सवर्ण आरक्षण नहीं आसान, वोट का दरिया है हर दल को थाम कर रखना है
आप अपने देश को भारत कहें। इंडिया कहें। या फिर हिन्दुस्तान। कोई फर्क नहीं पड़ता। देश वही रहेगा। गलती राजनीति की है। जिसने इस देश को ना सिर्फ कई नाम दिए बल्कि टुकड़ों में भी बांट दिया। अंग्रेजों से लड़ाई में देश एक था। न कोई सवर्ण था। न कोई हरिजन था। न कोई गुजराती था। न कोई मराठी था। इस देश के निवासी सभी जन एक थे।
आशीष शर्मा 'ऋषि'
आप अपने देश को भारत कहें। इंडिया कहें। या फिर हिन्दुस्तान। कोई फर्क नहीं पड़ता। देश वही रहेगा। गलती राजनीति की है। जिसने इस देश को ना सिर्फ कई नाम दिए बल्कि टुकड़ों में भी बांट दिया। अंग्रेजों से लड़ाई में देश एक था। न कोई सवर्ण था। न कोई हरिजन था। न कोई गुजराती था। न कोई मराठी था। इस देश के निवासी सभी जन एक थे। रुप। रंग। वेश। भाषा। सबकी अलग थी। पर सभी एक थे। देश एक था। आजादी मिलने के साथ सबसे पहले देश धर्म के नाम पर बंटा। यह सिलसिला शुरू होने पर थमा नहीं। देश के भीतर सभी जाति, समुदाय, ऊँच, नीच, राज्य, शहर, जिलों, अगड़ों, पिछड़ों में बंटते चले गए।
यह भी पढ़ें……सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले का कांग्रेस ने किया समर्थन
आरक्षण की राजनीति
आरक्षण के नाम पर राजनीति शुरू हो गई। लेकिन ना समझ ये भूल गए कि आरक्षण के मूल में उन्नति और बराबरी का मंत्र था ना की किसी को दबाने का। जिन्होंने सदियों दुत्कार झेली उन्हें समाज में बराबरी का हिस्सा मिलें अपनों में मान मिले इसका ध्यान रखा गया। लेकिन ये नेता सिर्फ सत्ताधारी होने के लिए आरक्षण के मुद्दे को ज्वलंत बनाए हुए हैं । 7 जनवरी को जो सवर्णों के लिए 10 फीसदी के आरक्षण का शिगूफा केंद्र सरकार ने छोड़ा वो भी सिर्फ राजनीति का ही हिस्सा है। इससे किसी का कोई भला नहीं होना, क्योंकि इसके जो मानक तय हो रहे हैं उसके मुताबिक तो ये पारित ही नहीं हो सकता है। ये फैसला सिर्फ चुनाव जीतने वाला सियासी जुमला ही है। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय कर रखी है। इससे अधिक आरक्षण होने पर इसकी न्यायिक समीक्षा होगी। मामला कोर्ट के सामने आएगा तो इस फैसले का टिकना मुश्किल होगा। उसके बाद चुनावी सभाओं में हमारे पीएम नरेंद्र मोदी अपने को शहीद बता वोट बटोरेंगे।
तो इस आरक्षण बेला में हम आपको वो सब बता रहे हैं जिसे जानना आपके लिए बहुत जरुरी है…शुरू करते हैं इंदिरा साहनी के केस से.. जिसमें वर्ष 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। इससे ज्यादा आरक्षण देने पर सरकार के निर्णय की समीक्षा होगी। वैसे मोदी सरकार से पहले भी वोटों को भुनाने के लिए सरकारों ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने का प्रयास किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सभी फैसलों को पलट दिया। अब आप ये जानना चाहते होंगे की ये सब कब हुआ तो जानिए।
मोदी से पहले इन नेताओं ने अजमाया सवर्ण आरक्षण में हाथ
बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले सवर्णों को आरक्षण का लालीपॉप दिया था। साल था 1978.. जब राज्य के सीएम ने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलने के बाद सवर्णों को भी 3 प्रतिशत आरक्षण दे दिया। मामला कोर्ट के सामने आया तो सवर्णों का आरक्षण समाप्त हो गया।
यह भी पढ़ें……मंदिर नहीं आरक्षण चाहिए अति पिछड़ो को: राष्ट्रीय आरक्षण आंदोलन संगठन
साल 1990, तारीख 13 अगस्त, इसी दिन कुख्यात मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू हुई। इसके बाद तत्कालीन पीएम पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार (यहां ये जान लेना आवश्यक है कि कांग्रेस बहुत पहले सवर्णों के लिए ये स्कीम लाने की तैयारी में थी) ने आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण दिया। लेकिन साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस फैसले को खारिज कर दिया।
