Manmohan Singh: 33 साल रहे सांसद मगर कभी नहीं बन सके लोकसभा सदस्य
Dr Manmohan Singh Retirement: अपनी सियासी पारी के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सिर्फ एक बार लोकसभा चुनाव लड़ा और इस चुनाव में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था।
Dr Manmohan Singh Retirement: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की गिनती कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में की जाती है। राज्यसभा सदस्य के रूप में उनका कार्यकाल बुधवार को पूरा हो रहा है। अपने लंबे संसदीय जीवन में वे 33 साल तक राज्यसभा के सदस्य रहे मगर वे कभी लोकसभा के सदस्य नहीं बन सके। 2004 से 2014 तक यूपीए सरकार के दो कार्यकाल के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी संभाली।
अपनी सियासी पारी के दौरान उन्होंने सिर्फ एक बार लोकसभा चुनाव लड़ा और इस चुनाव में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था मगर इस चुनाव में भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा ने उन्हें हरा दिया था।
33 साल तक लगातार बने रहे सांसद
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को देश में आर्थिक सुधारो का सूत्रधार माना जाता है। उन्होंने 1991 से 1996 तक नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी। सियासी मैदान में सक्रिय होने से पहले उन्होंने अर्थशास्त्री, शिक्षाविद् और नौकरशाह के रूप में भी भूमिका निभाई। 91 वर्षीय डॉक्टर मनमोहन सिंह 1991 में पहली बार राज्यसभा सदस्य बने थे।
इसके बाद कांग्रेस की ओर से उन्हें लगातार राज्यसभा का सदस्य बनाया जाता रहा। यही कारण है कि वे 1991 से 2024 तक लगातार राज्यसभा सदस्य बने रहे। अब आज राज्यसभा सदस्य के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है।
1999 के चुनाव में झेलनी पड़ी थी हार
वैसे अपने लंबी संसदीय जीवन के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कांग्रेस ने एक बार लोकसभा चुनाव की जंग में भी उतारा था। वे 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर दक्षिण दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे। इस चुनाव के दौरान उन्हें भाजपा प्रत्याशी प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा से तीस हजार वोटों से शिकायत झेलनी पड़ी थी।
वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में विजय कुमार मल्होत्रा को 2,61,230 मत मिले थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. मनमोहन सिंह को 2,31,231 मत ही मिल सके थे। इस चुनाव के दौरान निर्दलीय प्रत्याशी मोहम्मद शरीफ तीसरे स्थान पर रहे थे और उन्हें महज 2,846 मत प्राप्त हुए थे। विजय कुमार मल्होत्रा का मत प्रतिशत 21.51, मनमोहन सिंह का 19.04 और मोहम्मद शरीफ का 0.23 रहा था।
यूपीए की जीत के बाद पीएम पद की जिम्मेदारी
1999 में मिली इस हार के बावजूद मनमोहन सिंह सांसद बने रहे क्योंकि कांग्रेस ने राज्यसभा सदस्य के रूप में हमेशा उनकी प्रतिभा का फायदा उठाया। बाद में 2004 में अटल की अगुवाई में उतरे एनडीए को हराकर कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए ने बड़ी जीत हासिल की।
इस जीत के बाद सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की अटकलें थीं मगर सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इसके बाद मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और वे लगातार 10 साल तक प्रधानमंत्री के रूप में बने रहे।
प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने से पहले उन्होंने वित्त मंत्री, वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी काम किया। वे प्रधानमंत्री के सलाहकार के साथ ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे। उन्हें देश में आर्थिक सुधारों का बड़ा सूत्रधार माना जाता है।