किसानों का चक्का जामः भारी न पड़ जाए ताकत दिखाना, ये है बड़ी जिम्मेदारी
टैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद अब किसानों ने छह फरवरी को दोपहर 12 बजे से तीन बजे के बीच देशव्यापी चक्का जाम का एलान किया है।
रामकृष्ण वाजपेयी
दिल्ली में नवंबर माह से धरना प्रदर्शन कर रहे संयुक्त किसान मोर्च के तहत जुटे किसान संगठनों को सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने आंदोलन को जिंदा रखने की है। इसी वजह से खापों और किसान महापंचायतों के जरिये समर्थन जुटाने की मुहिम के साथ किसान नेता विरोध जताने के नये कार्यक्रमों का एलान निरंतर एलान करते जा रहे हैं। इसमें कुछ ज्यादा ही तेजी ये बता रही है कि किसान आंदोलन के बीच सबकुछ सामान्य नहीं है जितना ऊपर से दिखायी दे रहा है।
टैक्टर रैली हिंसा के बाद किसानों का चक्का जाम
टैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद अब किसानों ने छह फरवरी को दोपहर 12 बजे से तीन बजे के बीच देशव्यापी चक्का जाम का एलान किया है। ट्रैक्टर रैली भी देश व्यापी थी जिसे राज्य व जिला मुख्यालयों पर होना था लेकिन उसके लिए राज्यों में उतना समर्थन नहीं जुट पाया था और दिल्ली के अलावा हरियाणा, पंजाब के कुछ स्थानों को छोड़कर कहीं इस ट्रैक्टर रैली का कोई खास असर नहीं दिखा था।
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किसान नेताओं के लिए खतरे की घंटी
अगर दिल्ली एनसीआर और लालकिले की घटनाएं न हुई होतीं तो दिल्ली को छोड़कर कहीं ट्रैक्टर रैली का कोई असर ही नहीं था। यह किसान नेताओं के लिए खतरे की घंटी है। इसीलिए अब वह इस आंदोलन को देशव्यापी बनाने पर फोकस कर रहे हैं। ताकि इसका असर देश भर में महसूस हो।
किसानों का समर्थन जुटा पाना टेढ़ीखीर
हालांकि पंजाब हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को छोड़कर अन्य राज्यों में किसानों का समर्थन जुटा पाना किसान नेताओं के लिए टेढ़ीखीर है। क्योंकि जाटों और गुर्जरों के गांवों की जिस तरह से जातीय आधार पर बसावट है उस तरह की बसावट देश के अन्य गांवों में नहीं है। किसान जातीयों में बंटे हैं। दलगत विचारधाराओं में बंटे हैं। ऐसे में उनका समर्थन हासिल कर पाना आसान नहीं है।
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इन हालात के अलावा किसान नेताओं की दूसरी बड़ी जिम्मेदारी ट्रैक्टर रैली से किसान आंदोलन को लगे धब्बे को साफ करने के लिए इस बार के चक्का जाम को पूर्णतः शांतिपूर्ण ढंग से करना भी है।
आंदोलनकारियों पर सख्ती बरतने से नहीं चूकेगी सरकार
केंद्र सरकार बातचीत करना चाहती है लेकिन अराजकता की स्थिति उत्पन्न होने पर वह आंदोलनकारियों पर सख्ती बरतने से नहीं चूकेगी। सरकार ने विपक्षी दलों को भी आगाह किया है कि किसानों का इस्तेमाल एक और शाहीन बाग बनाने के लिए नहीं होना चाहिए।
दिल्ली की गई छह स्तरीय बेरीकेडिंग इसी प्रक्रिया का एक चरण है जिसके तहत आंदोलनकारियों के वेश में उत्पातियों को दिल्ली में घुसकर गड़बड़ी करने से रोकना है।
किसान नेताओं को भी इस पर विचार करना चाहिए कि उन्हें फोकस वार्ता कर समस्या के समाधान पर करना है या आंदोलन को लंबा खींचते हुए इसे एक अंधी खाई में धकेल देना है जिससे किसी का भला नहीं होगा।
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