गुजरात की पूर्व सीएम आनंदी बेन पटेल ने अप्रैल 2016 में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को आरक्षण में 10 फीसदी कोटा दिया। इसके बाद अगस्त 2016 में गुजरात हाईकोर्ट ने इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक बताकर समाप्त कर दिया। इसके बाद एक बार फिर 1 मई, 2016 को गुजरात स्थापना दिवस पर सवर्णों को आरक्षण देने का निर्णय लिया था। अब ये बिल सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच में विचाराधीन है।
यह भी पढ़ें……लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार का बड़ा फैसला, सवर्ण जातियों को मिलेगा 10% आरक्षण
साल 1951 से ही तमिलनाडु में 41 प्रतिशत आरक्षण है। इसके बाद ये वोटों की चाहत में 69 फीसदी कब पहुंच गया पता ही नहीं चला। मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में है। राज्य की पूर्व सीएम जयललिता ने अपने फैसले को संविधान की नौवीं अनुसूची में डलवा दिया था। ताकि इसकी न्यायिक समीक्षा न हो सके। लेकिन इसके बाद भी अभी अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।
साल 2014 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार का मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला पलट दिया। मराठों के प्रदर्शन के बाद देवेंद्र फणनवीस सरकार ने विधानसभा में एक बार फिर प्रस्ताव पास करके मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया है। महाराष्ट्र में 52 प्रतिशत आरक्षण पहले से ही है।
राजस्थान में सवर्णों को 14 प्रतिशत आरक्षण की मांग वर्षों से उठती रही है। विधानसभा में इस संबंध में विधेयक पारित हो चुका है। सरकार इस कानून को संविधान की 9वीं अनुसूची में डलवाने के प्रयास भी करती रही है।
यह भी पढ़ें…..महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के ठीक पहले मराठा आरक्षण की राजनीति
ये तो रही कोशिशों की बात अब जानिए किसे कितना मिल रहा है आरक्षण
अनुसूचित जाति- 15
अनुसूचित जनजाति- 7.5
अन्य पिछड़ा वर्ग- 27
कुल आरक्षण- 49.5
अब जानिए क्या कहता है हमारा संविधान?
पहले तो इस बता की गांठ बांध लीजिए की आरक्षण का पैमाना सामाजिक असमानता है धरना प्रदर्शन या आय- संपत्ति के आधार पर आरक्षण देश के अंदर नहीं दिया जाता है। संविधान का अनुच्छेद 16(4) कहता है, आरक्षण किसी समूह को दिया जाता है किसी व्यक्ति को नहीं।
यह भी पढ़ें…..महाराष्ट्र सरकार का बड़ा फैसला, मराठों को मिलेगा 16 फीसदी आरक्षण
सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है
कोर्ट कहता है, आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है।
अब जानिए मोदी जी क्या लाए हैं
तारीख नोट कीजिए ...8 जनवरी, 2019 इसी दिन केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने लोकसभा में सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने वाला बिल– 124वां संशोधन विधेयक पेश किया। इसमें कहा गया कि शिक्षा के क्षेत्र में मिलने वाला आरक्षण उन सभी शिक्षण संस्थाओं में भी लागू होगा जिन्हें सरकारी सहायता नहीं मिलती है, इन्हें ही हम निजी कॉलेज के नाम से जानते हैं।
यह भी पढ़ें…..पहले की तरह प्रमोशन में आरक्षण की सुविधा दे सकती हैं सरकारें
आपको बता दें, फिलहाल एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण सरकार द्वारा या सरकारी मदद से चलने वाले कॉलेज में पूरा का पूरा लागू होता है। सरकारी यूनिवर्सिटी से अफीलिएटेड कॉलेज में भी आरक्षण मिलता है। यहाँ ये जान लीजिए प्राइवेट कॉलेज की इंजीनियरिंग और मेडिकल की सीटों में आरक्षण को लेकर हमेशा विवाद बना रहता है।
अब जानिए क्या कहते हैं मंत्री जी
