Hindi Diwas 2020: रोमन हिंदी का बढ़ता चलन खतरनाक, बदलनी होगी मानसिकता
तमाम लोग एक-दूसरे से हिंदी को रोमन लिपि में लिखकर संदेशों का आदान प्रदान कर रहे हैं। निश्चित रूप से लोगों में बढ़ती यह प्रवृत्ति देवनागरी लिपि के लिए खतरनाक साबित हो रही है।
अंशुमान तिवारी
लखनऊ। हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता से तो कोई इनकार नहीं कर सकता मगर इसके साथ ही इस हकीकत से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि रोमन लिपि में हिंदी लिखने की आदत भी बढ़ती जा रही है। इंटरनेट और मोबाइल का चलन बढ़ने के बाद लोगों में यह आदत घर करती जा रही है और तमाम लोग एक-दूसरे से हिंदी को रोमन लिपि में लिखकर संदेशों का आदान प्रदान कर रहे हैं। निश्चित रूप से लोगों में बढ़ती यह प्रवृत्ति देवनागरी लिपि के लिए खतरनाक साबित हो रही है। जानकारों का कहना है कि इस प्रवृत्ति पर तुरंत अंकुश लगाए जाने की जरूरत है।
रोमन हिंदी में संदेशों का आदान-प्रदान बढ़ा
देश में स्मार्टफोन धारकों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। बड़े शहरों में ही नहीं बल्कि छोटे कस्बों और गांवों में भी लोगों के हाथ में स्मार्टफोन काफी संख्या में दिखने लगा है। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर भी लोगों की गतिविधियां लगातार बढ़ रही है।
फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर, इंस्टाग्राम आदि माध्यमों के जरिए लोग एक-दूसरे से जुड़ रहे हैं और अपनी बात एक-दूसरे तक पहुंचा रहे हैं। इसके साथ ही एक खतरनाक प्रवृत्ति यह भी दिख रही है कि काफी संख्या में लोग रोमन लिपि में हिंदी लिख कर अपनी बातें एक-दूसरे तक पहुंचा रहे हैं।
युवाओं में बढ़ रही प्रवृत्ति
सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि रोमन लिपि में हिंदी लिखने की यह प्रवृत्ति युवा पीढ़ी में तेजी के साथ बढ़ रही है। युवा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हैं और वे विभिन्न मुद्दों को लेकर मुखर हैं। वे विभिन्न ज्वलनशील मुद्दों को लेकर अपनी बातें रखते हैं। जानकारों का कहना है कि सोशल मीडिया पर युवाओं की काफी बातें रोमन लिपि वाली हिंदी में दिख रही हैं।
फिर उखाड़ फेंकना हो जाएगा मुश्किल
इसे लेकर उनके मन में किसी प्रकार की कोई हिचक नहीं दिखती और यह प्रगति खतरनाक स्तर तक बढ़ती जा रही है और इस पर रोक लगाए जाने की जरूरत है। जानकारों के मुताबिक अगर इस पर रोक नहीं लगाई गई तो रोमन लिपि की हिंदी अपनी जड़ें इतनी गहरी कर लेगी कि फिर उसे उखाड़ फेंकना काफी मुश्किल हो जाएगा।
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पैरवी में जुटा है एक वर्ग
इस बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो रोमन में हिंदी की पैरवी में जुटे हुए हैं। उनका कहना है कि रोमन हिंदी आने वाले समय की मांग है और देवनागरी का अस्तित्व धीरे-धीरे लुप्त हो जाएगा। अपने इस दावे के समर्थन में वे मोबाइल, व्हाट्सएप, मैसेंजर, टि्वटर आदि में रोमन हिंदी के बढ़ते इस्तेमाल की दलील देते हैं।
उनका कहना है कि जिस तरह यह प्रयोग बढ़ रहा है उससे साफ है की रोमन हिंदी न केवल युवाओं बल्कि अन्य आयु वर्ग के लोगों में भी लोकप्रिय होती जा रही है। महिलाओं द्वारा भी रोमन हिंदी का इस्तेमाल जमकर किया जा रहा है। निश्चित रूप से लोगों में बढ़ती यह प्रवृत्ति देवनागरी लिपि के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
देवनागरी के लिए जागरूकता की जरूरत
देवनागरी लिपि के प्रयोग, प्रचार और प्रसार के लिए समाज के प्रत्येक स्तर पर जागरूकता लाए जाने की जरूरत है। रोमन हिंदी के बढ़ते चलन के लिए वे लोग ही ज्यादा दोषी हैं जो देवनागरी लिपि को बेहतर तरीके से जानते हैं मगर संदेशों के आदान-प्रदान और अपनी बात कहने के लिए रोमन हिंदी का सहारा लेते हैं।
हमें इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा। कई लोग तो हिंदी की सूक्तियां भी रोमन लिपि वाली हिंदी में लिखकर भेजा करते हैं। रोमन लिपि में हिंदी का लेखन प्रमुख रूप से एसएमएस, व्हाट्सएप तथा ईमेल पर दिखाई पड़ता है।
कभी-कभी रोमन हिंदी मददगार भी
कुछ भाषा वैज्ञानिकों की राय है कि इस परिवर्तन से बचा नहीं जा सकता। देवनागरी लिपि के बजाय रोमन लिपि में हिंदी को लिखा जाना एक बड़े परिवर्तन की आहट है।
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रोमन लिपि वाली हिंदी कहीं आवश्यकता भी प्रतीत होती है जैसे पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से अगर बात करना हो तो यह मददगार साबित हो सकती है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति क्या कर सकता है जब एक को देवनागरी लिपि न आती हो और दूसरे को उर्दू के शब्दों का कोई ज्ञान ही न हो। ऐसे लोगों के लिए रोमन हिंदी मददगार साबित होती है।
सबको मिलकर करनी होगी पहल
इसके बावजूद हिंदी से जुड़े सभी लोगों की यह जिम्मेदारी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि देवनागरी लिपि का ही प्रयोग किया जाए। इससे देवनागरी लिपि के प्रचार और प्रसार में मदद मिलेगी। हिंदी की पैरोकारी करने वालों का तर्क है कि इसके लिए आम लोगों को ही पहल करनी होगी और हिंदी को रोमन लिपि में लिखने के बजाय देवनागरी में लिखकर संदेशों का आदान-प्रदान करना होगा।
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इसके लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत भी नहीं है। हम सभी को अपनी आदतों में बदलाव करना होगा। अगर हम सभी इस दिशा में कुछ प्रयास कर सके तो निश्चित रूप से देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी नई बुलंदी पर पहुंचेगी।
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