हिंदू अल्पसंख्यकः कोर्ट में याचिकाएं दाखिल, इस दर्जे को देने की है मांग

एक दिलचस्प मामले में असम के गुवाहाटी हाईकोर्ट और मेघालय हाईकोर्ट में दायर दो अलग-अलग जनहित याचिकाओं में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की गई है।

Update:2020-09-26 14:50 IST
हिंदू अल्पसंख्यकः कोर्ट में याचिकाएं दाखिल, इस दर्जे को देने की है मांग (social media)

गुवाहाटी: एक दिलचस्प मामले में असम के गुवाहाटी हाईकोर्ट और मेघालय हाईकोर्ट में दायर दो अलग-अलग जनहित याचिकाओं में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की गई है। इन याचिकाओं में 23 अक्तूबर, 1993 को जारी उस अधिसूचना को चुनौती दी गई है जिसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित किया गया था।

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याचिका के मुताबिक पूर्वोत्तर भारत में ईसाई समुदाय के लोगों की बहुलता के बावजूद उनको अल्पसंख्यक का दर्जा मिला है। याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय आधार पर नहीं बल्कि इलाके के विभिन्न राज्यों में आबादी के आधार पर अल्पसंख्यक श्रेणी में शामिल समुदाय के बारे में फैसला किया जाना चाहिए। मेघालय हाईकोर्ट में डेलिना खांग्डुप ने याचिका दायर की है जबकि गुवाहाटी हाईकोर्ट में इसी मांग को लेकर पंकज डेका ने याचिका दायर की है।

कोर्ट के ही फैसले का हवाला

इन दोनों याचिकाओं में टीएमए पाई और अन्य बनाम कर्नाटक सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि नागालैंड, मिजोरम और मेघालय ईसाई-बहुल राज्य हैं। बाकी राज्यों में भी असम को छोड़ कर ईसाईयों की तादाद ही ज्यादा है और वहां हिंदु अल्पसंख्यक हैं। लेकिन उनको यह दर्जा नहीं मिला है। नतीजतन वे लोग अल्पसंख्यकों के लिए चलाई जाने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते। दूसरी ओर, बहुसंख्यक आबादी वाली जातियों को ऐसे तमाम फायदे मिल रहे हैं।

Guwahati High Court (social media)

इन याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले का हवाला दिया गया

इन याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले का हवाला दिया गया है उसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्यों में आबादी के आधार पर ही भाषाई अल्पसंख्यकों के बारे में फैसला किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी इलाके में जो लोग संख्या में कम हैं उन्हें संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अपने धर्म और संस्कृति के संरक्षण के लिए स्कूल और कॉलेज खोलने का अधिकार है। याचिकाओं में कहा गया है कि धार्मिक आधार पर भी अल्पसंख्यकों के बारे में फैसला राज्यों की आबादी के आधार पर ही किया जाना चाहिए, आबादी के राष्ट्रीय औसत के आधार पर नहीं।

याचिकाकर्ताओं ने कहा

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि पूर्वोत्तर भारत की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक के दर्जे की वजह से तमाम सरकारी लाभ ले रही है। यह सार्वजनिक धन की बर्बादी की मिसाल है। इलाके के ज्यादातर राज्यों में हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक है लेकिन वह अल्पसंख्यकों को मिलने वाले फायदों से वंचित है।

डेलिना खांग्डुप ने मेघालय हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के हवाले से बताया है कि राज्य (मेघालय) में ईसाइयों की आबादी 74.59 प्रतिशत है जबकि हिंदुओं की 11.53 प्रतिशत। इसके अलावा आबादी में 4.4 प्रतिशत मुस्लिम, 0.33 प्रतिशत बौद्ध, 0.02 प्रतिशत जैन और 8.71 प्रतिशत दूसरे धर्मों के लोग शामिल हैं।

पहले भी उठा है मामला

दरअसल, पूर्वोत्तर समेत कुछ राज्यों के हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग पहली बार नहीं उठी है। एक याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने इस साल फरवरी में इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया थ लेकिन अदालत ने इस पर सुनवाई से इनकार करते हुए उनसे हाईकोर्ट में जाने को कहा था। उपाध्याय ने वर्ष 2017 में भी सुप्रीम कोर्ट में यह मामला उठाया था।

Meghalaya High Court (social media)

उस समय अदालत ने उनको राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के समक्ष यह मुद्दा उठाने की सलाह दी थी। लेकिन आयोग ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया। इसी वजह से याचिकाकर्ता ने दोबारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उपाध्याय की दलील थी कि देश के नौ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और उनको वहां अल्पसंख्यकों के लिए तय कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। वहां की बहुसंख्यक आबादी सारे लाभ ले लेती है।

पेशे से एडवोकेट और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में दलील दी थी

पेशे से एडवोकेट और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि लद्दाख में हिंदू आबादी महज एक प्रतिशत है। इसी तरह मिजोरम में 2.75 प्रतिशत, लक्ष्यदीप में 2.77 प्रतिशत, कश्मीर में चार प्रतिशत, नागालैंड में 8.74 प्रतिशत, मेघालय में 11.53 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 29.24 प्रतिशत, पंजाब में 38.49 और मणिपुर में 41.29 प्रतिशत हिंदू आबादी है। बावजूद इसके सरकारी योजनाओं को लागू करते समय इस समुदाय को अल्पसंख्यकों के लिए तय कोई लाभ नहीं मिलता।

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उन्होंने भी अपनी याचिका में 2002 के टीएमए पाई बनाम कर्नाटक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया था। उपाध्याय की दलील थी कि जिस तरह पूरे देश में अल्पसंख्यकों को चर्च की ओर से संचालित स्कूल या मदरसा खोलने की अनुमति मिली है वैसी इजाजत हिंदुओं को भी उक्त नौ राज्यों में मिलनी चाहिए। साथ ही इन स्कूलों को विशेष सरकारी संरक्षण मिलना चाहिए।

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