संविधान संशोधन बिल पर चर्चा करते हुए मंत्री अरुण जेटली ने कहा, निजी संस्थानों में आरक्षण लागू करने के लिए उसी शब्दावली का प्रयोग किया गया है, जिस शब्दावली में एससी-एसटी और ओबीसी को आरक्षण दिया गया है।
यह भी पढ़ें…..SC का बड़ा फैसला- आधार नागरिक की पहचान, प्रमोशन में आरक्षण का रास्ता साफ
अब वापस लौटते हैं सवर्णों के आरक्षण की ओर, 7 तारीख से बवाल मचा हुआ है सवर्ण आरक्षण का.. तो हमने कुछ बातें पता की और आप भी जान लीजिए।
सवर्ण नाम तो कहीं है नहीं
यह भी पढ़ें…..SC ने पदोन्नति में आरक्षण का फैसला राज्यों पर छोड़ा, 2006 की स्थिति बरकरार
सवर्ण कहते किसे हैं
भारतीय शासन व्यवस्था के अनुसार वह व्यक्ति जो सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से पिछड़ा न हो वो सवर्ण है।
7- 8 लाख वाली बात भी सही नहीं है
बिल में कहा गया है कि वो समय-समय पर ‘इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन’ की परिभाषा बदलती रहेगी। इसके लिए ‘परिवार की आय’ और ‘आर्थिक कठिनाई’ को आधार बनाया जाएगा।
इनमें से कुछ भी फिक्स नहीं
जिनकी आठ लाख से कम आमदनी हो।
जिनकी कृषि भूमि 5 हेक्टेयर से कम हो।
जिनका घर 1000 स्क्वायर फीट से कम हो ।
जिनके पास निगम में आवासीय प्लॉट हो तो 109 यार्ड से कम हो।
जिनके पास निगम से बाहर प्लॉट हो तो 209 यार्ड से कम हो।
यह भी पढ़ें…..उपेन्द्र कुशवाहा बोले- SC और HC में लोकतंत्र नहीं, निजी क्षेत्र में भी मांगा आरक्षण
क्या नया है सवर्णों को आरक्षण देने का मुद्दा?
आपको बता दें बीजेपी ने अपनी पिछली सरकार में वर्ष 2003 में एक मंत्री समूह का गठन किया था। हालांकि इसका कोई लाभ नहीं हुआ और वाजपेयी सरकार वर्ष 2004 का चुनाव इंडिया शाइनिंग के साथ हार गई। इसके बाद सत्ता में आई कांग्रेस ने वर्ष 2006 में एक कमेटी बनाई जिसको आर्थिक रूप से पिछड़े उन वर्गों का अध्ययन करना था जो मौजूदा आरक्षण व्यवस्था के दायरे में नहीं आते हैं। लेकिन इसका क्या हुआ किसी को नहीं पता।
फिर हुआ तो हुआ क्या
वैसे हम बता चुके हैं लेकिन फिर भी पढ़ लीजिए.. वर्ष 1991 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद तत्कालीन पीएम पीवी नरसिंह राव ने गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने का निर्णय किया था। लेकिन वर्ष 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया।
भारत में सबसे पहले कहां लागू हुआ था आरक्षण
वर्ष 1902 में कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति साहूजी महाराज ने पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने के लिए और प्रशासन में उन्हें हिस्सा देने के लिए आरक्षण का आरंभ किया । कोल्हापुर में पिछड़े वर्गों/समुदायों को नौकरियों में आरक्षण देने के लिए 1902 में अधिसूचना जारी हुई । दलित वर्गों को सबल बनाने के लिए ये पहला सरकारी आदेश है।
इससे पहले भी बहुत कुछ हुआ है
वर्ष 1882 में हंटर आयोग की नियुक्ति हुई। महात्मा ज्योतिराव फुले ने नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण या प्रतिनिधित्व की मांग की।
वर्ष 1891 में त्रावणकोर रियासत में सार्वजनिक सेवा में योग्य मूल निवासियों की अनदेखी और विदेशियों को भर्ती करने के विरुद्ध प्रदर्शन हुआ और नौकरियों में आरक्षण की मांग की गई।
वर्ष 1901 तक बड़ौदा और मैसूर की रियासतों में आरक्षण लागू हो चुका था।
वर्ष 1908 में अंग्रेजों द्वारा कई निम्न जातियों के साथ ही समुदायों के लिए आरक्षण आरंभ हुआ।
वर्ष 1909 में ब्रिटेन ने आरक्षण का प्रावधान किया।
वर्ष 1919 में मोंटेंग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों को आरंभ किया गया।
वर्ष 1919 में ही अधिनियम 1919 में आरक्षण का प्रावधान हुआ।
वर्ष 1921में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया, जिसमें गैर-ब्राह्मणों के लिए 44 फीसदी, ब्राह्मणों के लिए 16 फीसदी, मुसलमानों के लिए 16 फीसदी, भारतीय-एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 फीसदी और अनुसूचित जातियों के लिए 8 फीसदी आरक्षण दिया गया।
