नई दिल्ली: भारतीय वैज्ञानिकों ने सौर ऊर्जा से संचालित ओनीर नामक एक ऐसा वाटर प्यूरीफायर विकसित किया है, जो सिर्फ दो पैसे प्रति लीटर की दर से शुद्ध पेयजल उपलब्ध करा सकता है।
लखनऊ स्थित भारतीय विषविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस प्यूरीफायर की तकनीक व्यावसायिक उत्पादन के लिए नई दिल्ली की ब्लूबर्ड वाटर प्यूरीफायर्सकंपनी को हस्तांतरित की गई है।
ओनीर में उपयोग की गई प्रौद्योगिकी एनोडिक ऑक्सीकरण के सिद्धांत पर आधारित है। इस प्यूरीफायर की मदद से बीमारियों को जन्म देने वाले सभी तरह के रोगाणुओं, जैसे- वायरस, बैक्टीरिया, कवक, प्रोटोजोआ अथवा सिस्ट को नष्ट करके पानी का शुद्धीकरण कर सकते हैं।
ओनीर घरेलू और सामुदायिक मॉडल्स में उपलब्ध होगा। इसकी छोटी इकाई विशेष रूप से घरों, खाद्य उत्पाद बेचने वाले दुकानदारों और छोटे प्रतिष्ठानों के लिए उपयुक्तहो सकती है।सौर ऊर्जा से संचालित होने के कारण यह प्यूरीफायर बिजली की समस्या से ग्रस्त दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में भी उपयोगी हो सकता है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने बताया कि “एक बार पूरी तरह चार्ज होने पर ओनीर का घरेलू संस्करण पांच मिनट में 10 लीटर और सामुदायिक संस्करण एक घंटे में 450 लीटर पानी की आपूर्ति कर सकता है। ओनीर मॉड्यूलर तकनीक से बना है, जिसमें बदलाव करके प्रतिदिन पांच हजार से एक लाख लीटर तक पानी का शुद्धिकरण कर सकते हैं। इस प्यूरीफायर का विकास मेक इन इंडिया मिशन के अंतर्गत किया गया है।”
इस प्यूरीफायर के सामुदायिक मॉडल में लगे स्मार्ट सेंसर वास्तविक समय में सभी परिचालन चरणों की जानकारी प्रदान करते हैं। इससे प्रति 5000 लीटर पानी के शुद्धीकरण के लिए लगभग एक यूनिट बिजली खर्च होगी। सौर ऊर्जा से भी इसे संचालित किया जा सकता है।
ओनीर कई मायनों में प्रचलित जल शुद्धीकरण यंत्रों से अलग है। बाजार में पहले से मौजूद ज्यादातर वाटर प्यूरीफायर महंगे हैं और उनके रखरखाव का खर्च वहन करना भी सभी वर्ग के लोगों के लिए संभव नहीं है। जबकि, ओनीर की लागत बेहद कम है। अल्ट्रा वायलेट (यूवी) वाटर प्यूरीफायर यंत्र साफ दिखने वाले पानी से सूक्ष्मजीवों का सफाया करते हैं। वहीं, ओनीर की मदद से खारे या गंदे पानी से भी सूक्ष्मजीवों को हटाया जा सकता है।
इसी तरह रिवर्स ऑस्मोसिस (आर.ओ.) में जल के शुद्धिकरण की प्रक्रिया में उपयोगी खनिज नष्ट हो जाते हैं। जबकि, ओनीर को इस तरह बनाया गया है कि पानी में आवश्यक खनिजों का संरक्षण हो सके। इसकी अनूठी कीटाणुरोधक प्रक्रिया आवश्यक प्राकृतिक खनिजों को बनाए रखती है।
कार्यक्रम में मौजूद वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे ने कहा कि “भारत की बहुसंख्य ग्रामीण आबादी ऐसा पानी पीने को मजबूर हो जो डब्ल्यूएचओ के गुणवत्ता मानकों के अनुकूल नहीं है। बेहतर स्वास्थ्य के लिए शुद्ध पेयजल पर हर इन्सान का बुनियादी अधिकार है। ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल की समस्या को दूर करने में यह यंत्र उपयोगी हो सकता है।
- उमाशंकर मिश्र