ये है देश की पहली किसान रेलः अन्नदाता एक कोने से दूसरे तक ले जा सकते हैं अनाज

रेल मंत्रालय ने देश की पहली किसान रेल की शुरूआत की है। ये कृषि उत्पादों को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक ले जाने वाली विशेष पार्सल ट्रेन सेवा है। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में यह ट्रेन महाराष्ट्र के देवलाली से बिहार के दानापुर तक 30 अगस्त तक चलाई जाएगी।

Update: 2020-08-14 14:07 GMT
किसानों के स्पेशल ट्रेन से मदद की उम्मीद

नई दिल्ली: रेल मंत्रालय ने देश की पहली किसान रेल की शुरूआत की है। ये कृषि उत्पादों को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक ले जाने वाली विशेष पार्सल ट्रेन सेवा है। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में यह ट्रेन महाराष्ट्र के देवलाली से बिहार के दानापुर तक 30 अगस्त तक चलाई जाएगी।

 

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किसान रेल हर शुक्रवार देवलाली से सुबह 11 बजे चलेगी और लगभग 1,500 किलोमीटर की यात्रा करीब 32 घंटों में तय करके अगले दिन शाम 6.45 पर दानापुर पहुंचेगी। रास्ते में ट्रेन मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से भी हो कर गुजरेगी और कम से कम 14 स्टेशनों पर रुकेगी। हर स्टेशन पर किसान अपना पार्सल चढ़ा सकेंगे और उतार भी सकेंगे।

पार्सल की बुकिंग स्टेशन पर ही होगी। शुरू में ट्रेन में 10 डिब्बे होंगे और पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के आधार पर बाद में डिब्बों की संख्या बढ़ाई जाने की संभावना है। ट्रेन चलाए जाने के दिन भी बाद में बढ़ाए जा सकते हैं और दूसरे मार्गों पर भी ऐसी और ट्रेनें चलाई जा सकती हैं। ट्रेन की शुरुआत के बाद रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट कर कहा कि किसान रेल दूध, फल, सब्जी जैसी जल्दी खराब हो जाने वाली चीजों को बाजार तक पहुंचाने के साथ ही नेशनल कोल्ड सप्लाई चेन को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

इस परियोजना की घोषणा केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फरवरी में अपने बजट भाषण में की थी। बर्फ वाले कंटेनरों वाली इस ट्रेन में आगे चल कर मांस, मछलियां और दूध भी भेजने की योजना है।

 

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दरअसल इस परियोजना की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि भारत में फल, सब्जियां इत्यादि जैसे खराब हो जाने सामान की ढुलाई की व्यवस्था में कई कमियां हैं। दूध की ढुलाई तो पहले भी ट्रेन से होती रही है लेकिन फलों और सब्जियों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम आम तौर पर सड़कों के रास्ते ट्रकों में होता रहा है। ट्रक कभी शहरों के ट्रैफिक में तो कभी चुंगी चौकियों पर फंस जाते हैं, कभी उनके पहिए पंचर हो जाते हैं तो कभी एक्सिल टूट जाता है और इन सब में हुई देर की वजह से उनमें पड़ा सामान नष्ट हो जाता है।

बेहतर विकल्प

जानकारों का अनुमान है कि इस तरह भेजा जाने वाले सामान में 15 से 20 प्रतिशत तक उत्पाद हर साल नष्ट हो जाता है। कुछ जानकार तो इस आंकड़े को 40 प्रतिशत तक बताते हैं। ऐसे में बर्फ वाले ट्रेन के डिब्बों में इन उत्पादों की ढुलाई एक बेहतर विकल्प है। अगर यह प्रणाली कारगर सिद्ध हुई तो ढुलाई में सामान का खराब होना भी कम हो जाएगा और ढुलाई के खर्च में भी कमी आएगी। लेकिन अभी इस प्रयोग के सफल होने में कई चुनौतियां हैं।

 

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पहला सवाल यह है कि आखिर कितने किसान इस सेवा का फायदा उठा पाएंगे। ट्रेन में सामान भिजवाने के लिए एक न्यूनतम मात्रा में जगह बुक करने की आवश्यकता होती है जो काफी अधिक होता है और भारत के अधिकतर छोटे और मझोले किसानों के पास इस तरह की बुकिंग पर खर्च करने लायक आय नहीं है। इसके लिए कई किसानों को मिलकर सौदा तय करना होगा और फिर ट्रेन में बुकिंग कर अपना उत्पाद भेजना होगा। पायलट ट्रेन का गंतव्य बिहार रखा गया है जो कि उत्पादों का ना तो बड़ा बाजार है और ना प्रेषक। ऐसा लगता है कि इस ट्रेन को बिहार चुनाव को ध्यान में रख कर चलाया गया है और इसमें उपयोगिता से ज्यादा प्रचार नजर आता है

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