वर्ष 1935 में कांग्रेस ने पूना पैक्ट को अंजाम दिया, इसमें दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र आवंटित हुए।
वर्ष 1935 में अधिनियम 1935 में आरक्षण का प्रावधान किया गया ।
वर्ष 1942 में दलित चिन्तक और समाजसेवी बीआर अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना कर सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की।
वर्ष 1946 में भारत में कैबिनेट मिशन ने अन्य कई सिफारिशों के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव दिया।
वर्ष 1947 में आजादी के बाद अम्बेडकर को संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। भारतीय संविधान ने सिर्फ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को निषेध कर दिया, इसके साथ ही सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछले वर्गों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए संविधान में विशेष धाराएं रखी।
आगे जो लिखा गया है उसे ध्यान से पढ़िए ‘10 वर्षों के लिए उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किए गए ( इसके बाद हर 10 वर्ष के बाद सांविधानिक संशोधन के जरिए इन्हें फिर बढ़ा दिया जाता है)।
26/01/1950- भारत का संविधान लागू हुआ।
वर्ष 1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग का गठन हुआ । इसके बाद अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से सम्बंधित रिपोर्ट को स्वीकार किया गया । वहीं अन्य पिछड़ी जाति के लिए की गई सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया गया।
वर्ष 1956 में काका कालेलकर की रिपोर्ट के बाद अनुसूचियों में संशोधन हुआ।
वर्ष 1976 में भी अनुसूचियों में संशोधन हुआ। वर्ष 1979 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मंडल आयोग को स्थापित किया गया। आयोग के पास उपजाति, जो अन्य पिछड़े वर्ग कहलाती है, का कोई सटीक आंकड़ा था और ओबीसी की 52 फीसदी आबादी का मूल्यांकन करने के लिए वर्ष 1930 की जनगणना के आंकड़े का प्रयोग करते हुए । पिछड़े वर्ग के रूप में 1,257 समुदायों का वर्गीकरण किया गया।
वर्ष 1980 में आयोग ने रिपोर्ट पेश की और मौजूदा कोटा में बदलाव करते हुए 22फीसदी से 49.5फीसदी बढ़ोतरी करने की सिफारिश की।
वर्ष 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें तात्कालिक पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू की गई।
वर्ष 1991 में तात्कालिक पीएम नरसिम्हा राव ने सवर्णों में गरीबों के लिए 10 फीसदी आरक्षण आरंभ किया।
वर्ष 1995 में संसद ने 77वें सांविधानिक संशोधन द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए आरक्षण का समर्थन करते हुए अनुच्छेद 16(4)(ए) बनाया गया । इसके बाद 85वें संशोधन में अनुवर्ती वरिष्ठता को शामिल किया गया।
वर्ष 1998 में केंद्र सरकार ने विभिन्न सामाजिक समुदायों की आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए पहली बार राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण किया। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण का आंकड़ा 32 फीसदी है।
12 अगस्त 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने पीए इनामदार और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले में 12 अगस्त 2005 को 7 जजों द्वारा सर्वसम्मति से निर्णय सुनाते हुए घोषित किया कि राज्य पेशेवर कॉलेजों सहित सहायता प्राप्त कॉलेजों में अपनी आरक्षण नीति को अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक पर नहीं लाद सकता।
वर्ष 2005 में निजी शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए आरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए 93वां सांविधानिक संशोधन हुआ। इसने अगस्त 2005 में हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पलट दिया।
वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट की सांविधानिक बेंच में एम. नागराज और अन्य बनाम यूनियन बैंक और अन्य के मामले में सांविधानिक वैधता की धारा 16(4) (ए), 16(4) (बी) और धारा 335 के प्रावधान को सही ठहराया।
वर्ष 2006 से केंद्र सरकार के शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण आरंभ हुआ। इसके बाद कुल आरक्षण 49.5 फीसदी पहुंच गया ।
वर्ष 2007 में केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने स्थगन दिया ।
वर्ष 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल 2008 को सरकार पोषित संस्थानों में 27 फीसदी ओबीसी कोटा आरंभ करने के सरकारी फैसले का समर्थन किया । कोर्ट ने कहा मलाईदार परत को आरक्षण नीति के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए । क्या आरक्षण के निजी संस्थानों आरक्षण की गुंजाइश बनायी जा सकती है।
अब ये भी जान लीजिए कि जेटली ने क्या कहा है
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सदन के अंदर केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि आज तक कई सरकारें आईं, जिन्होंने अनआरक्षित वर्ग को आरक्षण देने की बात कही थी लेकिन सही रास्ता नहीं अपनाया।
उन्होंने कहा कि यह संविधान संशोधन दूसरे संविधान संशोधनों से अलग है। संविधान के आर्टिकल 15 और 16 में संशोधन करके नया क्लॉज जोड़ा जा रहा है, लिहाजा दोनों सदनों से पारित होने के साथ ही यह प्रभावी हो जाएगा।
यह भी पढ़ें…..पहले की तरह प्रमोशन में आरक्षण की सुविधा दे सकती हैं सरकारें
जेटली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी आरक्षण की सीमा एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग को लेकर तय की है। इससे पहले, जनरल कोटा की कोशिशें कोर्ट में इसलिए नहीं टिक पाई क्योंकि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान नहीं था। इस बार, संविधान संशोधन के जरिए यह प्रावधान किया जा रहा है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
अरुण जेटली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 50 फीसदी की अधिकतम आरक्षण की सीमा की वजह से कई राज्य ने पहले ऐसे आरक्षण लागू करने की कोशिश की, लेकिन वैसे कानूनों के लिए सोर्स ऑफ पावर नहीं था, इसलिए इन्हें लागू नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा कि यह न्यायिक समीक्षा में इसलिए टिकेगा क्योंकि इस विधेयक के जरिए संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में संशोधन किया गया है।
विपक्ष ने क्या कहा
पिछड़ों के उत्थान के लिए आरक्षण: थंबीदुरईलोकसभा में AIADMK सांसद थंबीदुरई ने कहा कि आरक्षण सामाजिक न्याय के लिए दिया जाता है, मुझे समझ नहीं आ रहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण की जरूरत क्या है। उन्होंने कहा कि पिछड़ों के उत्थान के लिए आरक्षण नीति लाई गई थी, लेकिन यह सरकार आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने जा रही, जबकि आपकी सरकार ने गरीबों के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। अगर आप गरीबों का आरक्षण देने जा रहे हैं तो सरकार की इन योजनाओं से क्या फायदा हुआ, इससे साफ है कि आपकी सारी योजनाएं फेल हो गई हैं।
सामाजिक तौर पर कमजोर लोगों के लिए आरक्षण बहुत जरूरी था, क्योंकि उसके बाद भी आजतक सामाजिक बराबरी नहीं आ पाई है। उन्होंने कहा कि सरकार को पहले सामाजिक तौर पर पिछड़ों को सशक्त करना चाहिए। जाट, पटेल से लेकर ओबीसी के कई वर्ग आरक्षण की मांग कर रहे हैं और अगर सभी को शामिल करेंगे तो सीमा 70 फीसदी तक चली जाएगी। पहले सरकार तमिलनाडु के 69 फीसदी आरक्षण दे उसके बाद इस बिल पर विचार किया जाएगा। अगर आप किसी को आज आर्थिक आधार पर आरक्षण देते हैं और कल वो नौकरी पाकर अमीर हो जाता है फिर क्या आरक्षण को खत्म कर दिया जाएगा. जाति इस समाज में सच है जो हमेशा बनी रहती है।
