कैसे कार्टूनिस्ट ने बदल के रख दी मुंबई की तस्वीर, आईए जानते हैं
Bal Thackeray: आज 17 नवंबर को बालासाहेब ठाकरे की पुण्यतिथि है।
आज बात ऐसे शख्सियत की हो रही है जिसने बिना किसी पद हासिल किए पूरी मुंबई पर राज किया। बात की जा रही है बाला साहब की जिन्हें दुनिया बालासाहेब ठाकरे के नाम से जानती है। आईए जानते हैं महाराष्ट्र की राजनीति को पूरी तरह से बदलने वाले एक खास शख्स की। आज 17 नवंबर को बालासाहेब ठाकरे की पुण्यतिथि है। यानी कि आज के दिन 17 नवंबर, 2012 को बालासाहेब ठाकरे ने 86 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली थी। जानते हैं पुण्यतिथि पर विशेष पुण्यतिथि पर विशेष…
प्रारंभिक जीवन
बालासाहेब ठाकरे का जन्म 23 जनवरी, 1926 को महाराष्ट्र राज्य के पुणे में हुआ। बालासाहेब अपने 10 भाई बहनों में सबसे बड़े थे। बालासाहेब की माता का नाम मीना और बालासाहेब के पिता का नाम केशव राम ठाकरे था। उनके पिताजी लेखक थे। बाला साहब एक पत्रकार कार्टूनिस्ट थे। शिवसेना बालासाहेब ठाकरे की ही देन है।बाला साहब मजबूत हिंदू समर्थक नीति के लिए जाने जाते थे।
कार्टूनिस्ट के रूप में चुना करियर
बाला साहेब ने परिवार की जिम्मेदारियां को संभालते हुए अपने करियर की शुरुआत 1950 के दशक में मुंबई के फ्री प्रेस जनरल के कार्टूनिस्ट के रूप में की थी। 1960 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी। जल्द ही उन्होंने ‘मार्मिक’ नाम की एक साप्ताहिक मराठी भाषा की पत्रिका निकाली। उस समय भारत और भारत के कई क्षेत्रों में दक्षिण भारतीय लोगों का अधिक प्रभाव देखने को मिल रहा था। जिसके कारण बाला साहब महाराष्ट्र के लोगों के प्रति चिंतित थे इसके बाद उन्होंने साप्ताहिक मराठी पत्रिका ‘मार्मिक’ को विकसित किया। उनका मानना था कि दक्षिण भारतीय स्थानीय निवासियों से बेहतरीन नौकरियां ले रहे हैं।
संगठन के रूप में
‘मार्मिक’ पत्रिका का महाराष्ट्र के लोगों पर ज्यादा असर नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने पिता की सलाह मानकर संगठन के रूप में महाराष्ट्र के लोगों से जुड़ना शुरू किया और धीरे-धीरे देखते-देखते बालासाहेब मसीहा बन गए। लोग उनके पास आने लगे और अपनी समस्याओं को ऐसे बताने लगे जैसे वे ही उनके समस्याओं को सुलझा सकते हैं।उन्होंने 1966 में महाराष्ट्र से प्रवासी श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए कहा ।
शिवसेना की स्थापना
शिवसेना की स्थापना बालासाहेब ठाकरे ने 19 जून, 1966 में की। शुरू में शिवसेना की विचारधारा महाराष्ट्रीयन गौरव और क्षेत्रीय विशिष्ट और मराठियों को प्राथमिकता देने पर केंद्रित रही।शिव सैनिक यानी शिवाजी की सेना को हिंदू, चरमपंथी,अत्यधिक रूढ़िवादी और आमतौर पर मुस्लिम विरोधी कहा जाने लगा था।1980 के दशक में शिवसेना महाराष्ट्र पर कब्जा कर चुकी थी। 1989 में अपनी विचारधारा को लोगों तक पहुंचाने के लिए ‘सामना’ नामक अखबार की शुरुआत की।
