गणेश शंकर विद्यार्थी : इंसानियत की लुटती आबरू बचाने के लिए दी प्राणों की आहुति
लखनऊ : हमें रवीना टंडन का बड्डे याद है। ये वो एक्ट्रेस है जिसने अंखियों से गोली मारना सिखाया। लेकिन हम में से बहुत से ये भूल गए कि आज गणेश शंकर विद्यार्थी का भी हैप्पी बड्डे है। आज हम ये नहीं बताएंगे की गणेश कहां पैदा हुए। कितना पढ़े। हम सिर्फ करेंगे मुद्दे की बात।
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कानपुर वाले चचा सुरेंदर ने हमें जो बताया हम उसे वैसा ही बता रहे हैं...
वर्ष 1931..एक ऐसा साल जब कानपुर दंगे से जल रहा था। इंसानियत कहीं कोने में पड़ी अपनी आबरू बचाने की गुहार लगा रही थी। किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो बाहर निकल कर इंसानियत की लुटती आबरू को बचा सके। ऐसे में निकले अकेले निकले गणेश शंकर विद्यार्थी और फिर कभी लौट कर नहीं आए। उनकी लाश अस्पताल में लाशों के ढेर में दबी मिली थी। 29 मार्च को जब उनको अंतिम विदाई दी गई तो पूरा देश रो रहा था।
16 साल की उम्र में ही गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी पहली किताब लिख थी। किताब का नाम था हमारी आत्मोसर्गता। 1911 में उनका लेख हंस में छपा था।
प्रताप अखबार का आरंभ गणेश शंकर विद्यार्थी ने 9 नवंबर, 1913 में की थी। विद्यार्थी जब जेल गए तो प्रताप का संपादन माखनलाल चतुर्वेदी जैसे बड़े साहित्यकार करते रहे। झंडा ऊंचा रहे हमारा गीत को विद्यार्थी ने शोहरत बक्शी।
बने मजलूमों की आवाज
जनवरी, 1921 में अपने अखबार प्रताप में गणेश ने रायबरेली के ताल्लुकदार सरदार वीरपाल सिंह के खिलाफ रिपोर्ट छापी की कैसे वीरपाल ने किसानों पर गोली चलावाई। सरदार ने प्रताप के संपादक विद्यार्थी पर मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया। इसके बाद प्रताप अखबार किसानों के बीच लोकप्रिय हो गया। इस केस की खास बात ये थी कि इसमें मोतीलाल नेहरू और जवाहर लाल नेहरू भी पेश हुए थे। लेकिन फैसला ताल्लुकदार के पक्ष में आया। इसके बाद गणेश जेल चले गए। गणेश 7 महीने से ज्यादा विद्यार्थी जेल में रहे।