Raksha Bandhan 2023: देश की सियासत में चर्चित भाई-बहनों की जोड़ियां, जिन्होंने लिख डाली नई पटकथा

Raksha Bandhan 2023: रक्षाबंधन के इस मौके पर देश की सियासत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली भाई-बहनों की जोड़ियों की चर्चा करना जरूरी है। देश के राजनीतिक इतिहास में भाई-बहनों की इन जोड़ियां ने नई पटकथा लिखने में कामयाबी हासिल की है।

Update:2023-08-31 07:40 IST
Raksha Bandhan 2023 (Photo- Social Media)

Raksha Bandhan 2023: पूरे देश में रक्षाबंधन के पर्व की धूम दिख रही है। हालांकि इस बार रक्षाबंधन के त्योहार पर भद्रा का साया होने के कारण यह त्योहार दो दिन मनाया जाएगा। भाई-बहनों के लिए यह त्योहार खास मायने रखता है। रक्षाबंधन के दिन राखी बांधकर बहनें अपने भाइयों के स्वस्थ रहने और दीर्घायु होने की कामना करती हैं। दूसरी ओर भाई जीवन भर अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है।

रक्षाबंधन के इस मौके पर देश की सियासत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली भाई-बहनों की जोड़ियों की चर्चा करना जरूरी है। देश के राजनीतिक इतिहास में भाई-बहनों की इन जोड़ियां ने नई पटकथा लिखने में कामयाबी हासिल की है। कई भाई-बहनों की जोड़ियां तो मौजूदा दौर में भी प्रभावी भूमिका निभा रही हैं। हालांकि यह भी सच्चाई है कि कुछ भाई-बहन अभी भी साथ काम करने में जुटे हुए हैं जबकि कुछ भाई-बहनों की राहें अलग हो चुकी हैं।

राहुल गांधी-प्रियंका गांधी

मौजूदा दौर में भाई-बहन की सबसे चर्चित जोड़ी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की है। देश के सबसे प्रसिद्ध सियासी घराने से ताल्लुक रखने वाले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर फिलहाल कांग्रेस को मजबूत बनाने और एक बार फिर पार्टी की सत्ता में वापसी कराने का बड़ा दारोमदार है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के लंबे समय बाद दोनों ने सियासत की दुनिया में कदम रखा और जल्द ही देश में बड़ी लोकप्रियता हासिल कर ली।

राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान भी संभाल चुके हैं। हालांकि उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। मौजूदा समय में प्रियंका गांधी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव की भूमिका में पार्टी को मजबूत बनाने की कोशिश में जुटी हुई हैं। हाल में हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत हासिल हुई है और पार्टी की इस जीत में इन दोनों भाई-बहन की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है।

सबसे अच्छी बात तो यह है कि दोनों के बीच काफी अच्छी ट्यूनिंग है और समय-समय पर ये बातें दिखती भी रही है। देश के कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और फिर अगले साल होने वाली सबसे बड़ी सियासी जंग में राहुल और प्रियंका की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

राहुल और प्रियंका ने पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है दोनों भाई-बहन प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा हमला करते रहे हैं। मोदी सरनेम केस में सुप्रीम कोर्ट की ओर से राहत मिलने के बाद राहुल गांधी की सांसदी बहाल हो चुकी है और उनके अगले साल चुनाव लड़ने का रास्ता भी साफ हो चुका है। राहुल गांधी की सांसदी बहाल होने के बाद अब कांग्रेस भी ज्यादा आक्रामक अंदाज में दिख रही है।

2024 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी के भी चुनावी रण में उतरने की संभावना जताई जा रही है। फिलहाल भाई-बहन विभिन्न राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की चुनावी संभावनाएं मजबूत बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव में भी दोनों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होगी।

अजित पवार-सुप्रिया सुले

महाराष्ट्र की सियासत में अजित पवार और सुप्रिया सुले दोनों की भूमिका काफी अहम मानी जाती रही है। हालांकि भाई-बहन की इस चर्चित जोड़ी की सियासी राहें अब अलग हो चुकी हैं। गत दो जुलाई को एनसीपी से बगावत करने के बाद अजित पवार ने भाजपा से हाथ मिला लिया था और उन्हें महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम पद की शपथ दिलाई गई थी। शरद पवार की बेटी और सांसद सुप्रिया सुले कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में एनसीपी को मजबूत बनाने की कोशिश में जुटी हुई हैं।

अभी हाल में सुप्रिया सुले ने अपने भाई अजित पवार को लेकर एक महत्वपूर्ण बयान दिया था। सुप्रिया सुले का कहना था कि अजित पवार हमारे ही पार्टी के सीनियर नेता हैं जिन्होंने अब अलग रुख अपना लिया है। उनका कहना था कि एनसीपी में किसी भी प्रकार की टूट नहीं हुई है। बस पार्टी के कुछ नेताओं ने अलग स्टैंड लिया है। शरद पवार भी अपने भतीजे को लगातार दुलराने में जुटे हुए हैं। सुले के बयान के संबंध में शरद पवार का कहना था कि यह भाई-बहन का रिश्ता है और इसे सियासी नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए।

