Same Sex Marriage: पूर्व जजों, राजदूतों नौकरशाहों ने समलैंगिक विवाह मुद्दे पर राष्ट्रपति को लिखा पत्र,..धक्का पहुंचा है

Same Sex Marriage : समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय में 27 अप्रैल को भी सुनवाई हुई। देश के पूर्व जज, नौकरशाह और पूर्व राजदूत ने इसके विरोध में राष्ट्रपति को पत्र लिखा है।

Update:2023-04-27 23:15 IST
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Social Media)

Same Sex Marriage : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। इस बीच 121 पूर्व जजों, 6 पूर्व राजदूतों (Former Ambassadors) और 101 पूर्व नौकरशाहों (Bureaucrats) ने समलैंगिक विवाह मुद्दे पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) को पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) करने वालों की शादी को कानूनी वैधता प्रदान करने की कोशिशों से उन्हें धक्का पहुंचा है। यदि इसकी अनुमति दी गई, तो पूरे देश को इसकी कीमत चुकानी होगी। हमें लोगों के भले की चिंता है।

राष्ट्रपति मुर्मू को लिखे पत्र में कहा गया है कि, सर्वोच्च न्यायालय को यह बताया जाना चाहिए कि 'नई लकीर खींचने' की सांस्कृतिक नुकसान पहुंचाने वाली है। इसका समाज पर क्या असर होगा? हमारा समाज समलैंगिक यौन संस्कृति को स्वीकार नहीं करता। विवाह की अनुमति देने पर ये आम हो जाएगी। हमारे बच्चों का स्वास्थ्य तथा सेहत खतरे में पड़ जाएगा।

ऐसे में 'परिवार' और 'समाज' जैसी संस्थाएं नष्ट हो जाएंगी

पत्र में ये भी कहा गया है कि, इससे 'परिवार' और 'समाज' नाम की संस्थाएं नष्ट हो जाएंगी। पूर्व जजों और नौकरशाहों ने साफ-साफ कहा इस बारे में कोई भी फ़ैसला करने का अधिकार केवल संसद को ही है। पार्लियामेंट में लोगों के प्रतिनिधि होते हैं। अनुच्छेद 246 (Article 246) में विवाह एक सामाजिक कानूनी संस्थान है। ये केवल सक्षम विधायिका द्वारा ही रचित, स्वीकृत और कानूनी मान्यता प्रदान हो सकता है।

सेम सेक्स मैरिज मुद्दे को संसद पर छोड़ दें

समलैंगिक विवाह का मुद्दा जब से सुप्रीम कोर्ट के सामने आया है तब से केंद्र सरकार इसका विरोध करती रही है। केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पहले ही आग्रह किया था कि इस मसले को संसद पर छोड़ देना चाहिए। केंद्र सरकार ने एक दिन पहले भी शीर्ष अदालत को कहा था कि, कोर्ट न तो कानूनी प्रावधानों को नये सिरे से लिख सकती है, न ही किसी कानून के मूल ढांचे को बदल सकती है। जैसा कि इसके निर्माण के समय कल्पना की गई थी। केंद्र ने अदालत से अनुरोध किया कि वह समलैंगिक विवाहों को कानूनी मंजूरी देने संबंधी याचिकाओं में उठाए गए प्रश्नों को संसद के लिए छोड़ने पर विचार करें।

कई समूहों का समर्थन भी

वहीं, लॉ स्कूल (law school) के स्टूडेंट्स के 30 से अधिक LGBTQIA++ समूहों ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के उस प्रस्ताव की निंदा की है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई न करने की अपील की गई है। इन समूहों ने बार काउंसिल के इस प्रस्ताव को 'संविधान विरोधी' करार दिया।

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