सोशल मीडिया से कमाई: गूगल, फेसबुक की घेराबंदी, कंटेंट के लिए मांगा पैसा

भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने केंद्र सरकार से ऑस्ट्रेलिया के न्यूज मीडिया बारगेनिंग कोड की तर्ज पर कानून बनाने की मांग की है, ताकि गूगल, फेसबुक और यूट्यूब जैसे बड़ी टेक कंपनियों को अपनी कमाई भारत की न्यूज मीडिया कंपनियों के साथ शेयर करने के लिए बाध्य होना पड़े।

Update:2021-03-18 12:24 IST
सोशल मीडिया से कमाई: गूगल, फेसबुक की घेराबंदी, कंटेंट के लिए मांगा पैसा

नील मणि लाल

नई दिल्ली: यूरोप और आस्ट्रेलिया के बाद अब भारत में भी मांग उठी है कि टेक कंपनियों को अपनी कमाई कंटेंट क्रिएटर्स के साथ शेयर करना चाहिए। समाचार पत्रों के संगठन के बाद अब भाजपा के सांसद ने भी ये मांग जोरदार ढंग से उठाई है।

भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने केंद्र सरकार से ऑस्ट्रेलिया के न्यूज मीडिया बारगेनिंग कोड की तर्ज पर कानून बनाने की मांग की है, ताकि गूगल, फेसबुक और यूट्यूब जैसे बड़ी टेक कंपनियों को अपनी कमाई भारत की न्यूज मीडिया कंपनियों के साथ शेयर करने के लिए बाध्य होना पड़े। सुशील मोदी ने कहा है कि पारंपरिक मीडिया कंपनियां सबसे बुरे वक्त से गुजर रही हैं और यूट्यूब, फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों के चलते उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।

फ्री कंटेंट

कोई भी सर्च इंजन, जैसे कि गूगल बिंग, याहू आदि के न्यूज़ सेक्शन में दुनिया भर के मीडिया संस्थानों से लिया गया कंटेंट प्रदर्शित किया जाता है। अपने सर्च इंजन पर कंटेंट दिखाने के लिए टेक कंपनियों ने तरह तरह के नियम कानून बना रखे हैं। पैसा भी लिया जाता है। दूसरों से मुफ्त में कंटेंट लेकर सर्च इंजन दिखाते हैं और कमाई करते हैं लेकिन जिनका कंटेंट लिया है उनको उसके बदले में कोई पैसा नहीं मिलता है। इससे जहाँ एक तरफ सर्च इंजन, ऐप और सोशल डिजिटल मीडिया ताकतवर हो कर मुनाफ़ा कमाते जा रहे हैं वहीं असल मीडिया संस्थान बेहाल होते चले गए हैं।

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सबसे बुरी हालत तो प्रिंट मीडिया की है। अमेरिका में ही 70 फीसदी प्रिंट मीडिया बंद हो चुका है या बंद होने की कगार पर है। भारत में भी प्रिंट मीडिया पर घोर संकट है। आस्ट्रेलिया के मीडिया संस्थान बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं इसीलिए वहां की सरकार ने टेक कंपनियों को घेरने के लिए कानून बनाया है। यूरोपियन कमीशन पहले ही ये कदम उठाने की तैयारी कर चुका है। आस्ट्रेलिया के इस नये मीडिया कानून की पर दुनिया भर की नजर है। दुनिया भर में बढ़ते डिजिटल बिजनेस में हिस्सा पाने में मीडिया आउटलेट मुश्किल का सामना कर रहे हैं। इस बिजनेस पर दुनिया की कुछ ही दिग्गज टेक कंपनियों का पूरी तरह कब्जा है जिसमें गूगल टॉप पर है।

आस्ट्रेलिया का बोल्ड कदम

ऑस्ट्रेलिया ने एक कानून बना कर मिसाल कायम की है जिसके तहत बड़ी टेक फर्मों को समाचार कंटेंट के लिए मीडिया हाउसों को भुगतान करना अनिवार्य कर दिया गया है। भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है। सुशील मोदी के पहले इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी के अध्यक्ष, एल अदमिलम ने गूगल इंडिया के कंट्री मैनेजर संजय गुप्ता को पत्र लिखा था कि वे भारतीय अखबारों को उनके कंटेंट का उपयोग करने के लिए मुआवजा दें और अपने विज्ञापन को ठीक से शेयर करें। आईएनएस डिजिटल समिति के अध्यक्ष जयंत मैथ्यू ने कहा है कि वे गूगल की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं। उसके बाद हम इसी तरह के कानून बनाने के लिए सरकार से संपर्क करेंगे।

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टेक कंपनियों की मोटी कमाई

वित्त वर्ष 2020 में भारत में डिजिटल विज्ञापनों से होने वाली कमाई 19,900 करोड़ रुपये आंकी गई थी। भारत का कुल विज्ञापन राजस्व 70,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है और अब भारत विज्ञापन खर्च के मामले में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विज्ञापन बाजार बन गया है। इन विज्ञापनों में से अधिकांश राजस्व गूगल और फेसबुक के पास चला जाता है।

गूगल का भारत का राजस्व 2015 में 35 फीसदी बढ़कर 5,593.8 करोड़ रुपये हो गया था। गूगल की कमाई का मुख्य साधन विज्ञापन है। जबकि फेसबुक की कमाई 20 फीसदी की वृद्धि के साथ 86 बिलियन डॉलर हो चुकी है। फेसबुक की कमाई का सबसे बड़ा जरिया विज्ञापन है। एक अनुमान के मुताबिक ऑनलाइन विज्ञापन पर खर्च किए गए प्रत्येक 100 डॉलर के लिए 53 डॉलर गूगल पर जाता है और 28 डॉलर फेसबुक पर जाता है, जबकि शेष 19 डॉलर को अन्य के बीच साझा किया जाता है।

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यूके की सरकार गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों के लिए नई आचार संहिता लागू करने के लिए एक डिजिटल मार्केट यूनिट विकसित कर रही है। पिछले महीने गूगल ने खुलासा किया था कि वह यूनाइटेड किंगडम में प्रकाशकों को भुगतान करना शुरू कर देगा। इसी तरह, जनवरी में गूगल फ्रेंच मीडिया फर्मों के साथ एक लाइसेंसिंग डील पर पहुंच गया है जिसमें कंपनी पब्लिशर्स को सर्च रिजल्ट्स में उनके न्यूज कंटेंट की विशेषता के लिए भुगतान करेगी।

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