मजे की बात यह है कि एनसीपी में बगावत करने के बाद बावजूद अजित पवार ने अभी तक शरद पवार और अपनी बहन सुप्रिया सुले के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है। दूसरी ओर शरद पवार अपने भतीजे और सुप्रिया सुले अपने भाई के खिलाफ भी बयान देने से परहेज करते रहे हैं।

तेज प्रताप, तेजस्वी और मीसा

बिहार की सियासत में लालू प्रसाद यादव का कुनबा लंबे समय से प्रभावी भूमिका निभाता रहा है। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद लालू यादव अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब हुए थे। लालू यादव की तीन संतानें तेज प्रताप, तेजस्वी और मीसा अब उनकी विरासत को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं।

नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में शामिल होने के बाद तेजस्वी यादव ने बिहार के डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी जबकि उनके बड़े भाई तेज प्रताप को नीतीश मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किया गया था। मीसा राज्यसभा सांसद के रूप में सियासी मैदान में सक्रिय हैं।

बीमार पड़ने के बाद लालू यादव सियासी मैदान में ज्यादा सक्रिय भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं मगर तेज प्रताप, तेजस्वी और उनकी बहन मीसा बिहार के सियासत में राजद को मजबूती से बनाए रखने की कोशिश में जुटे हुए हैं। तेजस्वी यादव को लालू यादव के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है।

हाल में लालू यादव ने यह बयान देकर सनसनी फैला दी थी कि बिहार की जनता अब नीतीश कुमार की जगह तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है। माना जा रहा है कि लालू यादव ने तेजस्वी को सीएम की कुर्सी सौंपने के लिए नीतीश पर दबाव बढ़ाने की मंशा से यह बयान दिया है।

एमके स्टालिन-कनिमोझी

तमिलनाडु की सियासत में करुणानिधि की गिनती सबसे कद्दावर नेताओं में की जाती रही है। अब उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ने का काम एमके स्टालिन और उनकी बहन कनिमोझी की ओर से किया जा रहा है। सांसद के रूप में कनिमोझी विभिन्न मुद्दों को लेकर हमेशा मुखर रहती हैं जबकि उनके भाई एमके स्टालिन ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल रखी है।

तमिलनाडु की सियासत पर स्टालिन की मजबूत पकड़ मानी जाती है। अपने पिता के निधन के बाद उन्होंने द्रमुक को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यही कारण है कि अन्य विपक्षी दलों की ओर से भी स्टालिन को काफी अहमियत दी जाती रही है।

उमर अब्दुल्ला-सारा पायलट

जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार का लंबे समय से सियासी रसूख दिखता रहा है। शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर का कद्दावर नेता माना जाता था और उन्होंने नेशनल कांफ्रेंस की स्थापना की थी। शेख अब्दुल्ला के बाद उनके बेटे डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला ने पार्टी की कमान संभाली और वे राज्य के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए। अब फारूक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर की सियासत में प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। 29 साल की उम्र में सांसद बनने वाले उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रहे हैं।

हालांकि उमर अब्दुल्ला की बहन सारा राजनीति के मैदान से दूर रहीं। सारा की शादी राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट के साथ हुई है। सारा खुद तो राजनीति से दूर रहती हैं मगर सचिन पायलट की मजबूती के पीछे उनकी प्रभावी भूमिका मानी जाती है। वे कई रैलियों और कार्यक्रमों में अपने पति सचिन पायलट के साथ दिखती रही हैं। जानकारों का तो यहां तक करना है कि महत्वपूर्ण मुद्दों पर सचिन सारा की राय लेना नहीं भूलते।

केटी रामाराव-के कविता

तेलंगाना की राजनीति में भी एक भाई-बहन की जोड़ी काफी चर्चा का विषय बनी हुई है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) की राज्य की सियासत पर महत्वपूर्ण पकड़ मानी जाती है। वे राज्य में भाजपा और कांग्रेस दोनों महत्वपूर्ण सियासी दलों को पटखनी देने में कामयाब रहे हैं। उनके बेटे केटी रामाराव भी राजनीति के मैदान में सक्रिय हैं। मौजूदा समय में वे राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में काम कर रहे हैं जबकि उनकी बहन के कविता भी एमएलसी के रूप में राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

हाल में दिल्ली आबकारी घोटाले में ईडी की ओर से तलब किए जाने के बाद उनका नाम काफी चर्चाओं में आया था। तेलंगाना की सियासत में केसीआर अपने बेटे को मजबूती से स्थापित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने तेलंगाना की एक रैली में आरोप लगाया था कि वे अपने बेटे को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। तेलंगाना में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाला है और इस कारण राज्य का सियासी माहौल इन दोनों गरमाया हुआ है।

जगन मोहन रेड्डी-शर्मिला

आंध्र प्रदेश की सियासत में जगन मोहन रेड्डी और उनकी बहन शर्मिला रेड्डी की भी खूब चर्चा होती रही है। उनके पिता वाईएसआर रेड्डी संयुक्त आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उन्हें कांग्रेस का कद्दावर नेता माना जाता था। हालांकि पिता के निधन के बाद जगनमोहन रेड्डी ने कांग्रेस से अपनी सियासी राहें अलग कर ली थीं। उन्होंने अलग राजनीतिक दल बनाकर आंध्र प्रदेश में अपनी ताकत दिखाई।

