Supreme Court On EWS: संविधान के खिलाफ नहीं है आर्थिक आरक्षण, लेकिन दो जजों की राय अलग
Supreme Court On EWS: उच्चतम न्यायालय ने दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण को वैध ठहराया है।
Supreme Court On EWS: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण को वैध ठहराया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय बेंच में भिन्न भिन्न मत रहे। संविधान पीठ ने बहुमत से संवैधानिक और वैध करार दिया। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी (Justice Dinesh Maheshwari), जस्टिस बेला एम त्रिवेदी (Justice Bela M Trivedi) और जस्टिस जेबी परदीवाला (Justice JB Pardiwala) ने आरक्षण को वैध और संवैधानिक बताया। वहीं, जस्टिस एस रवींद्र भट और चीफ जस्टिस यू यू ललित ने असहमति जताते हुए इसे अंसवैधानिक करार दिया।
मोदी सरकार की नीति की बहुत बड़ी जीत
बहरहाल, आर्थिक आरक्षण पर संविधान पीठ की बहुमत की मोहर मोदी सरकार की नीति की बहुत बड़ी जीत है। कोर्ट ने संविधान संशोधन को सही ठहराया है। इस फैसले के दूरगामी सकारात्मक परिणाम निकलेंगे।
क्या कहा न्यायाधीशों ने
जस्टिस भट ने कहा कि संविधान सामाजिक न्याय के साथ छेड़छाड़ की अनुमति नहीं देता है। ईडब्लूएस कोटा संविधान के आधारभूत ढांचे के तहत ठीक नहीं है। जस्टिस भट ने कहा कि आरक्षण सीमा पार करना मूल ढांचे के खिलाफ है। जस्टिस भट ने कहा कि आरक्षण देना कोई गलत नहीं लेकिन ईडब्ल्यूएस आरक्षण भी एससी,एसटी और ओबीसी के लोगों को मिलना चाहिए।
दूसरी तरफ, जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि ये आरक्षण संविधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता, ये समानता संहिता का उल्लंघन नहीं है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी आरक्षण को सही करार दिया। उन्होंने कहा कि अगर राज्य इसे सही ठहरा सकता है तो उसे भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता, ईडब्ल्यूएस नागरिकों की उन्नति के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की आवश्यकता है। असमानों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता।ईडब्ल्यूएस के तहत लाभ को भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत कहा ये
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि इस संबंध में की गई गणना के अनुसार, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करने के लिए, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आनुपातिक आरक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना सामान्य के लिए सीट की उपलब्धता को कम नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में कुल 2,14,766 अतिरिक्त सीटें सृजित करने की मंज़ूरी दी गई थी; और उच्च शिक्षण संस्थानों में बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए 4,315.15 करोड़ रुपये खर्च करने की मंज़ूरी दी गई है।
27 सितंबर को फैसला रख लिया था सुरक्षित
शीर्ष अदालत ने सुनवाई में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस कानूनी सवाल पर 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है। शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं और ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे ''पिछले दरवाजे से'' आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था।