Ambedkar Jayanti 2023: बाबा साहेब अंबेडकर के पास थीं 32 डिग्रियां, 9 भाषाओं के थे जानकार

Ambedkar Jayanti 2023: बाबा साहेब अम्बेडकर को दलितों का मसीहा, सामाजिक समानता के लिए संघर्षशील, समाज सुधारक और भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारत की सामाजिक व्यवस्था के बारे में जो विचार रखे और जो तर्क दिए वो आज भी मान्य और अकाट्य हैं। भारत रत्न अम्बेडकर के पास 32 डिग्रियां थी और वो 9 भाषाओं के जानकार थे।

Update:2023-04-14 20:40 IST
भीमराव अम्बेडकर जयंती 2023

Ambedkar Jayanti 2023: बाबा साहेब अम्बेडकर को दलितों का मसीहा, सामाजिक समानता के लिए संघर्षशील, समाज सुधारक और भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता के रूप में जाना जाता है। लेकिन अम्बेडकर से भी आगे बढ़ कर बहुत कुछ थे। राजनीतिक, आर्थिक, लोकतंत्र, छुआछूत आदि विभिन विषयों पर उनके एकदम भिन्न विचार थे और उन्होंने भारत की सामाजिक व्यवस्था के बारे में जो विचार रखे और जो तर्क दिए वो आज भी मान्य और अकाट्य हैं। भारत रत्न अम्बेडकर के पास 32 डिग्रियां थी और वो 9 भाषाओं के जानकार थे। मोदर घाटी परियोजना, भाखड़ा नंगल बांध परियोजना, सोन नदी घाटी परियोजना और हीराकुंड बांध परियोजना जैसी भारत की कुछ महत्वपूर्ण नदी परियोजनाओं के पीछे अम्बेडकर की सोच थी। आज अम्बेडकर जयंती पर जानते हैं उनके कुछ रोचल तथ्य।

राजनीति और लोकतंत्र पर विचार

राजनीतिक क्षेत्र में अम्बेडकर व्यक्ति के अधिकार और स्वतंत्रता के पक्षधर थे। वह राज्य के उदारवादी स्वरूप के पक्षधर थे और संसदीय शासन पद्धति का समर्थक होने के साथ ही कल्याणकारी राज्य के पक्षधर थे। अम्बेडकर शासन की शक्तियों के विकेंद्रीकरण में विश्वास करते थे और लोकतंत्र को श्रेष्ठ शासन व्यवस्था मानते थे। अम्बेडकर के अनुसार लोकतंत्र केवल शासन प्रणाली ही नहीं है अपितु लोगों के मिलजुल कर रहने का एक तरीका भी है। उनका कहना था कि लोकतंत्र में स्वतंत्र चर्चा के माध्यम से सार्वजनिक निर्णय लिए जाते हैं और राजनीतिक लोकतंत्र की सफलता के लिए आर्थिक तथा सामाजिक लोकतंत्र का होना एक पूर्व शर्त है। उनके अनुसार स्वतंत्र शासन तथा लोकतंत्र तब वास्तविक होते हैं जब सीमित शासन का सिद्धांत लागू हो। इस संदर्भ में उन्होंने संवैधानिक लोकतंत्र का समर्थन किया। अम्बेडकर का कहना था कि लोकतंत्र वंशानुगत नहीं, निर्वाचित होना चाहिए, निर्वाचितों को जनसाधारण का विश्वास व उसका नवीकरण प्राप्त होना जरूरी है, लोकतंत्र में कोई इकलौता व्यक्ति सर्वज्ञ होने का दावा नहीं कर सकता तथा राजनीतिक लोकतंत्र के पहले सामाजिक, आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना आवश्यक है।

भरी उद्योगों का समर्थन

डॉ. अम्बेडकर ने भारी उद्योगों का समर्थन किया तथा वह चाहते थे कि आर्थिक शोषण को समाप्त करने के संदर्भ में मूल उद्योगों का प्रबंध राज्य के हाथ में सौंप दिया जाना चाहिए। साथ ही वह मिश्रित अर्थव्यवस्था के समर्थक थे। उनका कहना था कि कृषि राज्य का उद्योग बने अर्थात् कृषि के क्षेत्र मालिकों, काश्तकारों आदि को मुआवजा देकर राज्य भूमि का अधिग्रहण करे और उस पर सामूहिक खेती कराए।
ख़ास बातें -

- अम्बेडकर ने 1920 में ‘मूकनायक’ और 1927 में बहिष्कृत भारत पत्रिकाओं का प्रकाशन किया।

- अगस्त 1936 में अम्बेडकर ने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की। ये पार्टी दलित, मजदूर व किसानों की समस्याओं से सम्बंधित थी। इस पार्टी का नाम 1942 में अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ कर दिया गया।- ब्रिटिश राज के दौरान आयोजित तीनों गोलमेज सम्मेलन में अम्बेडकर ने अनुसूचित जाति के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।

- आजाद भारत के केन्द्रीय मंत्रिमंडल में अम्बेडकर भारत के पहले विधि मंत्री नियुक्त किये गये।

- 5 फरवरी 1951 को संसद में अम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल पेश किया जिसके असफल हो जाने पर उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया।

- 1955 में उन्होंने भारतीय बौद्ध धर्म सभा कि स्थापना की तथा नागपुर में 5 लाख व्यक्तियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया। आंबेडकर ने कहा था – मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ हूँ लेकिन मैं मरूँगा बौद्ध धर्म में।

- अपनी रचना ‘शूद्र कौन थे’ में अम्बेडकर ने लिखा है कि शुद्रों कोई पृथक वर्ण नहीं बल्कि क्षत्रिय वर्ण का ही हिस्सा हैं। उनके अनुसार शुद्र अनार्य नहीं थे बल्कि क्षत्रिय थे और उनका ब्राह्मणों से संघर्ष हुआ। उसके बाद ब्राह्मणों ने उनका उपनयन संस्कार बंद कर दिया था।

- अम्बेडकर ने अपनी रचना ‘एनीहिलेषन ऑफ़ कास्ट’ में दलित वर्गों के उत्थान के उपाय बताये हैं। उनका कहना था कि उच्च जातियों के संत और समाज सुधारक दलित वर्गों की समस्याओं से सहानुभूति तो रखते हैं, परन्तु कोई ठोस योगदान नहीं कर पाए हैं। उन्होंने कहा कि आत्म सुधार के जरिये ही दलित वर्ग का उत्थान किया जा सकता है। यानी तथाकथित अछूत ही अछूतों को नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं। इसी संदर्भ में अम्बेडकर ने दलितों को इसकी दशा सुधार के लिए इन्हें मदिरापान, गौमांस छोड़ने तथा शिक्षा-दीक्षा पर ध्यान देकर संगठित, जागरूक एवं शिक्षित होने की आवश्यकता पर बल दिया। अम्बेडकर ने दलितों को धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म स्वीकार करने का सुझाव दिया एवं भारत के औद्योगीकरण को दलितों के उद्धार के लिए एक प्रभावशाली उपाय माना।

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