व्यंग्य कार्टूनिस्ट ठाकरे ने भारत और गुजरात से महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में आने वाले और मध्यवर्ग की नौकरियां करने वाले प्रवासी श्रमिकों से खतरे के जवाब में पार्टी बनाई थी । उन्होंने ‘महाराष्ट्र महाराष्ट्रीयन के लिए’ नारा बनाया था।कहते हैं कि शिवाजी के नाम पर ठाकरे के पिता केशव ठाकरे ने शिवसेना बनाने की सलाह दी थी ।शिवसेना शिवाजी के नाम पर थी जिन्होंने मुगल साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी ।
पसन्द था किंग मेकर बनना
बालासाहेब ठाकरे हर अंदाज से महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा बदलने में माहिर थे। वह हमेशा अपने मित्रों और विरोधियों को मौका देते थे कि वह राजनीतिक रूप से काम करके आगे रहें ताकि वह अपने इरादों को आराम से अंजाम दे सके ।वह खुद किसी जिम्मेदारी को लेने से पीछे हटते थे क्योंकि उन्हें किंग मेकर बनना ज्यादा पसंद था। ठाकरे ने कभी भी कोई आधिकारिक पद ग्रहण नहीं किया। ना ही कोई चुनाव लड़ा । लेकिन सालों तक उन्हें महाराष्ट्र का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना गया। उन्हें अक्सर महाराष्ट्र का गॉडफादर बुलाते थे या हिंदू हृदय सम्राट भी कहा जाता था।बालासाहेब एक हिंदू राष्ट्र चाहते थे। वह कभी भी धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में भारत को नहीं देखना चाहते थे।
1995 में भाजपा का साथ ,सत्त्ता भी हाथ
1995 में शिवसेना ने भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल किया और राज्य की सत्ता पर कब्जा किया । 228 सीटों में से 138 सीट जीती और भाजपा के साथ सत्ता का स्वाद पहली बार चखा।
सत्ता से बाहर रहकर हाथ में रखा रिमोट
1995 में चुनाव के बाद जब पहली बार शिवसेना ने सत्ता का स्वाद चखा तब शिवसेना और भाजपा के गठबंधन से बनी सरकार के सभी फैसले बाला साहब ठाकरे लेते थे । इसलिए उन्हें रिमोट कंट्रोल भी कहा जाता था।
व्यक्तिगत आघात
बालासाहेब ठाकरे को उस समय व्यक्तिगत आघात लगा जब उनकी पत्नी मीना की मौत 1995 में हो गई और अगले ही वर्ष सबसे बड़े पुत्र विधु माधव की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई।इसके बाद शिवशेना डगमगाने लगी।
चुनावी झटका और उद्धव को कमान
2004 में भाजपा शिवसेना गठबंधन को चुनावी झटका लगा। इसके बाद महाराष्ट्र राज्य सरकार का नियंत्रण खो दिया ।सबको यही लगा कि आखिर शिवसेना नेता का उत्तराधिकारी कौन होगा? 2004 में उद्धव ठाकरे ने कार्यकारी अध्यक्ष का पद संभाला ।जिससे निराश होकर राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ दी और 2006 में प्रतिद्वंद्वी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई।जिससे बाला साहब को क्षति पहुंची। उद्धव ठाकरे ने पार्टी का नेतृत्व जारी रखा।
बाला साहब के विवादित बयान-
1. बालासाहेब मुस्लिम समुदाय को लेकर अक्सर निशाने पर रहते थे उन्होंने एक बार मुस्लिम समुदाय को कैंसर तक कह डाला था।
2. उन्होंने कहा था कि इस्लामी आतंकवाद बढ़ रहा है और हिंदू आतंकवाद ही इसका एकमात्र जवाब देने का तरीका है । हमें भारत और हिंदू को बचाने के लिए आत्मघाती बम दस्ते की जरूरत है।
3. बाला साहब ठाकरे को हिंदीभाषी राजनीतिक की नाराजगी झेलनी पड़ी थी । उन्होंने बिहारी को देश के विभिन्न भागों के लिए बोझ बताया था। जिसके बाद एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। हालांकि वे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रशंसक थे।