मौजूदा समय में वे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल रहे हैं। शर्मिला सुर्खियों में पहली बार तब आईं, जब पिता की मृत्यु के बाद भाई जगनमोहन अपनी अलग पार्टी वाईएसआर कांग्रेस बनाकर अपना राजनीतिक आधार तलाश रहे थे। कुछ समय बाद जब आय से अधिक संपत्ति के मामले में उन्हें जेल जाना पड़ा तो वह शर्मिला ही थीं, जिन्होंने भाई की गैरमौजूदगी में पार्टी को खड़ा किया। 2019 में एक बार फिर वे अपनी पार्टी और अपने भाई के लिए जनसमर्थन जुटाने के मकसद से लोगों के बीच गईं और उन्होंने 11 दिन बस के जरिए पूरे प्रदेश में जनसंपर्क अभियान चलाया।

भाई और बहन की मेहनत ने रंग दिखाया और जगनमोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए। शर्मिला रेड्डी ने भले ही राजनीति में अपनी शुरुआत भाई की मदद के लिए की हो, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते उन्होंने भाई से अलग होकर 2021 में अपनी पार्टी बनाई। शर्मिला की पार्टी मुख्य रूप से तेलंगाना में सक्रिय है।

राहुल महाजन-पूनम महाजन

प्रमोद महाजन को एक समय भाजपा का दिग्गज नेता माना जाता था। अटल और आडवाणी के दौर में भाजपा की रणनीति बनाने में प्रमोद महाजन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हुआ करती थी। वैसे तो प्रमोद महाजन का रिश्ता महाराष्ट्र से था मगर वे अन्य राज्यों में भी पार्टी की रणनीति बनाने में प्रभावी भूमिका निभाते थे। राहुल महाजन और पूनम महाजन प्रमोद महाजन की संताने हैं।

राहुल महाजन पेशे से पायलट हैं और वे राजनीति के मैदान में सक्रिय नहीं है मगर पूनम महाजन ने अपने पिता की विरासत संभाल रखी है। मौजूदा समय में पूनम महाजन उत्तर-मध्य मुबंई से बीजेपी की लोकसभा सांसद हैं। वे पार्टी की ओर से आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती रही हैं।

वसुंधरा, यशोधरा और माधवराव

सियासी मैदान में मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान तक तीन भाई-बहनों की काफी धमक रही। माधवराव सिंधिया को मध्य प्रदेश का मजबूत नेता माना जाता था और उन्होंने केंद्र सरकार में भी कई मंत्रालयों का कामकाज संभाला। उन्होंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी संभाली। उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2020 में कांग्रेस से अलग होकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी और मौजूदा समय में ज्योतिरादित्य मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

माधवराव सिंधिया की दो बहनें वसुंधरा और यशोधरा भी राजनीति के मैदान में अपनी ताकत दिखाने में कामयाब रही हैं। यशोधरा फिलहाल मध्य प्रदेश में मंत्री हैं जबकि वसुंधरा राजे ने दो बार मुख्यमंत्री के रूप में राजस्थान की कमान संभाली। राजस्थान में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और वसुंधरा समर्थकों की ओर से एक बार फिर उन्हें सीएम पद का चेहरा घोषित करने की मांग की जा रही है।

हालांकि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अभी तक इस दिशा में कम नहीं उठाया है। राजस्थान में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व चाहकर भी अभी तक वसुंधरा के कद वाला कोई दूसरा नेता नहीं पैदा कर सका है। इसी से समझा जा सकता है कि राजस्थान की सियासत में वसुंधरा राजे अभी भी कितनी ताकतवर बनी हुई हैं।

विजयलक्ष्मी पंडित-जवाहरलाल नेहरू

भारतीय राजनीति में भाई-बहन की जोड़ी की चर्चा हो और पंडित जवाहरलाल नेहरू और विजयलक्ष्मी पंडित का उल्लेख न किया जाए,ऐसा हो नहीं सकता। भारतीय राजनीति में पंडित जवाहरलाल नेहरू और विजयलक्ष्मी पंडित को भाई-बहन की पहली जोड़ी के रूप में देखा जाता है। देश की आजादी की लड़ाई लड़ने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कांग्रेस के कद्दावर नेता जवाहरलाल नेहरू 1947 में आजादी मिलने के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री बने।

उन्होंने 1964 में अपने निधन तक प्रधानमंत्री पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाली। देश के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है क्योंकि उनकी अगुवाई में ही देश में महत्वपूर्ण संस्थानों की नींव रखी गई और देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण योजनाओं पर काम शुरू हुआ।

पंडित नेहरू के निधन के बाद भी उनका परिवार भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण धुरी बना हुआ है। पंडित नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित आजादी के बाद बनी अंतरिम सरकार में मंत्री बनने वाली पहली महिला थीं। इसके बाद वे महाराष्ट्र की राज्यपाल भी रहीं। उन्होंने अपने पति के साथ आजादी के आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।

Tags:    

Similar News