राम मंदिर विवाद: जानिए कब दायर हुआ था पहला मुकदमा, अयोध्या में लगी धारा 144
अयोध्या में राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में आज यानी सोमवार से आखिरी दौर की सुनवाई शुरू हो रही है। इसकी वजह से अयोध्या में हाई अलर्ट है। इसके साथ ही प्रशासन ने अयोध्या में धारा 144 लगा दी है और जिले की सुरक्षा चाक चौबंद कर दी गई है।।
नई दिल्ली: अयोध्या में राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में आज यानी सोमवार से आखिरी दौर की सुनवाई शुरू हो गई है। इसकी वजह से अयोध्या में हाई अलर्ट है। इसके साथ ही प्रशासन ने अयोध्या में धारा 144 लगा दी है और जिले की सुरक्षा चाक चौबंद कर दी गई है।
राम मंदिर पर संभावित फैसले को देखते हुए अयोध्या जिले में 10 दिसंबर तक धारा 144 लगा दी गई है। दीपोत्सव, चेहल्लुम और कार्तिक मेले के दौरान जिले में निषेधाज्ञा लागू रहेगी। इसके साथ जिले में बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों को तैनात करने का निर्णय लिया गया है। अयोध्या में पीएसी, सीआरपीएफ और रैपिड एक्शन फोर्स की कंपनियों के जवान तैनात किए जाएंगे।
यह भी पढ़ें...अभी-अभी हुआ बड़ा ब्लास्ट, 7 की मौत, CM योगी ने जताया दुख
जिला प्रशासन को अलर्ट पर रखा गया है। सुरक्षा व्यवस्था के लिए बड़ी संख्या में फोर्स की मांग की गई है। इसके साथ ही सुरक्षाबलों के लिए जिले के 200 स्कूलों को आरक्षित कर दिया गया है और स्कूलों की लिस्ट प्रशाशन को भेज दी गई है।
गौरतलब है कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सुनवाई के लिए 17 अक्टूबर की समयसीमा तय कर दी थी। इसके साथ उन्होंने सुनवाई पूरी होने के बाद एक महीने के अंदर फैसला आने की उम्मीद जताई थी।
यह भी पढ़ें...धुआंधार चली गोलियां! पाकिस्तान की तीन चौकियों को किया तबाह, एक जवान शहीद
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर की संविधान पीठ राम मंदिर मुद्दे पर सुनवाई कर रही है। संविधान पीठ ने सौहार्दपूर्ण हल निकालने के लिए मध्यस्थता की प्रक्रिया फेल हो जाने के बाद 6 अगस्त से प्रतिदिन की कार्यवाही शुरू की थी।
जानिए कब दायर हुआ पहला मुकदमा
बता दें कि अयोध्या में राम मंदिर विवाद को लेकर पहले निचली अदालत में पांच मुकदमे दायर किए गए थे।
यह भी पढ़ें...मुसलमानों के लिए खतरे की घंटी: चीन तोड़ रहा मस्जिद और कब्रिस्तान को, पढ़ें पूरा मामला
-पहला केस एक श्रद्धालु गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में दायर किया था। उन्होंने कोर्ट से हिंदुओं को विवादित स्थल में प्रवेश करने और पूजा करने का अधिकार दिए जाने की मांग की थी। उसी साल परमहंस रामचंद्र दास ने भी कोर्ट से पूजा करने की अनुमति देने और राम लला की मूर्ति को केंद्रीय गुंबद, अब ध्वस्त विवादित ढांचे, में रखे जाने की मांग की थी। बाद में परमहंस रामचंद्र दास ने अपनी याचिका वापस ले ली थी।
-साल 1959 में निर्मोही अखाड़ा निचली अदालत पहुंचा और 2.77 एकड़ विवादित जमीन के प्रबंधन और 'शेबायती' (सेवक) का अधिकार देने की मांग की।
-इसके बाद 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी कोर्ट पहुंच गया और उसने विवादित संपत्ति पर अपना दावा पेश किया।
यह भी पढ़ें...मोदी सरकार ने दिया आदेश- दिखते ही मार गिरा दो, सेना मुस्तैद
-फिर 'राम लला विराजमान' की तरफ से फैजाबाद की जिला अदालत में 1989 में विवादित स्थल पर मालिकाना हक का दावा किया गया। यह मुकदमा इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल ने भगवान राम का निकट मित्र बनकर दायर किया था। आगे यही मुकदमा मुख्य केस बन गया और इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला भी इसी मुकदमे पर सुनाया गया। इस केस को वाद संख्या पांच कहा गया।
कार सेवकों ने 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहा दिया जिसके बाद इन सभी मुकदमों को इलहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर किया गया।