दिल्ली का 11 मौतों वाला बुराड़ी इलाका बना भूतिया जगह! जो गया भी, हो गया बीमार
दिल्ली शहर की ये आम गली एकदम से खास बन गई लेकिन इस पहचान में खून के छींटे शामिल थे।साल पूरा होने को है लेकिन डर ताजा है- ये कहना है खुदकुशी करने वाले चुंडावत परिवार के पड़ोसी विरेंदर त्यागी का।
नई दिल्ली: उत्तरी दिल्ली का बुराड़ी इलाका। घनी आबादी वाली ये बस्ती 30 जून 2018 को एकदम से सुर्खियों में आ गई। जिसकी खबर से सिर्फ दिल्ली ही नही बल्कि लगभग पूरा भारत वाकिफ होगा। आपको याद दिलाते हैं क्या थी वजह- एक ही परिवार के 11 लोग एक साथ फांसी के फंदे से झूलते मिले। आनन-फानन घर सील हो गया।
पुलिसवालों की भीड़ ने गली नंबर 2 को किसी छोटी-मोटी छावनी में तब्दील कर दिया। दिल्ली शहर की ये आम गली एकदम से खास बन गई लेकिन इस पहचान में खून के छींटे शामिल थे।साल पूरा होने को है लेकिन डर ताजा है- ये कहना है खुदकुशी करने वाले चुंडावत परिवार के पड़ोसी विरेंदर त्यागी का।
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'जून की उस सुबह हमारी गली का एक घर श्मशान में बदल गया। अब अनजान लोग भी आते-जाते 'उस' घर के सामने ठिठक जाते हैं। एक वक्त पर हरदम चहल-पहल से भरी गली से इक्का-दुक्का लोग ही गुजरते हैं, वो भी बड़ी तेजी से, लगभग भागते हुए। जिस मकान से एक साथ 11 लाशें उठी हों, उसके पड़ोस में रहना रोज उस हादसे को जीने जैसा है।'
उस दोमंजिला मकान से तकरीबन 10 फीट दूर रहते विरेंदर कहते हैं, 'छानबीन के बाद सील टूट चुकी लेकिन मरनेवालों ने जैसे कोई अदृश्य सील घर पर लगा दी हो, कोई मकान के भीतर घुसना तक नहीं चाहता। यहां तक मरनेवालों के रिश्तेदार भी। वे दिल्ली आते हैं तो अपना घर छोड़ किसी रिश्तेदार के यहां ठहरते हैं और वहीं से चले जाते हैं'।
सालभर पहले यहां सबकुछ सामान्य था। जब चुंडावत परिवार गली के लिए मिसाल था। घर के लोग धार्मिक और धीमी आवाज में बात करने वाले थे। कभी लगा ही नहीं कि उनमें कुछ भी अजीब है। या वे ऐसा कदम उठा सकते हैं! जिस मिनट खुदकुशी की खबर सुनी, तुरंत वहां पहुंचा। भीतर का मंजर इतना खौफनाक था कि उल्टे पैरों बाहर भागा। दिनों तक बदहवासी छायी रही। अब साल होने जा रहा है लेकिन जहन से डर नहीं जाता। फर्क इतना है कि कोई खुलकर डर दिखाता है तो कोई छिपा जाता है।
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किसी घर में एकाध हादसा हो जाए तो उसपर मनहूस का ठप्पा लग जाता है। यहां पूरे 11 लोगों ने एक साथ खुदकुशी कर ली। यानी मानें तो हम सब छोटे-मोटे श्मशान के पास रह रहे हैं- विरेंदर कहते हैं।
हादसे के बाद तरह-तरह की बातें होने लगीं। लोग रूह, भूत-प्रेत के किस्से बोलने-बताने लगे। हम घबराने लगे कि कहीं हमारी गली की पहचान के साथ मनहूस तो जुड़ने नहीं जा रहा! हिम्मतवाले लोग विरोध करते। आत्मा-वात्मा कुछ नहीं होती। लोगों को समझाते लेकिन भीतर से हम सब डरे हुए थे। आज भी डरे हुए हैं।
मैं भूत-प्रेत को नहीं मानता लेकिन इस बीच कई अजीब वाकये हुए। गली में उस परिवार की एक किराने की दुकान थी। उसके बंद होने के बाद एक जाननेवाले ने दुकान खोलने की कोशिश की। दुकान में रंग-रोगन करवाया, सामान मंगवाया लेकिन दुकान खुलने के हफ्तेभर बाद ही वो बीमार पड़ गया। दुकान बंद हो गई। एक और व्यक्ति ने कोशिश की लेकिन उसने भी बिस्तर पकड़ लिया। इसके बाद फिर किसी ने हिम्मत नहीं की।
घर बंद पड़ा है। किराए पर रहना तो दूर घर की देखभाल के लिए मुफ्त में भी कोई रहने को तैयार नहीं। यहां तक कि सूनी दोपहर या अंधेरा ढलने पर लोग गली से आना-जाना टालते हैं। पहले गली स्कूल जाने वाले बच्चों से गुलजार रहती थी। दोपहर में उनको बस-स्टॉप से लाने वाली माएं इसी गली से गुजरती थीं। अब चाहे कोई कितना ही थका हुआ हो, लंबा रास्ता लेकर आता-जाता है।
खौफ इस कदर है कि कई मकानवालों ने अपनी दीवारें ऊंची करवा ली हैं ताकि उन्हें वो घर या उसका पिछवाड़ा दिखाई न दे। वजह पूछो तो साफ कहते हैं- पहले उस घर के बच्चे, औरतें काम करते, खेलते दिखते थे। अब सूना घर देखकर डर लगता है। लगता है मानो कोई एकदम से सामने आ जाएगा।
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खुद मैं भी अपने मकान से जब उस दोमंजिला घर को देखता हूं तो दहशत से भर जाता हूं। लोग फिल्मों में, किताबों में हॉरर देखते हैं। हमारे पड़ोस में खड़ा घर, जो एक वक्त पर रौनकों से भरा था- आज किसी भूतहा जगह की तरह हमें डराता है।