पापों के प्रायश्चित के लिए बना सन्यासी, लेकिन क्यों बना गोल्डन बाबा

उन्हें साल 1972 से ही सोना पहनना खूब पसंद था और वो सोने को अपना ईष्ट देव मानते थे। उन्हें सोना पहनना इतना पसंद था कि वो हमेशा कई किलो सोना पहने रहते थे।

Update:2020-07-01 16:48 IST

नई दिल्ली: लंबी बीमारी के बाद सुधीर कुमार मक्कड़ उर्फ गोल्डन बाबा का मंगलवार देर रात निधन हो गया। वो काफी लंबे समय से गंभीर बीमारी से जुझ रहे थे, उनका इस सिलसिले में एम्स में इलाज चल रहा था। बता दें कि गोल्डन बाबा का असली नाम सुधीर कुमार मक्कड़ था। गोल्डन बाबा हरिद्वार के कई अखाड़ों से भी जुड़े हुए थे और उनके खिलाफ अपहरण, फिरौती, जबरन वसूली, मारपीट, जान से मारने की धमकी देने जैसे कई आपराधिक मामले भी दर्ज थे।

दिल्ली में गारमेंट्स का था बिजनेस

सुधीर कुमार मक्कड़ यानी कि गोल्डन बाबा मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के रहने वाले थे। ऐसा कहा जाता है कि वो सन्यासी बनने से पहले दिल्ली में गारमेंट्स का बिजनेस किया करते थे और वो सन्यासी इसलिए बने ताकि अपने पापों का प्रायश्चित कर सके। गांधी नगर के अशोक गली में गोल्डन बाबा का आश्रम है।

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सोना पहनने का रखते थे शौक

ऐसा कहा जाता है कि उन्हें साल 1972 से ही सोना पहनना खूब पसंद था और वो सोने को अपना ईष्ट देव मानते थे। उन्हें सोना पहनना इतना पसंद था कि वो हमेशा कई किलो सोना पहने रहते थे। अपने इसी आदत की वजह से वो सुर्खियों में भी छाए रहते थे। गोल्डन बाबा हर साल कई किलो सोना पहनकर और लग्जरी कारों के साथ कांवड़ यात्रा भी लेकर निकलते थे।

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क्या है गोल्डन बाबा का इतिहास?

पूर्वी दिल्ली स्थित गांधी नगर के स्थानीय लोगों का कहना है कि गोल्डन बाबा पेशे से दर्जी थे और गांधीनगर में उनका गारमेंट्स का बिजनेस था। लेकिन उनके अपना ये कारोबार उतना रास नहीं आया और इसके बाद ये सब छोड़ वो हरिद्वार चले गए। जहां उन्होंने फूलमाला और कपड़े बेचना शुरू कर दिया। उसके बाद उन्होंने साल 2013-14 के बीच अपने इस काम को बंद कर दिया और फइर दिल्ली के गांधीनगर में अपना एक आश्रम बना लिया।

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सुरक्षा में तैनात रहते थे 25 से 30 गार्ड

कहा जाता है कि साल 2013 में सुधीर कुमार गोल्डन बाबा हो गए। गोल्डन बाबा हमेशा खूब सारा सोना पहना करते थे, जो कि उनकी पहचान थी। सोने का लॉकेट, बाजुबंद, यहीं नहीं उनकी दसों उंगलियों में सोने की बड़ी-बड़ी अंगूठियां रहती थीं। वहीं उनकी सुरक्षा के लिए 25 से 30 गार्ड हमेशा तैनात रहते थे।

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