Diwali 2023: अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

Diwali Story: यह तो एक बहाना है जीवन को उत्साहित करने का, उल्लास की रोशनी से भरने का, एकाकी होते मनुष्य को सामाजिकता से जोड़े रखने का, पीढ़ियों से चली आ रही लोक परंपराओं के पालन का। कारण चाहे जो भी रहे हों, लोक कथाएं या धर्म चाहे जो जानकारी देते हों...

Written By :  Anshu Sarda Anvi
Update:2023-11-11 21:30 IST

Diwali 2023 (Pic:Social Media)

Jalao Diye Par Rahe Dhyan Itna: रोशनी किसे अच्छी नहीं लगती, उजाला किसे नहीं लुभाता, प्रकाश किसे जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा नहीं देता? चूंकि अंधकार में रहना मनुष्य को हताशा से भर देता है इसलिए दीपावली का यह पंचदिवसीय पर्व और उसके रीति-रिवाज महज ढकोसला नहीं है, महज खर्चे की स्कीम भी नहीं है, यह ऊल-जुलूल सी प्रथाओं का पालन भी नहीं है, यह महज एक धार्मिक आयोजन भी नहीं है।

एक दूसरे से जोड़ने का अवसर है त्यौहार

यह तो एक बहाना है जीवन को उत्साहित करने का, उल्लास की रोशनी से भरने का, एकाकी होते मनुष्य को सामाजिकता से जोड़े रखने का, पीढ़ियों से चली आ रही लोक परंपराओं के पालन का। कारण चाहे जो भी रहे हों, लोक कथाएं या धर्म चाहे जो जानकारी देते हों, दीपावली मनाने के पीछे चाहे जो कारण बताते हैं, मूल तत्व यही है कि त्योहार एक-दूसरे से जोड़े जाने का अवसर होता है, सब तरफ की, अंदर की या बाहर की, अंर्तमन हो या बाहरी परिवेश की सफाई का, स्वच्छ कर रंग रोगन करने कर खुशियां मनाने का अवसर है।


अगर न हो दीपावली का त्योहार... 

अगर न हो यह दीपावली का त्योहार तो मनुष्य कैसे देख पाता अपनी यात्रा को, अपने जिजीविषा को, मिट्टी से जुड़े रहने की छाप को ? उन सब से कैसे जोड़ पाता खुद को? खुद की जीवन यात्रा नीरस हो जाती और इसी नीरसता से बचाती है हमें दीपावली पर बनाई जाने वाली रंगोली जो जीवन में हमेशा ने रंगों का संचार करती है। सिंधु घाटी सभ्यता से जन्मी रंगोली बनाने की इस परंपरा को हम आज जिस आधुनिक रूप में देख रहे हैं वह महाराष्ट्र की देन है।


जमीन पर, मिट्टी की दीवारों पर कच्चे रंगों से निर्मित आकृतियां, फूल -पत्ते किसी शुभ अवसर पर उकेरे जाते थे। अल्पना, चौक पूरना, माडंना, कोलम ऐसे कई नाम से जाने जाने वाली यह रंगोली जीवन को रंगहीन होने से बचाती है। इस समय पूरा बाजार अटा पड़ा है दीपावली से संबंधित चीजों से, रंगोली के रंग हो या पूजा संबंधित सामग्री, रंग-बिरंगे स्टिकर हो या बर्तन, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक सामान, तरह- तरह की डेकोरेटिव लाइट, माटी के दीपक और मिठाइयों की दुकानें,फूल-फल आदि सब कुछ।

रंगोली के रंग बेचते सड़क पर बैठे हुए ये बच्चे, घुटनों पर हाथ रखकर आंखों की कोर से झांकती आशा लिए हुए हैं‌, उन्हें वहां किसी ने तो बैठाया होगा सामान को बेचने के लिए और बिना कोई बक्शीश दिए पुलिस वाले ने उनको इस सड़क पर बैठने भी नहीं दिया होगा। इधर मिट्टी के दीपक बेचते ये बच्चे और कहते सौ दीपकों को दो सौ से कम में नहीं देंगे, कहकर इधर-उधर झांकते बच्चे शायद अपनी भी दीपावली के रंगीन होने या रोशन होने की बाट जोह रहे होंगे।


इस बार भी हम अपने घर पर खूब सारे दीपक जलाने वाले हैं, अबकी बार भी रंगोली बनाने वाले हैं, प्लास्टिक की रेडीमेड रंगोली भी सजाने वाले हैं लेकिन दूसरे के घर को रोशन करने और रंगीन बनाने का सामान बेचने वाले इन बच्चों की जिंदगी की नीरस, रंगहीन और उदासी वाली दीपावली को हम कैसे रोशन कर सकते हैं, यह सोचना होगा। दुनिया में किसी भी युद्धग्रस्त देश की बात करने से पहले हमें अपने आसपास वाले बच्चों की भी बात करनी होगी जो कि जीना तो चाहते हैं, सपने भी बड़े देखना चाहते हैं लेकिन उनके पास साधन नहीं है।

लोग कहते हैं ऐसा कि...

