Emergency : देश के लोकतांत्रिक इतिहास में काला दिन, इंदिरा गांधी ने थोपी थी इमरजेंसी, हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला बना कारण
Emergency Horrible Situation: 25 जून,1975 की तारीख देश के लोकतांत्रिक इतिहास में काले दिन के रूप में याद की जाती है। 1975 में आज ही के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी थोप दी थी।
Emergency Horrible Situation: 25 जून,1975 की तारीख देश के लोकतांत्रिक इतिहास में काले दिन के रूप में याद की जाती है। 1975 में आज ही के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी थोप दी थी। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर अनुच्छेद 352 के अधीन देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की थी।
25 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर करने के साथ ही देश में पहला आपातकाल लागू हो गया था। अगली सुबह रेडियो पर राष्ट्र के नाम संदेश में इंदिरा गांधी ने पूरे देश को आपातकाल लगाए जाने की जानकारी दी थी।
ऐतिहासिक फैसला बना इमरजेंसी का कारण
देश में इमरजेंसी लगाए जाने का कारण बना था इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला। दरअसल 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली का दोषी ठहराते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया था। जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा गांधी के छह साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध भी लगा दिया था। जस्टिस सिन्हा के इसी फैसले ने देश में इमरजेंसी की नींव रखी थी।
इंदिरा गांधी के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस बड़े फैसले के बाद देश की सियासत हिल गई थी। इसका कारण यह था कि इंदिरा गांधी उस समय देश की सबसे ताकतवर नेता थीं। फैसला आने के बाद भी वे कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार नहीं थीं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया मगर वहां से भी राहत न मिलने के बाद उन्होंने 25 जून,1975 को देश पर इमरजेंसी थोप दी थी। आपातकाल की घोषणा के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और जॉर्ज फर्नांडिस समेत कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया था। पूरे देश में इतनी गिरफ्तारियां की गई थीं कि जेलों में जगह तक नहीं बची थी।
इंदिरा पर लगा चुनाव में धांधली का आरोप
दरअसल इस कहानी की शुरुआत 1971 के लोकसभा चुनाव से जुड़ी हुई है। 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने इंदिरा गांधी की अगुवाई में भारी बहुमत हासिल करते हुए 352 सीटों पर जीत हासिल की थी। इंदिरा गांधी उस समय रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा करती थीं और उन्होंने 1971 के चुनाव में भी इसी सीट से जीत हासिल की थी। उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण ने चुनौती दी थी मगर वे एक लाख से अधिक मतों से हार गए थे।
राजनारायण को इस हार से करारा झटका लगा क्योंकि वे काफी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में उतरे थे। उन्हें अपनी जीत का पूरा भरोसा था। इसे इसी से समझा जा सकता है कि चुनाव नतीजों की घोषणा के पहले ही उन्होंने विजय जुलूस तक निकाल दिया था मगर बाद में पराजित होने पर उन्हें बड़ा झटका लगा। चुनावी हार के बाद उन्होंने इंदिरा गांधी पर धांधली और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का बड़ा आरोप लगाया।
राजनारायण ने दी हाईकोर्ट में चुनौती
इस मामले को लेकर राजनारायण इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गए। उन्होंने इंदिरा गांधी की चुनावी जीत के खिलाफ याचिका दायर की। इस याचिका में उनका कहना था कि चुनावी जीत हासिल करने के लिए धांधली के साथ ही सरकारी मशीनरी का भी जमकर दुरुपयोग किया गया।
उनका कहना था कि इस चुनाव को रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि गलत तरीके अपनाकर जीत हासिल की गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस याचिका पर जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने सुनवाई की थी। प्रधानमंत्री से जुड़ा हुआ मामला होने के कारण दोनों पक्षों की ओर से इस मामले में दमदार दलीलें पेश की गईं।
पहली बार प्रधानमंत्री की कोर्ट में पेशी
जगमोहन लाल सिन्हा को अलग मिजाज का जज माना जाता था और उन्होंने इस मामले में इंदिरा गांधी को भी कोर्ट में तलब कर लिया था। उनका यह आदेश काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि देश के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री को कोर्ट में पेश होना पड़ा। हाईकोर्ट के आदेश पर इंदिरा गांधी ने 18 मार्च 1975 को अपना बयान दर्ज कराया था। सुनवाई के दौरान उनसे करीब पांच घंटे तक जिरह गई थी। उनसे सवालों का लंबा सिलसिला चला था।
जस्टिस सिन्हा ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
आखिरकार सारी दलीलों और जिरह के बाद 12 जून 1975 को इस महत्वपूर्ण मामले में फैसले की घड़ी आ गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट का कोर्ट रूम नंबर 24 फैसला सुनने के लिए खचाखच भरा हुआ था। सबकी निगाहें जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा पर टिकी हुई थीं।
कोर्ट रूम में ज्यादा भीड़ को रोकने के लिए बाकायदा पास तक जारी किए गए थे।
