कोरोना वायरस चीन की बड़ी साजिश, 40 साल पहले की इस भविष्यवाणी का जानें सच

1981 में अमेरिकी उपन्यासकार डीन कोन्ट्ज ने The Eyes of Darkness नाम की सस्पेंस-थ्रिलर उपन्यास लिखा था। सोशल मीडिया पर बताया गया कि इस काल्पनिक सस्पेंस-थ्रिलर उपन्यास में कोरोना वायरस की तरह की एक महामारी का जिक्र है।

Update:2020-03-14 15:21 IST

बीजिंग: पूरी दुनिया में कोरोना वायरस को लेकर हायतौबा मचा हुआ है। चारों तरफ खौफ का माहौल बना हुआ है। खास बात यह है कि हर रोज कोरोना वायरस को लेकर नए दावे किए जा रहे हैं।

कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर दावा किया गया था कि, शराब से कोरोना वायरस को खत्म किया जा सकता है। वहीं सोशल मीडिया में एक और दिलचस्प जानकारी सामने आई है।

इस वायरल खबर में यह बात सामने आ रही है कि कोरोना वायरस की भविष्यवाणी 40 साल पहले ही एक किताब में कर दी गई थी।

बताया जा रहा है कि 1981 में लिखी एक किताब में कोरोना वायरस जैसी महामारी के चीन में फैलने का जिक्र किया गया था। सोशल मीडिया पर इस जानकारी को काफी शेयर किया गया।

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40 साल पहले किताब में क्या सच में हुई थी कोरोना वायरस को लेकर भविष्यवाणी

1981 में अमेरिकी उपन्यासकार डीन कोन्ट्ज ने The Eyes of Darkness नाम की सस्पेंस-थ्रिलर उपन्यास लिखा था। सोशल मीडिया पर बताया गया कि इस काल्पनिक सस्पेंस-थ्रिलर उपन्यास में कोरोना वायरस की तरह की एक महामारी का जिक्र है। इस उपन्यास में नोवल कोरोना वायरस की तरह की महामारी को वुहान-400 नाम दिया गया था।

सोशल मीडिया पर किताब के हवाले से कहा गया कि वुहान-400 को चीन ने अपने रिसर्च लैब में एक बॉयोलॉजिकल वीपन (जैविक हथियार) के तौर पर बनाया गया था। इस जैविक हथियार में इतनी ताकत थी कि वो समूची मानव जाति को खत्म कर सकता था।

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी अपने ट्विटर हैंडल से इसे शेयर किया था। मनीष तिवारी ने नॉवेल के पन्नों को शेयर करते हुए लिखा था- ‘क्या कोरोना वायरस चीन द्वारा निर्मित एक बायोलॉजिकल वीपन (जैविक हथियार) है, जिसे वुहान-400 नाम दिया गया था। ये किताब 1981 में प्रकाशित हुई थी। इसके अंश को पढ़कर देखें।

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सामने आई कोरोना वायरस की भविष्यवाणी वाली किताब की सच्चाई

अब कहा जा रहा है कि किताब में जिस वुहान-400 का जिक्र किया गया है, उसकी तुलना कोरोना वायरस से करना ठीक नहीं है। ये सच है कि किताब में वुहान-400 के बारे में बताया गया है और ये लिखा गया है कि चीन ने इसे जैविक हथियार के तौर पर वुहान शहर के बाहरी इलाके में बनाया था। लेकिन इसकी तुलना कोरोना वायरस से नहीं की जा सकती।

रॉयटर की खबर के मुताबिक इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि करोना वायरस को लैब में बनाया गया है। कोरोना वायरस वुहान शहर के मांस के मार्केट से फैला है, जहां पर अवैध और बिना साफ-सफाई के कई तरह के जानवरों के मांस बेचे जाते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि सबसे पहली बार इसका वायरस चमगादड़ में आया। चमगादड़ से ये इंसानों के शरीर में प्रवेश किया।

वुहान-400 और कोरोना वायरस में कितना अंतर

डीन कोन्ट्ज की लिखी किताब में वुहान-400 वायरस के बारे में कोरोना वायरस से अलग तरह की जानकारी दी गई है। किताब में वुहान-400 के बारे में लिखा है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड सिर्फ 4 घंटे का होता है। जबकि नोवल कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड 1 से लेकर 14 दिनों तक का होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किसी भी वायरस का आमतौर पर इनक्यूबेशन पीरियड 5 दिनों का होता है। इनक्यूबेशन पीरियड के दौरान वायरस के लक्षण सामने नहीं आते हैं।

कोन्ट्ज की किताब में लिखा है कि वुहान-400 से संक्रमित मरीजों की मौत की दर 100 फीसदी है। अगर कोई आदमी इस वायरस के संक्रमण में आता है तो सिर्फ 24 घंटे में ही उसकी मौत हो जाती है। जबकि कोरोना वायरस के साथ ऐसा नहीं है, कोरोना वायरस के मामलों में मौत की दर 2 से लेकर 4 फीसदी तक ही है।

वुहान-400 और करोनो वायरस के लक्षण में भी अंतर

किताब में वुहान-400 के लक्षण भी कोरोना वायरस से अलग बताए गए हैं। किताब में लिखा है कि इस वायरस से निकलने वाला जहरीला पदार्थ ब्रेन के टिश्यू को मार देता है। इसकी शरीर के ऊपर दिमाग का कंट्रोल खत्म हो जाता है। इसके बाद वायरस संक्रमित पीड़ित की मौत हो जाती है. कोरोना वायरस के साथ ऐसा नहीं है।

कोरोना वायरस में कई तरह के लक्षण देखने में आते हैं। इसमें फीवर, कफ से लेकर सांस लेने में तकलीफ की समस्या पैदा हो जाती है। माइल्ड केसेज़ में सर्दी के मामूली लक्षण होते हैं। कई मामलों में मरीजों को न्यूमोनिया हो जाता है। कई में सांस की गंभीर बीमारी और किडनी फेल होने की वजह से मौत हो जाती है।

किताब में चीन के नहीं रुस के शहर से वायरस का संबंध

डीन कोन्ट्ज की किताब के पहले एडिशन में वायरस का संबंध चीन के वुहान शहर से नहीं बताया गया है। पहले एडिशन में लिखा गया है कि ये वायरस गोर्की नाम के रुसी शहर से फैला। किताब के ऑरिजिनल वर्जन में इसे सोवियत का बनाया सबसे खतरनाक जैविक हथियार बताया गया है।

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक कोन्ट्ज की किताब को जब 1989 में दोबारा से रिलीज किया गया तो इसमें थोड़ा बदलाव किया गया था। एक सच्चाई ये भी है कि सोशल मीडिया पर किताब के जिन कुछ पन्नों को शेयर किया गया है, वो उस किताब का हिस्सा नहीं हैं। वो किसी दूसरे नॉवेल के अंश हैं।

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