Health Care in India: सांसदों के मुकाबले आम लोगों के स्वास्थ्य पर काफी कम खर्च करती है सरकार, NHA रिपोर्ट में खुलासा

Health Care in India : रिपोर्ट के अनुसार, साल 2018-19 में स्वास्थ्य पर 5.96 लाख करोड़ से अधिक खर्च हुए थे। इनमें से 2.42 लाख करोड़ केंद्र और राज्य की सरकारों ने मिलकर खर्च किया था।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2022-09-17 11:35 IST

प्रतीकात्मक चित्र 

Health Care in India : सरकार को आम लोगों से अधिक संसद में बैठने वाले माननीयों के स्वास्थ्य की चिंता है। इस बात की पुष्टि खुद सरकार ने की है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी नेशनल हेल्थ अकाउंट्स की रिपोर्ट में साल 2018-19 में स्वास्थ्य पर हुए खर्च की जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस अवधि में केंद्र और राज्यों की सरकारों ने स्वास्थ्य पर कितना खर्च किया और लोगों ने अपनी जेब कितने?

रिपोर्ट के अनुसार, साल 2018-19 में स्वास्थ्य पर 5.96 लाख करोड़ रूपये से अधिक खर्च हुए थे। इनमें से 2.42 लाख करोड़ केंद्र और राज्य की सरकारों ने मिलकर खर्च किया था जबकि शेष 3.54 लाख करोड़ रूपये आम लोगों ने अपनी जेब से किए थे। इस हिसाब से सरकार की तरफ से प्रति व्यक्ति साल भर में 1815 रुपए खर्च किए गए। यदि एक शख्स पर हुए खर्च का एक दिन का औसत निकाला जाए, तो 5 रूपये से भी कम होता है।

सांसदों पर आम लोगों से कहीं अधिक खर्च

एक आरटीआई के जवाब में राज्यसभा सचिवालय ने बताया था कि साल 2018 -19 में उच्च सदन में बैठने वाले सदस्यों के स्वास्थ्य पर 1.26 करोड़ रूपये खर्च किए गए। राज्यसभा में कुल सदस्यों की संख्या 245 है, इस हिसाब से प्रति सांसद ये आंकड़ा 51 हजार से अधिक बैठता है।

स्वास्थ्य पर खर्च घटा

नेशनल हेल्थ अकाउंट्स की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2018-19 में देश का हेल्थ बजट जीडीपी के 1.28 प्रतिशत था। जो कि पिछले साल यानी 2017-18 के मुकाबले कम है। 2017-18 में हेल्थ पर जीडीपी का 1.35 प्रतिशत खर्च हुआ था। भारत स्वास्थ्य पर खर्च करने के मामले में अपने छोटे पड़ोसी देशों से काफी पीछे है। चारों तरफ जमीन से घिरा छोटा सा देश भूटान अपनी जीडीपी का 2.65 प्रतिशत जबकि आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका 2 प्रतिशत खर्च करता है।

साल 2014-15 में आए नेशनल हेल्थ अकाउंट्स की रिपोर्ट में हेल्थ पर जीडीपी का कम से कम 5 प्रतिशत खर्च करने का सुझाव दिया गया था। आर्थिक सर्वे में भी जीडीपी के 2.5 से 3 प्रतिशत खर्च करने की सिफारिश की गई थी। सरकार को अधिक से अधिक पब्लिक हेल्थ पर खर्च करने का सुझाव दिया गया था, ताकि आम लोगों का खर्च कम किया जा सके। साल 2021-22 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, केंद्र और राज्य की सरकारों ने इस अवधि में हेल्थ पर जीडीपी का 2.1 प्रतिशत खर्च किया था। साल 2025 तक स्वास्थ्य पर 2.5 प्रतिशत खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है।

पब्लिक हेल्थ पर खर्च बढ़ाना जरूरी

भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में पब्लिक हेल्थ पर खर्च इसलिए भी जरूरी है कि यहां कि 80 करोड़ से अधिक आबादी में गरीबी में जीवन यापन करती है। जैसे-जैसे स्वास्थ्य सेवाएं महंगी हो रही हैं, इनके सामने चुनौती बढ़ती जा रही है। इसके कारण लोग गरीबी के दलदल में फंसते जा रहे हैं। नेशनल हेल्थ पॉलिसी 2015 में कहा गया था कि स्वास्थ्य पर अपनी जेब से खर्च करने के कारण हर साल 6.5 करोड़ लोगों को गरीबी से जूझना पड़ता है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2021 के अनुसार, यदि गांव में कोई बीमार शख्स सरकारी अस्पताल में एडमिट होता है, तो उसका औसतन 4290 रुपए होता है। वहीं, गांव के निजी अस्पताल में भर्ती होने पर ये खर्च बढ़कर 22952 रुपए हो जाता है।

सरकारी अस्पताल और निजी क्लिनिक के खर्च में अंतर 

इसी प्रकार शहरी क्षेत्र में सरकारी अस्पताल में भर्ती होने पर 4837 और निजी अस्पताल में भर्ती होने पर 38,822 रूपये का खर्च आता है। सरकारी स्रोतों से मिली जानकारी के मुताबिक, देश में हर आदमी की सालाना औसतन कमाई 1.50 लाख रूपये के करीब है। ऐसे में इस आय वर्ग का आने वाला व्यक्ति जब तबीयत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती हो जाता है तो उसकी दो से तीन माह की कमाई केवल बिल भरने में खर्च हो जाती है। इस तरह वो व्यक्ति धीरे-धीरे कर्ज के जाल में फंसकर अंततः गरीबी के दलदल में पहुंच जाता है।

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