कठिन है डगर ऑनलाइन पढ़ाई की
महामारी के चलते पूरी दुनिया में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ा बदलाव आया है। अब डिजिटल पढ़ाई पर ज़ोर है ताकि बच्चों को संक्रमण से बचाया जा सके।
लखनऊ: महामारी के चलते पूरी दुनिया में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ा बदलाव आया है। अब डिजिटल पढ़ाई पर ज़ोर है ताकि बच्चों को संक्रमण से बचाया जा सके। लेकिन संकट है डिजिटल विभाजन का। स्कूलों को पता नहीं कि लॉकडाउन जैसी स्थिति में वे अपने छात्रों को कैसे पढ़ाएं और नेट से वंचित बच्चों को अमझ नहीं आ रहा कि वे पढ़ाई करें तो कैसे। सवाल उठने लगा है कि आखिर कितने छात्रों के पास ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा है?
शहर के एक कर्मचारी संतोष सोनी कहते हैं कि उनकी बेटी के स्कूल में ऑनलाइन पढ़ाई तो शुरू हो गई है, लेकिन वह आखिर पढ़ाई कैसे करे? घर में न इंटरनेट है और न ही कंप्यूटर। स्मार्टफोन पर इंटरनेट की स्पीड भी काम लायक नहीं है। बिजली की समस्या भी रहती है। पूरे ठाकुरगंज मोहल्ले का यही हाल है। ऑनलाइन पढ़ाई पैसे वालों के लिए है, हमारे जैसे निम्न मध्यवर्ग के लोगों के बच्चों के लिए नहीं। सितंबर, 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत इंटरनेट की स्पीड के मामले में विश्व में 128वें स्थान पर है। ग्रामीण इलाकों में तो हालत और भी बुरी है।
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अमीर और गरीब बच्चों के स्कूल
इस तस्वीर का दूसरा पहलू एकदम भिन्न है। बड़े स्कूल वर्चुअल कक्षाओं में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए रोजाना पढ़ाई कराते हैं। छात्रों की ऑनलाइन परीक्षा भी आयोजित होती है। लेकिन देश में आखिर कितने स्कूलों के पास ऐसी सुविधा है? खासकर ग्रामीण इलाकों में तो कंप्यूटर और इंटरनेट के साथ ही बिजली भी एक समस्या है। आर्थिक रूप से पिछड़े तबके के छात्रों तक ऑनलाइन पहुंचना बेहद गंभीर समस्या है। एक छोटे निजी स्कूल के एक शिक्षक कहते हैं कि उनके ज्यादातर छात्र गरीब परिवारों से हैं और दूर-दूर से आते हैं। उनके घरों पर बिजली की नियमित सप्लाई ही समस्या है, इंटरनेट औऱ कंप्यूटर तो दूर की बात है। आखिर कितने घरों में इसके लिए जरूरी आधारभूत सुविधाएं मौजूद हैं।
राजधानी दिल्ली भी अलग नहीं
दिल्ली के सरकारी और नगरपालिका के स्कूलों में पढ़ने वाले लगभग 16 लाख बच्चे मोबाइल, इंटरनेट और कंप्यूटर के अभाव की वजह से ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो पा रहे हैं। वहां नगरपालिका की ओर से संचालित लगभग सोलह सौ स्कूलों में आठ लाख बच्चे पढ़ते हैं जबकि दिल्ली सरकार की ओर से संचालित 1028 स्कूलों में छात्रों की तादाद 15.15 लाख है। लॉकडाउन में बंद पड़े स्कूलों के चलते शुरू की गई ऑनलाइन पढ़ाई में छात्र ज्यादा दिलचस्पी भी नहीं ले रहे हैं। यही वजह है कि इन कक्षाओं से करीब आधे छात्र ही जुड़ पाए हैं। इसके अलावा कहीं इंटररनेट की रफ्तार तो कहीं संसाधनों की कमी ऑनलाइन पढ़ाई को प्रभावित कर रही है।
लखनऊ के देवंश कहते हैं कि उनके घर के बच्चे मोबाइल पर गेम ही खेलते रहते हैं। आखिर टीचर और पेरेंट्स हर समय हर बच्चे की निगरानी तो कर नहीं सकते। बहुत से टीचर को ऑनलाइन पढ़ाई कराना भी नहीं आता है।
दुनिया भर के छात्र प्रभावित
