सरकार लाएगी नया प्रस्तावः किसान संगठन बात पर अड़े, बढ़ीं केंद्र की मुश्किलें

किसान संगठनों के तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़ जाने के कारण केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। शनिवार को केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच पांचवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा समाप्त हो गई। बैठक में सरकार की ओर से किसान नेताओं के सामने कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव रखा गया मगर किसान संगठनों ने उसे पूरी तरह खारिज कर दिया। 

Update: 2020-12-06 04:04 GMT
किसान संगठन अपनी बात पर अड़े, बढ़ीं केंद्र की मुश्किलें, अब नया प्रस्ताव लाएगी सरकार

नई दिल्ली: किसान संगठनों के तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़ जाने के कारण केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। शनिवार को केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच पांचवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा समाप्त हो गई। बैठक में सरकार की ओर से किसान नेताओं के सामने कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव रखा गया मगर किसान संगठनों ने उसे पूरी तरह खारिज कर दिया।

किसान संगठनों ने 8 दिसंबर को देशव्यापी बंद का आह्वान किया है। सरकार और किसान संगठनों के बीच अगले दौर की बातचीत 9 दिसंबर को होगी। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि अगली बैठक में किसान संगठनों की मांगों पर सरकार की ओर से नया प्रस्ताव लाया जाएगा।

अड़ियल रुख के कारण नहीं निकल रहा नतीजा

केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी कोई नतीजा न निकलने का सबसे बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि किसान संगठन अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। किसान संगठनों का कहना है कि कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर नया कानून बनाने से कम उन्हें कुछ भी मंजूर नहीं है।

दूसरी ओर केंद्र सरकार का कहना है कि वह किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए पूरी तरह तैयार है। केंद्र सरकार ने किसान संगठनों की सलाह पर कृषि कानून में संशोधन करने की बात भी मान ली है मगर किसान इसके लिए तैयार नहीं है।

कृषि मंत्री ने किसान संगठनों से मांगा समय

किसानों के आंदोलन के दसवें दिन शनिवार को हुई बैठक में किसान संगठन नए कानून को रद्द करने व एमएसपी को कानूनी दर्जा दिलाने की मांग पर अड़े रहे। इस पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ठोस प्रस्ताव के लिए कुछ समय मांगा। सरकार की ओर से किसानों की आपत्तियों और कानून में सुधारों पर बिंदुवार जवाब दिया गया। सरकार का कहना था कि डीजल के दाम और मंडी समिति जैसी मांगें मानी जा सकती हैं मगर किसानों की दूसरी मांगों पर विचार के लिए समय की जरूरत है।

बाद में किसानों ने सरकार के सामने कानून रद्द करने की मांग का हां या नहीं में जवाब देने की शर्त रख दी और यही कारण था कि पांचवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा खत्म हो गई।

नाराज किसानों को तोमर ने किसी तरह मनाया

बैठक के दौरान एक समय तो ऐसा भी आया जब किसान नेता बैठक का बहिष्कार कर जाने लगे मगर तब कृषि मंत्री तोमर ने उन्हें मनाकर बैठक में रहने के लिए तैयार किया। कृषि मंत्री ने कहा कि कानून रद्द करना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

उन्होंने कहा कि 9 दिसंबर को होने वाली बैठक में किसानों की मांगों पर सरकार की ओर से नया प्रस्ताव लाया जाएगा। इसके बाद ही फैसला होगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि कृषि कानूनों पर चल रहा गतिरोध जल्द ही समाप्त हो जाएगा।

आर-पार लड़ाई के मूड में है किसान संगठन

बैठक के बाद किसान संगठनों ने कहा कि हम आर या पार फैसला लेने की नीयत से दिल्ली आए हैं। जब तक सरकार की ओर से हमारी मांगें पूरी नहीं की जाती हैं तब तक हम यहां से नहीं हटेंगे।

उनका यह भी कहना था कि हम कई महीनों की खाद्य सामग्री लेकर दिल्ली पहुंचे हैं और हमें इस बात की कोई फिक्र नहीं है कि आंदोलन कितना लंबा चलेगा। किसान नेता बूटा सिंह ने तो यहां तक कहा कि हम कृषि कानूनों को रद्द कराए बगैर मानने वाले नहीं हैं।

विपक्षी दल भी किसान संगठनों के समर्थन में

देश में कई विपक्षी दलों ने भी किसान संगठनों की मांग का समर्थन किया है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने शनिवार को किसानों के समर्थन में अपने विधायकों के साथ पटना में धरना दिया। धरने पर बैठे नेताओं ने सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की।

किसान आंदोलन के समर्थन में तमिलनाडु के प्रमुख विपक्षी दल द्रमुक ने राज्य के सभी जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किया। द्रमुक के प्रदर्शन के दौरान केंद्र सरकार पर किसानों के हितों की अनदेखी करने का आरोप लगाया गया। पुडुचेरी के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता नारायणसामी ने भी केंद्र सरकार से मांग की है कि नए कृषि कानूनों को तत्काल रद्द किया जाना चाहिए।

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ट्रेड यूनियनों ने किया भारत बंद का समर्थन

उधर 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने 8 दिसंबर को किसान संगठनों की ओर से भारत बंद के आह्वान का समर्थन किया है। इन यूनियनों ने 26 नवंबर को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था जिसका मकसद हाल ही में पारित श्रम कानूनों का विरोध करना था।

संयुक्त मंच की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि किसानों की मांग जायज है और इसलिए भारत बंद में हर किसी को मदद करनी चाहिए।

आंदोलन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा

इस बीच देश के किसान आंदोलन का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बनता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने भी किसानों के इस आंदोलन का समर्थन किया है। गुटेरस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कहा कि लोगों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का हक है और अधिकारियों को इस मामले में कोई रोक-टोक नहीं लगानी चाहिए।

इससे पहले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भी किसान आंदोलन का मुद्दा उठा चुके हैं। भारत की ओर से इस बाबत आपत्ति जताए जाने के बावजूद उन्होंने एक बार फिर आंदोलन का समर्थन किया है। उधर 36 ब्रिटिश सांसदों ने भी किसानों के आंदोलन का समर्थन किया है। इन ब्रिटिश सांसदों ने विदेश सचिव को पत्र लिखकर मांग की है कि ब्रिटेन को इस मामले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष उठाना चाहिए।

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अंशुमान तिवारी

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