दीपावली मनाने के तौर- तरीकों में भी अब बदलाव आ चुका है, लोग कहते हैं ऐसा। पहले के त्योहार मनाने के तरीकों में अब बहुत कुछ बदल गया है। हमारी दीपावली और जेन जेड की दीपावली में भी बहुत कुछ फर्क आ गया है क्योंकि पुरानी प्रथाओं के साथ-साथ जेन जेड अपने तरीके से भी दीपावली मनाता है। पहले दीपावली का इंतजार इसलिए भी रहता था कि एक जोड़ी नए कपड़े उस समय खरीदवाए या सिलवाए जाते थे। जबकि जेन‌ जेड को कपड़े खरीदने के लिए किसी त्योहार का इंतजार नहीं करना होता है, ट्रेडिशनल की जगह इंडो वेस्टर्न की थीम पर कपड़े खरीदे जाते हैं। जहां मिलेयनर्स अब भी पारंपरिक मिठाइयों का स्वाद पसंद करता है वहीं जेन जेड चॉकलेट, ग्लूटेन फ्री या शुगर फ्री व्यंजन अधिक पसंद करने लगे हैं।


तो बाजार आधारित हो चला है त्योहार

हमेशा पारंपरिक तरीके की सजावट करते रहे मिलेनियर ढेर सारे दीपकों और गेंदे के फूलों की सजावट को प्राथमिकता देते हैं जबकि जेन जेड ओरिगामी, कैंडल्स लाइट्स, डेकोरेटिव लालटेन आदि का प्रयोग किया जाना पसंद करते हैं। पूजा के नाम पर मिलेनियर पारंपरिक तरीके से पूजा करता है जबकि जेन जेड के लिए पूजा शॉर्टकट वाली हो गई है। अबकी बार दीपावली पर बहुत दिन पहले से ही कब, किस समय, किस नक्षत्र में क्या खरीदना चाहिए और क्या पूजा करने से धन वर्षा होगी आदि आदि जैसी रील्स आ रही हैं। यह समय बाजार के हावी होने का होता है। त्योहार अब बाजार आधारित हो चला है और किस चीज की क्या उपयोगिता है और किस चीज का कब, कहां और कैसे प्रयोग करना चाहिए यह अब हमारी परंपराएं नहीं बल्कि बाजार तय करता है।

मुझे दीपावली इसलिए भी पसंद है क्योंकि यह सिखाती है खुद पर भरोसा रखना और साहस रखना। यह हमें सीख देती है कि मेहनत का कभी भी कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है। दीपावली हर साल कुछ न कुछ नई तकनीक से भी अपडेट कराती है। दीपावली दीपकों द्वारा खुद जलकर दूसरे के लिए रास्ता खोजने, दिखाने और अवसर खोजने की भी शिक्षा देती है। दीपावली सिखाती है कि जिस तरह से चिंगारी बनने के लिए माचिस की ही आवश्यकता दिखाई देती है वैसे ही जिंदगी जब कभी बुझी सी लगे तो उसे फिर से उत्साहित करने के लिए चिंगारी की जरूरत होती है, किसी प्रेरणा की जरूरत होती है जो कि हमारी बुझती जिंदगी को एक बार फिर से रोशन कर जाए।


इस रोशनी का नाम है दीपावली का यह त्योहार जहां हम हर वर्ष नए विचारों के दीप जलाते हैं और अपनी बुझी सी जिंदगी को रोशन कर पाते हैं। सिर्फ खुद के घर को ही रोशन करने का यह त्योहार नहीं है बल्कि अगर हमारे आसपास अंधेरा रहेगा तो खुद की रोशनी भी हमें वह सुख नहीं देगी। और अब अंत में प्रिय कवि गोपाल दास 'नीरज' की कविता की यह पंक्तियां मुझे अत्यंत प्रिय है के साथ आलोक पर्व की आप सभी को मंगलकामनाएं-

'मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,

नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,

उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,

नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,

कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब,

स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।'।

(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैॆं) 

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