Rape Cases in India: द्रौपदी मुर्मू का समाज को जगाने का प्रयास और पश्चिम बंगाल

Rape Cases in India: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का यह कहना कि 'बस अब बहुत हो गया, मैं निराश और भयभीत हूं' । अपने आप में काफी है। अब समय आ गया है जब समाज को एकजुट होकर बेटियों के खिलाफ अपराध रोकने के लिए एकजुट होकर मुहिम चलानी होगी।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Update:2024-09-03 15:50 IST

द्रौपदी मुर्मू का समाज को जगाने का प्रयास और पश्चिम बंगाल: Photo- Newstrack

Rape Cases in India: देश में बलात्कार और विभत्स यौन हिंसा की तेजी से बढ़ रही घटनाओं के बीच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का मुखर होना हालात की भयावहता की ओर इशारा करता है। पश्चिम बंगाल में होनहार डॉक्टर की हत्या के बाद लगातार होती यौन हिंसाएं। बंगाल की संस्कृति पर तीखा हमला हैं। हालांकि राष्ट्रपति की चिंता के बाद पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने एंटी रेप बिल लाकर दस दिन के अंदर फांसी की सजा देने का प्रावधान किया है लेकिन क्या यह बलात्कार की घटनाओं को रोकने में कारगर होगा जबतक कि राजनीतिक दलों का यौन हिंसा के अपराधियों को संरक्षण बरकरार रहेगा। वह न्यायपालिका पर भी कहती हैं कि पेंडिंग केस न्यायपालिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं जब रेप जैसे मामलों में तत्काल न्याय नहीं मिलता।

'बस अब बहुत हो गया, मैं निराश और भयभीत हूं'

देश की प्रथम नागरिक द्रौपदी मुर्मू ने एक तरह से खुला आह्वान किया है कि अब समय आ गया है कि भारत अपने इतिहास का पूरी तरह से सामना करे। हमें जरूरत है कि इस विकृति का सब मिलकर सामना करें, ताकि इसे शुरुआत में ही खत्म कर दिया जाए। राष्ट्रपति ने कहा, "आइए, हम शुरुआत में ही इस पर रोक लगाने के लिए इस विकृति से व्यापक तरीके से निपटें।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का यह कहना कि 'बस अब बहुत हो गया, मैं निराश और भयभीत हूं' । अपने आप में काफी है। इससे लगता है कि अब समय आ गया है जब समाज को एकजुट होकर बेटियों के खिलाफ अपराध रोकने के लिए एकजुट होकर मुहिम चलानी होगी। एक तरफ हम बेटियों को आगे बढ़ाने की बात करते हैं। उन्हें बराबरी का दर्जा देने की बात करते हैं दूसरी तरफ बेटियों के इतना गंदा नजरिया।

शायद इसीलिए राष्ट्रपति ने कहा समाज को ईमानदारी, निष्पक्षता के साथ आत्म-विश्लेषण करने की जरूरत है। लोगों को खुद से कुछ कठिन सवाल पूछने होंगे। अक्सर घृणित मानसिकता वाले लोग महिलाओं को अपने से कम समझते हैं। वे महिलाओं को कम शक्तिशाली, कम सक्षम, कम बुद्धिमान के रूप में देखते हैं। राष्ट्रपति के इस नजरिये का विश्लेषण करने की जरूरत है। ये पीड़ा से उपजा आक्रोश है जो हर भारतीय के सीने में सुलगना चाहिए।

गहरी नींद में सोई जनता को जगाने का वक्त आ गया

राष्ट्रपति कहती हैं निर्भया कांड के बाद 12 सालों में रेप की अनगिनत घटनाओं को समाज ने भुला दिया है। समाज की भूलने की यह सामूहिक आदत घृणित है। इतिहास का सामना करने से डरने वाला समाज ही चीजों को भूलने का सहारा लेता है। ये समाज की आंखें खोलने वाला बयान है जो गहरी नींद में सोई जनता को झकझोर कर जगाने के लिए है कि उठो जागो बहुत हो चुका अब वक्त आ गया खड़े होने का।

संवैधानिक प्रमुख की पीड़ा के तमाम तरह के अर्थ निकाले जा रहे हैं, क्या यह खुद उनकी ही सरकार पर प्रहार है, या कार्यपालिका के तंत्र की विफलता पर चोट या फिर न्यायपालिका की पंगु होती व्यवस्था पर सवाल। अर्थ चाहे जो हो लेकिन समाज को आत्म विश्लेषण की यह सीख नये युग की रणभेरी प्रतीत होती है।

(लेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी राय है)

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