आजादी के जुनूनी थे शचीन्द्रनाथ सान्याल, जीवन के 20 साल जेलों में गुजार दिए

शचीन्द्रनाथ सान्याल भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। वे राष्ट्रीय व क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय भागीदार होने के साथ ही क्रान्तिकारियों की नई पीढ़ी के प्रतिनिधि भी थे। उनका जन्म 1893 में वाराणसी में हुआ था।

Update:2021-02-07 00:00 IST
आज़ादी के जुनूनी थे शचीन्द्रनाथ सान्याल, जीवन के 20 साल जेलों में गुजार दिए

लखनऊ: बनारस की धरती से आजादी के परवाने पैदा हुए हैं, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जिंदगियां दाव पर लगा दीं। शचींद्रनाथ सान्याल भी ऐेसे ही एक स्वतंत्रता संग्रामी थे। शचीन्द्रनाथ सान्याल भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। वे राष्ट्रीय व क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय भागीदार होने के साथ ही क्रान्तिकारियों की नई पीढ़ी के प्रतिनिधि भी थे। उनका जन्म 1893 में वाराणसी में हुआ था।

यहां से लगी आजादी की लड़ाई में देश भक्ति की लगन

अपने अध्ययन काल में उन्होंने काशी के प्रथम क्रांतिकारी दल का गठन 1908 में किया। सान्याल ने बंगाली तोला हाई स्कूल और क्वीन्स कॉलेज बनारस से पढ़ाई की। वहीं से उनको आजादी की लड़ाई में देश भक्ति की लगन लगी। पहली बार वह 1915 में बनारस कांसीप्रेंसी में शामिल हुए। उन्हें इस कांड में काला पानी भेजा गया। उनकी प्रॉपर्टी को ब्रिटिश सरकार ने कब्जे में ले लिया। वहां से आने के बाद 1924 में उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का गठन किया।

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भगत सिंह को सान्याल ने सुझाई राह

कहा जाता है कि जब भगत सिंह का परिवार शादी के लिए पीछे पड़ गया तो उनको कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। ऐसे में उन्होंने बनारस के शचींद्रनाथ सान्याल को पत्र लिखकर मार्ग प्रशस्त करने की गुजारिश की। जवाब में सान्याल ने लिखा, विवाह करना या न करना तुम्हारी इच्छा पर है। लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि शादी के बाद देश के लिए बड़ा काम करना तुम्हारे लिए संभव नहीं होगा।

पारिवारिक बंधन धीरे-धीरे तुम्हें इतना जकड़ लेगा कि देशभक्ति से बहुत दूर हो जाओगे। यदि तुमने खुद को देश के लिए समर्पित कर दिया है तो विवाह के बंधन को अस्वीकार कर दो। ऐसे में विवाह करना देशद्रोह के समान है। संभव है कि इस बार मना करने के बाद परिवार वाले आगे भी तुम पर दबाव डालते रहेंगे। इसलिए तुम घर-परिवार छोड़ दो। यदि तुम्हें यह स्वीकार है तो मैं तुम्हारा मार्गदर्शन कर सकता हूं। शचीन्द्रनाथ के इस पत्र ने भगत सिंह की दुविधा दूर कर दी।

सान्याल का परिवार

शचीन्द्रनाथ सान्याल के पिता का नाम हरिनाथ सान्याल और माता का नाम वासिनी देवी था। शचीन्द्रनाथ के अन्य भाइयों के नाम थे- रविन्द्रनाथ, जितेन्द्रनाथ और भूपेन्द्रनाथ। इनमें भूपेन्द्रनाथ सान्याल सबसे छोटे थे। कहा जाता है कि पिता हरिनाथ सान्याल ने अपने सभी पुत्रों को बंगाल की क्रांतिकारी संस्था 'अनुशीलन समिति' के कार्यों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था। इसी का परिणाम था कि शचीन्द्रनाथ के बड़े भाई रविन्द्रनाथ सान्याल 'बनारस षड़यंत्र केस' में नजरबन्द रहे। छोटे भाई भूपेन्द्रनाथ सान्याल को 'काकोरी काण्ड' में पाँच वर्ष क़ैद की सज़ा हुई और तीसरे भाई जितेन्द्रनाथ 1929 के 'लाहौर षड़यंत्र केस' में भगत सिंह आदि के साथ अभियुक्त थे।

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20 साल ब्रिटिश जेलों में गुजार दिए

शचीन्द्रनाथ सान्याल ने देश के लिए अपने जीवन के 20 साल ब्रिटिश जेलों में गुजार दिए। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी उनको डिफेंस ऑफ इंडिया रुल्ज के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। इसके अलावा वह सुलतानपुर की जेल में भी रहे। काकोरी कांड और बनरास कांसीप्रेंसी में भी उन्होंने दो बार काला पानी की जेल काटी।

निधन

7 फरवरी को शचीन्द्र नाथ सान्याल की पुण्यतिथि है। जानकारी के मुताबिक वर्ष 1937-1938 में कांग्रेस मंत्रीमंडल ने जब राजनीतिक क़ैदियों को रिहा किया तो उसमे शचीन्द्रनाथ भी रिहा हो गये। लेकिन उन्हें घर पर ही नजरबंद कर दिया गया था। कठिन परिश्रम, कारावास और फिर चिन्ताओं से वे क्षय रोग से ग्रस्त हो गये। उन्होंने 7 फरवरी 1942 को गोरखपुर में आखिरी सांस ली।

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