'हरिऔध' पुण्यतिथि: हिन्दी के विकास में निभाई अहम भूमिका, जानें इनके बारे में
हिन्दी कविता के विकास में 'हरिऔध' की भूमिका को नींव के पत्थर के समान माना जाता है। उन्होंने हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य लिखा, जिसे मंगलाप्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया था।
लखनऊ: हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ (Ayodhya Prasad Upadhyay) की आज पुण्यतिथि है। 15 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के निजामाबाद में जन्म हरिऔध का 16 मार्च, 1947 को निधन हो गया था। उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति के तौर पर कार्य किया।
खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य की रचना
विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने प्रिय प्रवास नामक महाकाव्य लिखा था। जो कि हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है। यह सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। जिसे मंगलाप्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया था। 'हरिऔध' का नाम खड़ी बोली को काव्य भाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने वाले कवियों में बहुत आदर से लिया जाता है।
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नींव के पत्थर के समान है 'हरिऔध' की भूमिका
हिन्दी कविता के विकास में 'हरिऔध' की भूमिका को नींव के पत्थर के समान माना जाता है। हरिऔध काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अवैतनिक शिक्षक के रूप में अध्यापन कार्य भी किया। अगर उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाओं की बात करें तो उनमें प्रिय प्रवास, वैदेही वनवास, काव्योपवन, रसकलश, बोलचाल, चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, पारिजात, कल्पलता, मर्मस्पर्श, पवित्र पर्व, दिव्य दोहावली, हरिऔध सतसई शामिल हैं।
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सम्मान
'हरिऔध' को जीवनकाल में यथोचित सम्मान मिला। साल 1924 में इन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रधान पद को सुशोभित किया था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में साहित्य सेवाओं के चलते इन्हें हिन्दी के अवैतनिक अध्यापक का पद मिला। एक अमेरिकन 'एनसाइक्लोपीडिया' ने हरिऔध को विश्व के साहित्य सेवियों की पंक्ति प्रदान की। खड़ी बोली काव्य के विकास में इनका योगदान निश्चित रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है। वहीं, 16 मार्च, 1947 को अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने इस दुनिया से 76 साल की उम्र में अलविदा कह दिया।
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