Stampedes in India: भारत बन रहा भगदड़ का केंद्र

Stampedes in India: शोध के मुताबिक देशों की आय के स्तर और दुर्घटनाओं में सीधा संबंध दिखाई दिया है। कम या मध्यम आय वाले देशों में दुर्घटनाएं ज्यादा हुई हैं।;

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2025-01-29 15:33 IST

Stampedes in India  (photo: social media )

Stampedes in India: प्रयागराज कुम्भ में भगदड़ से अनेकों लोग हताहत हुए हैं। इस हादसे ने फिर भारत में इस तरह की घंटों की गंभीरता पर ध्यान खींचा है। पहले भी कई बार भीड़ भरे आयोजनों में हादसे होते आये हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस उपाय ढूंढा नहीं जा सका है। वैज्ञानिकों ने ये सही ही कहा है कि भारत और पश्चिमी अफ्रीका भगदड़ की दुर्घटनाओं के सबसे बड़े केंद्र बनते जा रहे हैं। अन्य खतरनाक इलाकों में दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य-पूर्व हैं।

दुर्घटनाओं का नक्शा

वैज्ञानिकों ने दुनिया में वर्ष 1900 के बाद से अब तक भगदड़ या भीड़भाड़ के कारण हुई घटनाओं का एक डेटाबेस तैयार किया है। इस डेटाबेस में 1900 से 2019 के बीच हुईं भीड़ या भगदड़ की 281 उन घटनाओं को शामिल किया गया है जिनमें या तो कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई या दस से ज्यादा लोग घायल हुए।।आंकड़े दिखाते हैं कि भारत और पश्चिमी अफ्रीका भगदड़ की दुर्घटनाओं के सबसे बड़े केंद्र बनते जा रहे हैं। अध्ययन के अनुसार, पिछले बीस साल से भीड़ के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। 1990 से 1999 के बीच हर साल औसतन तीन ऐसी घटनाएं होती थीं जो 2010 से 2019 के बीच बढ़कर 12 प्रतिवर्ष हो गईं।


ताकि उपाय किये जा सकें

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस डेटाबेस के आधार पर दुनियाभर में भीड़ या भगदड़ के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए उपाय उठाए जा सकेंगे। जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर क्लाउडियो फेलिचियानी और ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के डॉ. मिलाद हागानी का यह शोध सेफ्टी साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि सुरक्षा उपायों को मजबूत करने के लिए ऐसा डेटाबेस होना और उसका विश्लेषण करना जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के उपाय किये जा सकें।

शोधकर्ता डॉ. मिलाद हागानी ने कहा है कि पिछले 20 साल ही में भगदड़ आदि की घटनाओं में 8,000 से ज्यादा लोगों की जान गई है और 15,000 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। समय के साथ-साथ स्पोर्ट्स इवेंट्स के दौरान दुर्घटनाएं कम हुई हैं जबकि धार्मिक आयोजनों में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं। पुख्ता संकेत हैं कि बीते 30 साल में खेल आयोजनों के दौरान अपनाए गए अतिरिक्त सुरक्षा उपायों ने सुरक्षा को मजबूत किया है जिसके नतीजे अच्छे हैं।


हादसे और गरीबी का मेल

शोध के मुताबिक देशों की आय के स्तर और दुर्घटनाओं में सीधा संबंध दिखाई दिया है। कम या मध्यम आय वाले देशों में दुर्घटनाएं ज्यादा हुई हैं। भारत और कुछ कम हद तक पश्चिमी अफ्रीका भीड़ वाले हादसों के केंद्र नजर आते हैं। ये तेजी से विकसित हो रहे इलाके हैं और इनकी आबादी भी बढ़ रही है। गांवों से शहरों की ओर पलायन तो बहुत तेजी से हो रहा है लेकिन इसको संभालने के लिए ढांचागत सुविधाएं तैयार नहीं हैं। डॉ. हागानी ने कहा कि उत्तर भारत खासतौर पर अत्याधिक घनी आबादी वाला इलाका है जहां धार्मिक परंपराओं का बहुत प्रभाव है और लोग कुछ समय के लिए छोटी जगहों पर बड़ी संख्या में जमा होते हैं।


 खेल आयोजन अब सुरक्षित

शोध दिखाता है कि 1970 के दशक में भगदड़ के जितने भी हादसे हुए, उनमें से लगभग सभी खेल आयोजनों के दौरान हुए। लेकिन 1973 में ‘ग्रीन गाइड' के प्रकाशन की शुरुआत के बाद से इन हादसों में कमी आनी शुरू हो गई। यह गाइडबुक खेल आयोजनों के लिए सुरक्षा प्रबंधन के बारे में दिशा-निर्देश, डिजाइन और योजना के बारे में जानकारियां प्रकाशित करती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, यूनाइटेड किंगडम में भीड़ के कारण हादसे आम हुआ करते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। उम्मीद है कि यूके में किये गए उपाय वैश्विक स्तर पर अपनाये जा सकेंगे।


धार्मिक आयोजन

शोधकर्ता कहते हैं कि धार्मिक आयोजन अब ज्यादा खतरनाक होते जा रहे हैं। एसोसिएट प्रोफेसर फेलिचियानी ने एक लेख में बताया कि खेल आयोजनों जैसे सुरक्षा उपायों को धार्मिक आयोजनों में अपनाना आसान नहीं है क्योंकि वहां कोई टिकट नहीं होती और लोगों की संख्या भी तय नहीं होती, जिस कारण भीड़-प्रबंधन बेहद मुश्किल हो जाता है। 2000 से 2019 के बीच दुनिया में जितने भी ऐसे हादसे हुए, उनमें से लगभग 70 प्रतिशत भारत में हुए और ये धार्मिक आयोजनों से संबंधित थे। इनमें से बहुत सी दुर्घटनाएं नदी या पानी के अन्य स्रोत के किनारे हुईं। बड़ी संख्या में पुलों, नदी के किनारों और बस या ट्रेन स्टेशनों आदि पर हादसे हुए हैं।

डॉ. फेलिचियानी कहते हैं, "मेरे ख्याल भारत के आंकड़े देखकर समस्या वित्तीय संसाधनों की नजर आती है। उन्हें पता है कि घातक हादसे हो रहे हैं और उन्हें पता है कि कुछ किया जाना चाहिए लेकिन शायद उनके पास वैसे संसाधन या तकनीक उपलब्ध नहीं है, जैसी धनी देशों के पास है।”



Tags:    

Similar News