भारत का 'सीक्रेट हथियार': नाम से ही डरा चीन, करगिल युद्ध में किया था कमाल

भारतीय सेना के इस स्पेशल फोर्स की सबसे खास और दिलचस्प बात ये है कि इसमें तिब्बत के शरणार्थी शामिल हैं और भारतीय ऑफिसर इसे लीड करते हैं। हाल ही में, लद्दाख में पेंगोंग झील के पास एक लैंडमाइन धमाके में एसएफएफ के एक कमांडो की शहादत के बाद इस पर चर्चा होने लगी है।

Update: 2020-09-08 14:04 GMT
भारत का 'सीक्रेट हथियार': नाम से ही डरा चीन, करगिल युद्ध में किया था कमाल

नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच अभी तनाव की स्थिति जिस प्रकार से बनी हुई है उसको देखते हुए सीमा पर जारी मुकाबले के बीच भारत की एक ऐसी सीक्रेट यूनिट पर चर्चा शुरू हो गई है जिसके योद्धा न सिर्फ चीन की घुसपैठ को नाकाम करते हैं, बल्कि उनके कारनामे करगिल युद्ध से लेकर एंटी-टेरर ऑपरेशंस तक देखे गए हैं। इनकी जांबाजी से दुश्मन कांप उठता है। इस यूनिट का नाम सामने आते ही चीन हरकत में आ गया है।

आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में भी हिस्सा ले चुके

करगिल युद्ध में अपना लोहा मनवा चुके इस सीक्रेट यूनिट का नाम है SFF यानी स्पेशल फ्रंटियर फोर्स। इस फोर्स के वीर वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन के मंसूबों को नाकाम करते हैं। बता दें कि SFF के योद्धा बांग्लादेश युद्ध और करगिल युद्ध के दौरान भी अपनी ताकत का एहसास करा चुके हैं। इसके अलावा, पंजाब और कश्मीर में अलग-अलग नामों से एसएफएफ के जांबाज आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में भी हिस्सा ले चुके हैं।

इस स्पेशल फोर्स में तिब्बत के शरणार्थी शामिल हैं

भारतीय सेना के इस स्पेशल फोर्स की सबसे खास और दिलचस्प बात ये है कि इसमें तिब्बत के शरणार्थी शामिल हैं और भारतीय ऑफिसर इसे लीड करते हैं। हाल ही में, लद्दाख में पेंगोंग झील के पास एक लैंडमाइन धमाके में एसएफएफ के एक कमांडो की शहादत के बाद इस पर चर्चा होने लगी है।

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कमांडोज को पैराजंपिंग में भी पारंगत किया गया

SFF के अस्तित्व की बात करें तो ये तिब्बत में चीन के अत्याचार और जुल्मों का नतीजा है। चीन की सख्ती से परेशान तिब्बत के जवानों की इस यूनिट को शुरुआती दौर में भारतीय और अमेरिकी फोर्स ने ट्रेनिंग दी थी। 70 के दशक में SFF के कमांडोज को पैराजंपिंग में भी पारंगत किया गया। कुछ वक्त बाद SFF बटालियन सीधे तौर पर भारतीय सेना के अधीन सेवा देने लगी। बताया ये भी जाता है कि स्पेशल फ्रंटियर फोर्स SFF रॉ के तहत काम करती है और इसका गठन 1962 में हुआ था।

भारतीय सेना ने 1984 में ऑपरेशन मेघदूत को शुरू किया था

ऊंचे पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में लड़ाई के माहिर एसएफएफ के योद्धाओं को भारतीय सेना ने सबसे पहले 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के तहत सियाचिन ग्लेशियर पर कंट्रोल का मौका दिया था। तुरटुक के पास दक्षिणी ग्लेशियर में पाकिस्तानी सीमा पर भी एसएफएफ के कमांडो की तैनाती की गई थी।

एसएफएफ को 'विकास रेजिमेंट' भी कहा जाता है

भारतीय सेना में सेवा देते वक्त एक वक्त ऐसा आया जब एसएफएफ को 'विकास रेजिमेंट' कहा जाने लगा और इसकी बटालियन को 'विकास बटालियन' की संज्ञा दी गई। मौजूदा वक्त में सियाचिन में एक विकास बटालियन नियमति तौर पर तैनात रहती है। SFF ने 1999 के करगिल युद्ध में अहम रोल अदा किया। एसएफएफ की पांचवीं बटालियन को 102 इंफेंट्री ब्रिगेड में शामिल किया गया। बताया जाता है कि युद्ध के दौरान विकास बटालियन ने युद्ध में इंफेंट्री ब्रिगेड की मदद की।

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अब चीन भी सकते में आया

इस यूनिट को लेकर जहां भारतीय सेना में भी पूरी जानकारी नहीं थी, वहां दुश्मन देश को इसकी भनक भला कहां लग सकती थी। यही वजह है कि बीते 29-30 अगस्त की रात जब SFF के जवानों ने लद्दाख में पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर चीनी सेना की घुसपैठ की कोशिश को नाकाम किया तो इसी ऑपरेशन के दौरान एक लैंडमाइन की चपेट में आने से कमांडो नीमा तेंजिन की मौत हो गई। नीमा तेंजिन की शहादत से एसएफएफ का नाम सामने आया।

भारत माता की जय के नारे लगाए गए तो चीन के कान खड़े हो गए

लेह में जब नीमा तेंजिन को पूरे सम्मान के साथ विदाई दी गई और भारत माता की जय के नारे लगाए गए तो चीन के कान खड़े हो गए। चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से हुआ चुनयिंग ने कहा कि मैं यह भी सोच रही हूं कि 'निर्वासित तिब्बतियों' और भारतीय सीमा सैनिकों के बीच क्या संबंध है। यानी चीन को भी समझ नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है।

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तिब्बत की निर्वासित सरकार से भारत को मिल रहे सपोर्ट-ग्लोबल टाइम्स

भारत की इस सीक्रेट यूनिट को लेकर चीनी मीडिया में भी चर्चा होने लगी है। चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इसे लेकर एक आर्टिकल छापा और कहा कि विदेशी मीडिया में भी अचानक से भारत की स्पेशल यूनिट SFF और तिब्बत की निर्वासित सरकार से भारत को मिल रहे सपोर्ट को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि चीन तिब्बत में अलगाववादी ताकतों को किसी भी रूप में बढ़ावा देने का सख्ती से विरोध करता है।

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