यूनेस्को ने कहा है कि कोरोना की वजह से स्कूलों के बंद होने के कारण पूरी दुनिया में 154 करोड़ छात्र प्रभावित हुए हैं। उसने इस समस्या पर काबू पाने के लिए डिजिटल खाई को पाटने समेत छह-सूत्री उपाय सुझाए हैं। लेकिन भारत जैसे विकासशील देश के लिए इन सुझावों पर अमल करना टेढ़ी खीर ही है।
गरीब छात्रों पर हो रहा है असर
कुछ शिक्षाविद कहते हैं कि जिस देश में स्कूली शिक्षा के लिए शिक्षक और भवन जैसी आधारभूत सुविधाएं नहीं हों, वहां ऑनलाइन शिक्षा की बात बचकानी ही लगती है। उनका कहना है कि मिशन अंत्योदय के तहत 20 फीसदी ग्रामीण परिवारों को 8 घंटे से भी कम बिजली मिलती है और 47 फीसदी को 12 घंटे से कुछ ज्यादा। इसके अलावा 2018 के एक अध्ययन के मुताबिक सिर्फ 24 फीसदी लोगों के पास स्मार्टफोन है। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच देश में सिर्फ 10.7 फीसदी परिवारों के पास ही कंप्यूटर था।
2017-18 के लिए एनएसएसओ की 75वीं रिपोर्ट के मुताबिक देश के सिर्फ 23.8 फीसदी घरों में इंटरनेट की सुविधा है। गांवों में 14.9 फीसदी घरों में इंटरनेट की सुविधा है और शहरों में 42 फीसदी घरों में इंटरनेट कनेक्शन है।
धनी और गरीब तबके में कोविड-19 संकट के दौरान डिजिटल खाई चिंता का विषय है। ऑनलाइन पढ़ाई भारत के लिए नई चीज है। लेकिन इसके लिए गरीबी और इंटरनेट की पहुंच जैसी कई बाधाओं को दूर करना जरूरी है।
बदहाल एजुकेशन सिस्टम
द एनुअल स्टेट ऑफ एजुकेशन यानी असर की 2018 की रिपोर्ट बताती है कि देश के ग्रामीण इलाकों में पांचवीं क्लास के आधे बच्चे ही दूसरी क्लास की किताबें पढ़ पाते हैं। सर्वे के दौरान सिर्फ 28 फीसदी बच्चे ही गुणा-भाग के सरल सवाल का हल निकाल सके। इस सर्वे में एक बात यह भी थी कि वे बच्चे पढ़ाई-लिखाई में ज्यादातर कमजोर दिखे, जिन्हें घरों में पढ़ाई के दौरान सपोर्ट नहीं मिलता था। यानी घरों में उनकी पढ़ाई-लिखाई की दिक्कतें दूर करने वाला कोई नहीं था। अब कल्पना कर सकते हैं ऐसे बच्चों को लॉकडाउन के दौरान कौन इंटरनेट से पढ़ने में मदद करेगा? रिपोर्ट से यह भी जाहिर हुआ कि जो बच्चे पढ़ाई में पिछड़े हुए थे वे वित्तीय संसाधनों के मामले में भी कमजोर थे। इसलिए ऐसे बच्चों के लिए पढ़ाई जारी रखना ही बड़ी जद्दोजहद साबित होगी, ऑनलाइन एजुकेशन तो दूर की बात है।
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बॉक्स
सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया भर में लॉकडाउन की वजह से बच्चों की पढ़ाई के नुकसान पर चिंता जताई जा रही है। एक अमेरिकी आकलन में कहा गया कि इस बार जब बच्चे लॉकडाउन के बाद स्कूल लौटेंगे तो उनकी रीडिंग लेवल 30 फीसदी तक घट सकता है और गणित में दक्षता के मामले में तो वह एक साल तक पिछड़ सकते हैं। वर्ल्ड बैंक ने ब्राजील में जो स्टडी की है, उसके मुताबिक तीन महीने की स्कूलबंदी 48 हजार बच्चों को ‘लर्निंग पॉवर्टी’ में डाल सकती है।
यह सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। पढ़ाई का यह नुकसान उनके भविष्य की कमाई पर भी असर डालता है। एक स्टडी के मुताबिक स्कूल में बिताया गया हर एक साल बच्चों के भविष्य की कमाई में 10 फीसदी का इजाफा करता है। वहीं ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट की एक स्टडी में यह बताया गया है कि अमेरिका में चार महीने की स्कूलबंदी स्टूडेंट्स की भविष्य की कमाई में सालाना 1,337 डॉलर की गिरावट पैदा कर सकती है।
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