कश्मीर का सच: इसलिए भागना पड़ा कश्मीरी पंडितों को, खौफनाक थी ये रात

आज भी कश्मीरी पंडित अपनी मातृभूमि और अपने आशियाने की आस में हैं। वो तीस सालों से कश्मीर वापसी का इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन उनके साथ ये क्यों हुआ।

Update: 2020-01-19 08:45 GMT

श्रीनगर: केंद्र सरकार ने नागरिकता कानून लागू कर शरणार्थियों को भारत में आसरा देने का एक बड़ा कदम उठाया लेकिन आज भी देश के कुछ नागरिक अपने जन्मस्थान या अपने पुस्तैनी आसरे में रहने की आस में हैं। वो तीस सालों से घर वापसी का इंतज़ार कर रहे हैं। दरअसल, तीस साल पहले आज ही के दिन घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Hindus) को उनके घरों से खदेड़ दिया गया था। सर्द अँधेरी रात में उन्हें अपनी मातृभूमि से पलायन करना पड़ा।

स्वतंत्र भारत का पहला पलायन:

कश्मीर भारत का ही एक हिस्सा है लेकिन साल 1990 में अपनी ही मातृभूमि से करीब पांच लाख कश्मीरी पंडितों को खदेड़ दिया गया। आज का दिन स्वतंत्र भारत के पहले पलायन के तौर पर याद किया जाता है। कश्मीरी पंडितों के लिए तो 19 जनवरी प्रलय का दिन है।

कश्मीरी पंडितों के लिए दर्द भारी आज की रात:

9 जनवरी 1990 की कड़वी यादें उन्हें आज भी सोने नहीं देतीं। सर्दियों के दिन थे। लोग रोज की तरह अपने घरों में टीवी देखने या अन्य कामों में लगे थे कि अचानक लाउड स्पीकरों पर आवाजें आने लगीं। घाटी की हर मस्जिदों से 'काफिरों कश्मीर छोड़ो' के नारे लगने लगे।

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नरसंहार की रात:

इसी दिन सैकडों कश्मीरी पंडितों को मार दिया गया। कई जगहों पर सामूहिक नरसंहारों को अंजाम दिया गया। कश्मीरी पंडितों की महिलाओं, बहनों, बेटियों के साथ गैंगरेप की वारदातों को अंजाम दिया गया। कई लोगों को लकड़ी चीरने की मशीन से जिंदा चीर दिया गया था। वो खौफ की रातें थीं।

नारे लगने लगे, ‘यहां क्या चलेगा निजाम-ए-मुस्तफा’, ‘ए जालिमों ए काफिरों कश्मीर हमारा छोड़ दो’ जैसे नारे बुलंद किए गए। कश्मीरी पंडितों में एक भय सा पैदा हो गया। समुदाय के लोग परेशान थे। चर्चा का विषय था कि आखिर कहां जाएंगे और अब क्या होगा। लेकिन आतंक और खौफ इतना बढ़ गया कि उन्हें अपना घर, कश्मीर छोड़ कर जाना पड़ा।

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क्यों कश्मीरी पंडितों को निकाला गया:

कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तो जंग 1947 से ही जारी है। लेकिन इस दौर में भी कश्मीरी मुसलमानों और कश्मीरी पंडितों के प्यार की कहानियाँ सुनाई जाती थी। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि कश्मीर के हालात इतने बिगड़ गये?

रूस अफगानिस्तान विवाद से फैली कश्मीर में आग:

दरअसल, 1980 के दौरान रूस और अफगानिस्तान के बीच लड़ाई चल रही थीं। अफगानिस्तान के लोगों को मुजाहिदीन बनाया जाने लगा। ये लोग बगैर जान की परवाह किये रूस के सैनिकों को मारना चाहते थे। इसमें सबसे पहले वो लोग शामिल हुए जो अफगानिस्तान की जनता के लिए पहले से ही समस्या थे। इन अपराधियों की ट्रेनिंग शुरू हुई पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में। आस-पास के लोगों से इनका सम्पर्क होना शुरू हुआ।

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जब ऐसे लोगों पर पुलिस ने कार्रवाई की तो उसकी जद में बाकी मुसलमान भी आ गए। कई जगहों के साथ बेकसूर भी फंस गये। इसी मुद्दे को धर्म से जोड़ दिया गया। लोग कहने लगे कि हम पहले से ही कहते थे कि कश्मीरी काफिर हमारे दुश्मन हैं! इन्हें यहां रहने न दिया जाए।

बता दें कि कश्मीर में पंडित कभी भी 5% से ज्यादा नहीं थे, लेकिन पुलिस और प्रशासन में कश्मीरी पंडितों की संख्या ठीक-ठाक थी। बस फिर क्या था कश्मीरी मुस्लिमों को पंडितों के खिलाफ उकसाया जाने लगा और घाटी हिंदुओं के खून से सन गयी।

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