संस्कृत के 2500 साल पुराने रहस्य सुलझाने वाले ऋषि राजपोपत की 'जय-जय', प्रियंका गांधी बोलीं-आपने गौरवान्वित किया
Rishi Atul Rajpopat News: व्याकरण की वो समस्या जो 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से संस्कृत के विद्वानों के लिए रहस्य थी उसे कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के एक भारतीय पीएचडी छात्र ने सुलझा दिया।
Rishi Atul Rajpopat News : भारतीय मूल के एक शोधार्थी ऋषि अतुल राजपोपत (Rishi Atul Rajpopat) ने कमाल कर दिखाया। उन्होंने व्याकरण की एक ऐसी समस्या का समाधान किया जो 2500 वर्षों में किसी ने नहीं किया। ऋषि राजपोपत ने ये कमाल कर 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से संस्कृत के विद्वानों को पराजित किया। ऋषि कैम्ब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज (St John's College of Cambridge) में 'एशियन एंड मिडल ईस्टर्न स्टडीज फैकल्टी' में पीएचडी स्कॉलर हैं। उन्होंने सालों पुराने पाणिनि (Panini Ancient Puzzle) द्वारा लिखी गई प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में सामने आने वाली व्याकरण की गलती को ठीक कर दिखाया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ऋषि को बधाई दी है।
ऋषि राजपोपत ने भाषा विज्ञान के पिता पाणिनि के सिखाए गए एक नियम को डिकोड किया है, जो अब तक रहस्य था। माना जा रहा है ये खोज किसी भी संस्कृत शब्द की उत्पत्ति को संभव बनाएगी। बता दें, 'मंत्र' और 'गुरु' सहित व्याकरण के नजरिए से लाखों सही शब्दों का निर्माण इससे संभव है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बधाई देते हुए ट्वीट किया। जिसमें लिखा, 'राजीव गांधी कैम्ब्रिज स्कॉलरशिप के प्राप्तकर्ता ऋषि राजपोपत ने "भाषा विज्ञान के जनक" पाणिनि द्वारा सिखाए गए एक नियम को डिकोड करके 2,500 साल पुरानी संस्कृत पहेली को हल किया है। पूरे देश को गौरवान्वित करने के लिए मेरी ओर से उन्हें हार्दिक बधाई।'
कौन थे पाणिनि
पाणिनि 700 ईपू संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गान्धार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है, जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है।
पाणिनि के कहे का मतलब समझाया
दरअसल, पाणिनि के ग्रंथ अष्टाध्यायी (Panini's book Ashtadhyayi) में मूल शब्दों से 'नए शब्द' बनाने के नियम हैं। मगर, पाणिनि के बताए उस इस नियम के प्रयोग से नए शब्द बनाने में अक्सर समस्या सामने आती थी। जिससे कई विद्वानों (Scholars) में भी भ्रम (Confusion) था। ऋषि अतुल राजपोपत ने उन सभी भ्रम और समस्या के निदान निकाल दिया। उन्होंने अपने डिसर्टेशन में तर्क दिया है कि शब्द बनाने के इस 'मेटारूल' को गलत समझा गया था। ऋषि ने बताया कि इस नियम से पाणिनि का मतलब ये था पाठक वो नियम चुनें जो एक वाक्य को बनाने के लिए सही होती है।
पाणिनि की 'भाषा मशीन'
ऋषि के इस खोज ने भाषा विज्ञान के पिता पाणिनि की सराहनीय 'भाषा मशीन' के इस्तेमाल को आसान और सहज बना दिया। जानकारी के लिए बता दें, पाणिनि की इस भाषा मशीन को इतिहास की सबसे बड़ी बौद्धिक उपलब्धियों में से एक माना जाता रहा है। ऋषि राजपोपत के इस नए खोज को संस्कृत विशेषज्ञ भी 'क्रांतिकारी' मान रहे हैं। कहने का मतलब ये है कि पाणिनि का व्याकरण पहली बार कंप्यूटर को पढ़ाया जा सकता है। आने वाले समय में कंप्यूटर पर संस्कृत का इस्तेमाल संभव हो सकता है।
PhD थीसिस में डिकोड हुआ पाणिनि का फॉर्मूला
ऋषि अतुल राजपोपट ने अपनी पीएचडी थीसिस (Rishi Atul Rajpopat PhD Thesis) रिसर्च के दौरान सदियों पुरानी 'संस्कृत की समस्या' को सुलझाने का खुलासा किया। ऋषि की ये थिसिस बीते दिनों 15 दिसंबर को प्रकाशित हुई थी। अतुल राजपोपत ने 2,500 साल पुराने 'एल्गोरिदम' को डिकोड किया। जानकर बताते हैं, पहली बार पाणिनि की 'भाषा मशीन' का सटीक इस्तेमाल करना संभव हुआ है।
ज्ञात हो कि, पाणिनि की प्रणाली को उनके द्वारा लिखे गए सबसे मशहूर 'अष्टाध्यायी' से जाना जाता है। अष्टाध्यायी में विस्तृत तौर पर 4000 नियम हैं। संस्कृत के विद्वानों के लिए ये रहस्य के समान माना जाता है। अष्टाध्यायी को पाणिनि ने 500 बीसी के आसपास लिखा था। कहा जाता है कि इसमें लिखे गए नियम बिल्कुल एक मशीन की तरह काम करने के लिए बनाए गए हैं। 'फीड इन द बेस' (Feed in the Base) मतलब मूल शब्द और शब्द के प्रत्यय को चरण-दर-चरण प्रक्रिया के जरिए व्याकरण के हिसाब से सही शब्दों और वाक्यों में बदलना चाहिए।
अब तक क्या थी समस्या?
जानकर बताते हैं अब तक सबसे बड़ी समस्या ये थी कि पाणिनि के दो या दो से अधिक नियम एक ही चरण में एक साथ लागू होते हैं। इससे विद्वानों में इस बात को लेकर असमंजस था कि किसे चुनना चाहिए।तथाकथित 'नियम संघर्ष' को हल करने के लिए, जो 'मंत्र' और 'गुरु' के कुछ रूपों सहित लाखों संस्कृत शब्दों पर असर डालते हैं। इसके लिए एक एल्गोरिदम की जरूरत होती है। पाणिनि ने इसके लिए एक मेटारूल सिखाया। जिससे उनका मतलब है कि एक नियम जो अन्य नियमों के इस्तेमाल को नियंत्रित करता है। ऋषि राजपोपत ने '1.4.2 'विप्रतिषेधे' परं कार्यम' कहा है- हमें यह तय करने में मदद करने के लिए कि 'नियम संघर्ष' की स्थिति में कौन सा नियम लागू किया जाना चाहिए। लेकिन, पिछले 2500 सालों से विद्वानों ने इस मेटारूल की गलत व्याख्या की। वे अक्सर व्याकरण के हिसाब से गलत नतीजे प्राप्त करते रहे।