छुटकारा दिलाने के लिए कोरोना वैक्सीन तैयार हो चुकी है। अब इसके स्‍टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन को लेकर तैयारियां की जा रही हैं। खासकर गर्म जलवायु वाले देशों में वैक्‍सीन को स्‍टोर करना एक बड़ी चुनौती है। क्‍योंकि अधिकतर वैक्‍सीन को 2 डिग्री सेल्सियस से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच रखने की जरूरत पड़ती है। इसी को कोल्‍ड-चेन मैनेजमेंट कहते हैं।

एक ऐसी वैक्सीन जिसे कोल्‍ड-चेन की जरूरत ही न पड़े

कोल्‍ड-चेन मैनेजमेंट के तहत कोरोना वैक्‍सीन के मामले में यह चुनौती और बड़ी है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) के अनुसार, डिवेलप हो रहीं कोविड वैक्‍सीनों को 0 डिग्री से भी कम तापमान पर रखने की जरूरत होगी। मगर क्‍या हो अगर ऐसी कोई वैक्‍सीन हो जिसके लिए कोल्‍ड-चेन की जरूरत ही न पड़े? भारतीय वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के लिए ऐसी ही एक वैक्‍सीन तैयार की है।

'गर्म' वैक्‍सीन पर काम हो रहा है

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (IIS) के वैज्ञानिक एक 'गर्म' वैक्‍सीन पर काम कर रहे हैं। उनके मुताबिक, यह वैक्‍सीन 100 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 90 मिनट के लिए स्‍टोर की जा सकती है। अगर तापमान 70C हो तो इसे 16 घंटे तक ठीक रखा जा सकता है। इंसानी शरीर के तापमान यानी 37 डिग्री सेल्सियस पर यह वैक्‍सीन एक महीने से भी ज्‍यादा वक्‍त तक स्‍टोर करके रखी जा सकती है।

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वैक्सीन जानवरों पर टेस्‍ट की गई

IIS में प्रोफेसर और बायोफिजिसिस्‍ट राघवन वरदराजन ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि यह वैक्सीन जानवरों पर टेस्‍ट की गई। शुरुआती टेस्‍ट में 'अच्‍छे नतीजे' मिले हैं। अब राघवन की टीम को वैक्‍सीन के इंसानों पर सेफ्टी और टॉक्सिसिटी टेस्‍ट के लिए फंडिंग का इंतजार है। उनका रिसर्च पेपर जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमिस्‍ट्री में छपने वाला है।

इन वैक्‍सीनों को आसानी से दूर-दराज तक पहुंचाया जा सकता है

WHO की अगर मानें तो, फिलहाल केवल तीन वैक्‍सीन को ही 40 डिग्री सेल्सियस तापमान तक स्‍टोर किया जा सकता है। ये हैं- मेनिनजाइटिस, ह्यूमन पैपिलोमावायरस (HPV) और कॉलरा। इन वैक्‍सीनों को आसानी से दूर-दराज तक पहुंचाया जा सकता है और इनसे हेल्‍थ इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर पर लोड भी कम पड़ता है। बड़े पैमाने पर इस तरह की वैक्‍सीनों के वितरण में आसानी होती है। पिछले साल मोजाम्बिक में जब कॉलरा महामारी फैली थी जो ओरल वैक्‍सीन बांटने में ज्‍यादा वक्‍त नहीं लगा था।

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भारत के पास 40 मिलियन टन कोल्‍ड स्‍टोरेज की क्षमता है

भारत के पास 40 मिलियन टन कोल्‍ड स्‍टोरेज की क्षमता है मगर इसका अधिकतर हिस्‍सा ताजा भोजन, स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़े उत्‍पादों, फूलों और रसायनों को सुरक्षित रखने में होता है। कई जगह वैक्‍सीन स्‍टोरेज के लिए अंतरराष्‍ट्रीय मानक भी पूरे नहीं है। तापमान बढ़ने से वैक्‍सीन बेअसर हो जाती हैं। ऐसे में भारतीय वैज्ञानिकों की यह 'गर्म वैक्‍सीन' गेमचेंजर साबित हो सकती है।

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