4. बालासाहेब ने स्वयं यह बात स्वीकारी थी कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा उनके ही शिवसेना ने गिराया था।
5. इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान जब इमरजेंसी लगाई गयी थी तो बाला साहब इकलौते ऐसे विपक्षी नेता थे । जो इंदिरा गांधी के समर्थन में थे।
6. बालासाहेब ठाकरे ने गैर मराठी में और विशेष कर दक्षिण भारतीयों के ऊपर कई भद्दे नारे भी दिए थे।
7. बालासाहेब ने बांग्लादेश से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों को वहां से चले जाने को कहा था क्योंकि बालासाहेब महाराष्ट्र को एक सिर्फ हिंदू राज्य के रूप में देखना चाहते हैं।
8. मोहम्मद अफजल की फांसी की सजा पर कोई फैसला नहीं आ रहा था जिसकी वजह से बाला साहब ने ततकालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम तक पर अभद्र टिप्पणियां की थी।
9. बालासाहेब ठाकरे ने भारत-पाकिस्तान क्रिकेट संबंधों का भी खूब विरोध किया था। उन्होंने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा था कि देश में कहीं भी भारत पाक का मैच नहीं होने दे।
10.उन्होंने एक इंटरव्यू में खुलकर कहा था कि मैं ऐसे सभी मुसलमान के खिलाफ हूं जो देश में रहकर देश के नियमों का पालन नहीं करते हैं । मैं ऐसे लोगों को देशद्रोही मानता हूं।
ठाकरे जुड़ने के पीछे की वजह
बाला साहब के नाम में ठाकरे जुड़ने के पीछे उनके पिता का नाम था। उनके पिता का नाम केशव सीताराम ठाकरे था। जो कायस्थ परिवार से ताल्लुक रखते थे। बालासाहेब के पिता ने अंग्रेजी लेखक विलियम मेक पीस ठेकरे के बड़े प्रशंसक थे । उनकी किताब उन्हें बहुत पसंद आती थी। एक किताब पढ़ने के बाद वह इतने प्रशंसक हुए कि उसके बाद से उन्होंने अपना सरनेम ही बदल लिया ।केशव ठाकरे ने पारिवारिक नाम में ठेकरे शब्द को शामिल किया। धीरे-धीरे वह बदलकर ठाकरे शब्द हो गया और इसी तरह आगे की पीढ़ियों पर ठाकरे शब्द को जोड़कर लिखा जाने लगा। यही वजह है कि बाला साहब के नाम के आगे ठाकरे शब्द को जोड़ा जाता है।।
वोट डालने पर लगा प्रतिबंध
नफरत और डर की राजनीति करने के कारण चुनाव आयोग ने बाला साहब ठाकरे पर वोट डालने और किसी भी तरह के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था।1999 को 6 साल तक चुनाव से दूर रखने के लिए चुनाव आयोग ने प्रतिबंधित कर दिया था। इसके बाद 2005 में प्रतिबंध हटाने के बाद वे वोट डाल सके थे।
बालासाहेब को अपने करीबियों से ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं था। उन्हें लगता था कि ज्यादा मिलने से असम्मान पनपता है। वे अपने बेहद सुरक्षा वाले आवास मातोश्री की बालकनी से अपने समर्थकों को दर्शन दिया करते थे।
बालासाहेब ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति पर वर्षों तक छाए रहे । पर उनके पास कोई भी पद नहीं था। पर उनका प्रभाव ही इतना शक्तिशाली था कि मातो श्री पर राजनेताओं से लेकर फिल्मी सितारे ,खिलाड़ी, उद्योग जगत के हस्तियों का आना जाना रहा।उनका ओहदा इतना बड़ा था कि 17 नवंबर, 2012 को उनकी मौत के बाद अंतिम यात्रा में 2 लाख से अधिक लोग उनकी शोकसभा में शामिल थे।