सात साल में सरकारी खजाने का घाटा सबसे ज्यादा, अब आपकी जेब से होगी भरपाई!

वर्ष 2019-20 में सरकारी खजाने का घाटा सात साल में सबसे ज्यादा रहा। इस साल की जीडीपी ग्रोथ रेट की बात करें तो ये 11 साल के सबसे निचले स्तर पर है। इसमें ध्यान देने वाली बात ये है कि सरकार ने जितना अनुमान लगाया था उससे कही ज्यादा ये घाटा हुआ है।

Update: 2020-05-30 06:46 GMT

नई दिल्ली: पूरा देश इस समय कोरोना के खिलाफ जंग में जुटा हुआ है। कोरोना की वजह से लॉकडाउन लागू होने का नुकसान आम जनता से लेकर सरकार तक को भुगतना पड़ रहा है।

वर्ष 2019-20 में सरकारी खजाने का घाटा सात साल में सबसे ज्यादा रहा। इस साल की जीडीपी ग्रोथ रेट की बात करें तो ये 11 साल के सबसे निचले स्तर पर है। इसमें ध्यान देने वाली बात ये है कि सरकार ने जितना अनुमान लगाया था उससे कही ज्यादा ये घाटा हुआ है।

क्या कहते हैं आंकड़े

अगर हम 2012-13 में राजकोषीय घाटे को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि ये 4.9 प्रतिशत थी। वहीं वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.4 प्रतिशत रहा।

अगर हम वर्ष 2019-20 की बात करें तो देश का राजकोषीय घाटा 2019-20 में बढ़कर जीडीपी का 4.6 प्रतिशत रहा जो सात साल का उच्च स्तर है।

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि सरकार ने 3.8 प्रतिशत घाटे का अनुमान लगाया था। लेकिन जो आंकड़े सामने आए हैं वो सरकार के अनुमान से कहीं ज्यादा है।

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सरकार ने दी ये सफाई

आंकड़ों के अनुसार राजस्व घाटा भी बढ़कर 2019-20 में जीडीपी का 3.27 प्रतिशत रहा जो सरकार के 2.4 प्रतिशत के अनुमान से अधिक है।

तब सरकार ने कहा था कि इसे 3.3 प्रतिशत के स्तर पर रखा जा सकता था लेकिन किसानों के लिये आय सहायता कार्यक्रम (किसान सम्मान निधि) से यह बढ़ा है। आपको बता दें कि सरकार ने एक फरवरी 2019 को 2019-20 का अंतरिम बजट पेश करते हुए किसान सम्मान निधि (किसानों को नकद सहायता) के तहत 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया।

घाटे की भरपाई के लिए क्या करती है सरकार

पेट्रोल-डीजल पर अतिरिक्तत टैक्स लगाने का फैसला भी राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए लिया जाता है। यानी इसकी आंच आपकी जेब तक पहुंचती है। कहने का मतलब ये हुआ कि राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए सरकार कर्ज लेने को मजबूर होती है और फिर ब्याज समेत चुकाती है।

इस घाटे को पूरा करने के लिए सरकार की ओर से तरह-तरह के उपाय किए जाते हैं। बढ़ते राजकोषीय घाटे का असर वही है, जो आपकी कमाई के मुकाबले खर्च बढ़ने पर होता है। खर्च बढ़ने की स्थिति में हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज लेते हैं। इसी तरह सरकारें भी कर्ज लेती हैं।

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क्या है इसका कारण?

पिछले वित्त वर्ष में खाद्य सब्सिडी 1,08,688.35 करोड़ रुपये रही, यह सरकार के अनुमान के बराबर है। हालांकि पेट्रोलियम समेत कुल सब्सिडी कम होकर 2,23,212.87 करोड़ रुपये रही जो सरकार के अनुमान में 2,27,255.06 करोड़ रुपये थी।

मुख्य रूप से राजस्व संग्रह कम होने से राजकोषीय घाटा बढ़ा है। ये आंकड़े बताते हैं कि टैक्स कलेक्शन कम रहने के कारण सरकार की उधारी बढ़ी है। आंकड़ों के मुताबिक सरकार का कुल खर्च 26.86 लाख करोड़ रुपये रहा जो पूर्व के 26.98 लाख करोड़ रुपये के अनुमान से कुछ कम है।

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