दुर्बल लोगों को आरक्षण से मदद मिलेगी: शिवसेना
शिवसेना सांसद ने आनंदराव अडसुल कहा कि आर्थिक रूप से दुर्बल लोगों को आरक्षण से काफी मदद मिलती है। लेकिन समाज में SC, ST और ओबीसी के अलावा भी अन्य वर्गों के लोग भी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक तौर पर कमोजरों को आरक्षण देने का समर्थन बाला साहब और हमारी पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे भी इसका समर्थन कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि इसमें साढ़े चार साल क्यों लगे यह सवाल मेरे मन भी आता है लेकिन कभी-कभी देरी से आए फैसले में दुरुस्त साबित होते हैं।टीएमसी ने सरकार की मंशा पर उठाये सवाल
टीएमसी के सुदीप बंधोपाध्याय ने बिल पर चर्चा करते हुए कहा कि बिल को पेश करने के समय से हमारे मन में शक पैदा हुई कि सरकार की मंशा आखिर है क्या। सरकार क्या वाकई में युवाओं को रोजगार देना चाहती है या फिर 2019 के चुनाव में फायदा उठाने के लिए यह कदम उठाया गया है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के आरक्षण बिल को क्यों नहीं लाया गया, क्या वह जरूरी नहीं था।टीएमसी सांसद ने कहा कि बिल का समर्थन कर भी दिया गया तो नौकरियों का देश में क्या हाल है, सरकार कैसे घोषित नीतियों को पूरा करने जा रही है। यह बिल युवाओं के बीच झूठी उम्मीदें जगाएगा जो कभी सच्चाई नहीं बन सकतीं। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी इस बिल का समर्थन करते हुए उम्मीद करती है कि युवाओं को रोजगार देने का काम होगा।
निजी क्षेत्र की नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण
थावर चंद गहलोत ने कहा कि भारत सरकार और राज्य सरकार की सेवाओं में 10 फीसदी आरक्षण देने का अधिकार होगा, इसके अलावा निजी क्षेत्र की नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। गहलोत ने कहा कि पहले भी इस तरह का आरक्षण देने की कोशिश की गई थी लेकिन संविधान में संशोधन के बगैर ऐसा नहीं किया जा सकता। मंत्री ने कहा कि संविधान में बदलाव के जरिए ही आरक्षण देना मुश्किल है ताकि बाद में कोई भी सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती नहीं दे सके।भारतीय जनता पार्टी ने अपने सभी सांसदों को सदन में उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी कर दिया है, जबकि कांग्रेस ने पहले ही अपने सांसदों के लिए सोमवार और मंगलवार को उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किया था।
विपक्ष इस बिल के चुनावी प्रभाव को देखते हुए विरोध तो नहीं कर रहा है, लेकिन सरकार की मंशा पर सवाल जरूर उठा रहा है। ऐसे में शीतकालीन सत्र का अंतिम दिन हंगामे की भेंट चढ़ सकता है। विपक्ष का कहना है कि सरकार के पास न तो संख्या बल है और न ही समय, तो संसद में इसे लाने का मकसद सिर्फ सियासी है।
लालू की आरजेडी ने लोकसभा में सवर्ण आरक्षण का विरोध किया है। आरक्षण बिल बोलते हुए आरजेडी सांसद जेपी नारायण यादव ने कहा कि सवर्ण आरक्षण बिल धोखा है।
सपा ने इस बिल का समर्थन किया है। आरक्षण बिल पर चर्चा के दौरान सपा सांद धर्मेंद्र यादव ने कहा कि आबादी के आधार पर आरक्षण मिले। सरकार सभी पदों पर असमानता दूर करे। इसके साथ ही धर्मेंद्र यादव सरकार की नीयत पर सवाल खड़ किए। धर्मेंद्र यादव ने पूछा कि कार्यकाल के आखिरी दिनों में क्यों बिल लाया गया?
10% आरक्षण का ये बिल संविधान के साथ धोखा: असदुद्दीन ओवैसी
बाबा साहब अंबेडकर का अपमान है सवर्ण आरक्षण बिल: ओवैसी
-सवर्ण आरक्षण बिल का फैसला ऐतिहासिक: रामदास अठावले
-10 फीसदी आरक्षण का बिल चुनावी स्टंट: भगवंत मान
-PM मोदी का 56 इंच का सीना लोगों के भले के लिए: महेंद्रनाथ पांडे