फ़ैसले के शुरुआत में ही जस्टिस सिन्हा ने स्पष्ट कर दिया कि राजनारायण की ओर से याचिका में उठाए गए कुछ मुद्दों को उन्होंने पूरी तरह सही पाया है। याचिका में राजनारायण की ओर से सात मुद्दे उठाए गए थे। इनमें से 5 मुद्दों पर तो उन्होंने इंदिरा गांधी को राहत दे दी मगर दो मुद्दों पर उन्होंने इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया।
जस्टिस सिन्हा ने इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए न केवल इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया बल्कि उनके 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी बैन लगा दिया। जस्टिस सिन्हा के यह फैसला सुनाते भी हड़कंप मच गया क्योंकि किसी को भी ऐसे फैसले की उम्मीद नहीं थी। इस फैसले से कांग्रेसी खेमे को जबर्दस्त झटका लगा।
सुप्रीम कोर्ट से भी इंदिरा को नहीं मिली राहत
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आते ही दिल्ली में बैठकों का दौर शुरू हो गया। इन बैठकों में इंदिरा गांधी के सियासी भविष्य को लेकर पैदा हुई दिक्कतों पर गहराई से मंथन किया गया। आखिरकार इंदिरा गांधी को राहत दिलाने के लिए हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया गया। इंदिरा गांधी ने 23 जून, 1975 को हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
अत्यंत महत्वपूर्ण मामला होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने अगले दिन ही इस मामले में सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने हाईकोर्ट के फैसले पर पूरी तरह रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने इंदिरा गांधी को राहत देते हुए यह जरूर कहा कि वे प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेने की इजाजत तो दे दे मगर वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया।
फैसले के बाद विपक्ष ने खोला मोर्चा
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आते ही इंदिरा गांधी पर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने का दबाव बढ़ने लगा था। विपक्षी नेताओं ने इस्तीफे की मांग को लेकर उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जब इंदिरा गांधी को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली तो विपक्ष के तेवर और तीखे हो गए। विपक्ष की ओर से इंदिरा के इस्तीफे की मांग को लेकर 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में बड़ी रैली का आयोजन किया गया।
इस रैली में विपक्षी दलों के नेताओं के साथ लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी मौजूद थे। रैली में अपने संबोधन के दौरान जेपी ने इंदिरा गांधी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि अब इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री के पद पर रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रह गया है। उन्होंने प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता पढ़ते हुए देश के लोगों को नारा दिया-सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
इंदिरा सरकार की सिफारिश पर लगी इमरजेंसी
जयप्रकाश नारायण की रैली के बाद कांग्रेस पूरी तरह बैकफुट पर आ गई और इंदिरा गांधी पर इस्तीफे का दबाव और बढ़ गया। कांग्रेस में भी संकट से निपटने के लिए मंथन चल रहा था मगर किसी को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था इंदिरा गांधी भी रामलीला मैदान की रैली के बाद जबर्दस्त दबाव और तनाव में आ गए थे। रैली के बाद बड़ा फैसला लेते हुए वे राष्ट्रपति भवन पहुंच गईं और उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अहमद से देश में आपातकाल लगाने को कहा। इंदिरा सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने संविधान की धारा 352 के तहत है देश में इमरजेंसी को मंजूरी दे दी।
जेपी समेत विपक्ष के बड़े नेताओं की गिरफ्तारी
26 जून 1975 की सुबह
इंदिरा गांधी ने रेडियो पर देश को संबोधित किया और देशवासियों को इमरजेंसी लगाने की जानकारी दी। इमरजेंसी की घोषणा के बाद इंदिरा सरकार विपक्ष के आंदोलन को कुचलने में जुट गई। सरकार ने सारे लोकतांत्रिक अधिकारों को खत्म करते हुए लोकनायक जयप्रकाश नारायण समेत विपक्ष के सारे नेताओं को जेल भेज दिया।
आपातकाल की घोषणा के साथ ही देश के नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। देश में इमरजेंसी लगाए जाने के बाद पुलिस और प्रशासन के उत्पीड़न की कई कहानियां सामने आई थीं। प्रेस पर भी सेंसरशिप लागू कर दी गई थी। हर अखबार के दफ्तर में सेंसर अधिकारी की तैनाती कर दी गई थी जिसकी अनुमति के बाद ही कोई खबर छप सकती थी।
कांग्रेस के लिए आज भी जवाब देना मुश्किल
यह माहौल तब समाप्त हो सका जब 23 जनवरी,1977 को देश में मार्च महीने के दौरान आम चुनाव कराने की घोषणा की गई। इस आम चुनाव में विभिन्न दलों को मिलाकर बनी जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया था। हालांकि मोरारजी देसाई की अगुवाई में बनी जनता पार्टी की सरकार लंबे समय तक नहीं चल सकी। पार्टी में शामिल विभिन्न दलों के बीच आपसी झगड़े शुरू हो गए। इस कारण इंदिरा गांधी 1980 में सत्ता में वापसी करने में कामयाब रहीं।
इंदिरा गांधी के इस कदम को लेकर आज भी कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया जाता है। देश के इतिहास के इस काले अध्याय को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई दलों के नेता आपातकाल को लेकर कांग्रेस पर समय-समय पर हमला करते रहे हैं। आपातकाल का मुद्दा कांग्रेस के लिए कमजोर पक्ष रहा है और पार्टी आज भी इस सवाल का मजबूती से जवाब नहीं दे पाती है।