तो क्या प्रेसिडेंट, पीएम, सीएम को पद से हटने के बाद नहीं मिलेंगे सरकारी बंगले?
तो क्या अब राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को उनके पद से हटने के बाद सरकारी बंगले नहीं मिलेंगे? जी हां अगर न्याय मित्र की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट अपनी मुहर लगा देता
लखनऊ: तो क्या अब राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को उनके पद से हटने के बाद सरकारी बंगले नहीं मिलेंगे? जी हां अगर न्याय मित्र की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट अपनी मुहर लगा देता है तो बहुत से बड़े नेताओं को सरकारी बंगला खाली करना पड़ सकता है।
न्याय मित्र गोपाल सुब्रम्णयम ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी है जिसमें उन्होंने किसी भी आम इंसान के सरकारी संपति का इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताई है। इस मामले में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिका के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने न्याय मित्र का गठन किया और जांच के बाद सुब्रम्णयम ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर सुप्रीम कोर्ट को सौंपी।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से किसी वरिष्ठ वकील को एमीकस क्यूरी (न्याय मित्र) के रूप में नियुक्त किया जाता है। ये पूरा मामला अखिलेश यादव के कार्यकाल में यूपी में पूर्व सीएम को सरकारी आवास मिलने संबंधी कानून बनाए जाने को लेकर है। न्याय मित्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सिर्फ पूर्व सीएम नहीं बल्कि पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी सरकारी आवास नहीं दिए जाने चाहिए।
सुब्रम्णयम ने कहा, "एक बार पद छोड़ने के बाद सरकारी ऑफिस की तरह इसे छोड़ देना चाहिए। पद छोड़ने के बाद वह आम भारतीय नागरिक की तरह हो जाता है, उन्हें अन्य आम नागरिकों से ज्यादा सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए।
हालांकि रिपोर्ट में साफ किया गया है कि पद से हटने के बाद के प्रोटोकॉल, पेंशन और रिटायरमेंट के बाद मिलनी वाली अन्य सुविधाएं यथावत रहे लेकिन किसी आम आदमी को सरकारी संपति के इस्तेमाल की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए।
संविधान का उल्लंघन है यह कानून
- जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच को सौंपे अपने रिपोर्ट में कहा कि सार्वजनिक पदों से हटने के बाद लोगों को मिलने वाले सरकारी आवास की अनुमति देने वाले कानून वास्तव में संविधान की धारा 14, समानता का अधिकार का उल्लंघन करता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने 23 अगस्त को सुब्रम्णयम को न्याय मित्र के रूप में नियुक्ति कर सुझाव देने को कहा था कि क्या यूपी में पूर्व सीएम को सरकारी आवास मिलने चाहिए या नहीं।
- इस संबंध में कोर्ट में एनजीओ लोक प्रहरी ने यूपी सरकार की ओर से पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला दिए जाने के फैसले के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की थी।
अगस्त, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले पर कहा था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला दिया जाना कानून में गलत है। उन्हें ऐसे बंगले छोड़ देने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने यूपी मिनिस्टर्स (सैलरीज, अलाउंस एंड मिसलेनियस प्रविजन्स) एक्ट में सुधार करते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास दिए जाने की नई व्यवस्था बना दी। यह जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बनाए गए इसी कानून के खिलाफ दाखिल की गई थी।
सुब्रम्णयम ने सरकारी आवास को संग्रहालय बनाए जाने का भी विरोध किया है। उनके अनुसार, सरकारी संपति को किसी हस्ती के सम्मान में संग्रहालय के रूप में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए।