बाटला हाउस कांड: पुलिस ने इसलिए नहीं पहन रखी थी बुलेट प्रूफ जैकेट्स, किताब में खुलासा
कुछ नेताओं पर इस घटना को लेकर घडियाली आंसू बहाने के भी आरोप लगे थे। इस एनकाउंटर ने बहुत बड़ा राजनीतिक बखेड़ा खड़ा किया जिसकी आंच आज भी जहां तहां कांग्रेस और हाईकमान को परेशान करती रहती है।
नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में साल 2008 में हुए बाटला हाउस एनकाउंटर को लेकर जब कही पर भी कोई चर्चा शुरू होती है तो एक सवाल लोगों के मन में अपने आप ही उठने लगता है।
सवाल कि आखिर क्यों पुलिस कर्मियों ने उस वक्त बुलेट प्रूफ जैकेट्स नहीं पहन रखी थी। हर कोई आज भी इस सवाल का जवाब जानना चाहता है। ये एक ऐसा सवाल था जिस पर जमकर सियासत भी हुई।
कुछ नेताओं पर इस घटना को लेकर घडियाली आंसू बहाने के भी आरोप लगे थे। इस एनकाउंटर ने बहुत बड़ा राजनीतिक बखेड़ा खड़ा किया जिसकी आंच आज भी जहां तहां कांग्रेस और हाईकमान को परेशान करती रहती है।
फिलहाल आज उन सवालों पर एक बार फिर से विराम लगाने की कोशिश की गई है। अब इस पर दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत्त अधिकारी और इस ऑपरेशन को लीड करने वाले करनाल सिंह ने किताब लिखी है।
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आखिर क्या लिखा है इस किताब में
उन्होंने अपनी किताब Batla House: An Encounter That Shook The Nation में उन तमाम सुलगते सवालों के जवाब दिए है। जिसको लेकर सड़क से लेकर सदन तक खूब हो हल्ला मचा था।
करनाल सिंह साल 1984 बैच के IPS अधिकारी रहे हैं। वे बाटला हाउस एनकाउंटर के समय स्पेशल सेल के जॉइंट कमिश्नर थे। उन्होंने अपनी बुक में एल-18 बाटला हाउस के फ्लैट नंबर 108 में क्या हुआ था और क्यों शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा और उनकी टीम ने बुलेट प्रूफ जैकेट्स नहीं पहन रखे थे?
करनाल सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि उनकी टीम मुठभेड़ से एक दिन पहले यह जानकारी जुटाने में करने में सफल हो गई थी कि एक नंबर जिसका इस्तेमाल आतंकवादी मोहम्मद आतिफ अमीन ने किया था उसका उपयोग जयपुर में विस्फोट (13 मई, 2008) और अहमदाबाद (26 जुलाई, 2008) और 13 सितंबर, 2008 को दिल्ली के करोल बाग, कनॉट प्लेस और ग्रेटर कैलाश में हुए सिलसिलेवार विस्फोट में शामिल था।
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रेड मारने के फैसले पर आपस में अनबन
उन्होंने किताब में लिखा है कि शाम तक यह पुख्ता होने के बाद कि आतिफ अमीन आदमी ठीक नहीं हैं जरूर कोई गडबड हैं, करनाल सिंह ने टीम को उसे सही सलामत गिरफ्तार करने का आदेश दिया। 18 सितंबर की शाम के वक्त, एक छोटी सी टीम को बटला हाउस इलाके के बारे में जानने के लिए रवाना कर दिया गया।
उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि – हमारे टीम के लोग 'आतिफ जहां ठहरा था यानी बाटला हाउस के एल -18 पर छापा मारने के फैसले में एक राय नहीं रखते थे। लेकिन उस वक्त सवाल ये उठ रहा था कि आखिर कब तक इतंजार किया? यह रमज़ान का महीना था और इसलिए, शाम या रात में रेड करना उचित नहीं था।
मोहन ने सुझाव दिया कि हमें दिन के समय बाटला हाउस पर रेड करना चाहिए क्योंकि इसी समय वे घर पर आराम फरमा रहे होंगे।'
आनन-फानन में बनाई गई टीमें
उन्होंने लिखा है कि 19 सितंबर के लिए आनन फानन में दो टीमें बनाई गईं थी। इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा 18 सदस्यीय टीम लीड कर रहे थे जबकि डीसीपी संजीव यादव (उस समय एसीपी) ने दूसरी टीम का नेतृत्व किया। सिंह ने लिखा है कि डेंगू के कारण उस दिन शर्मा के बेटे को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन इंस्पेक्टर ने अपनी ड्यूटी पहले लगा दी थी।
वह लिखते हैं कि टीम के अधिकांश अधिकारी, जिनमें इंस्पेक्टर राहुल, धर्मेंद्र और अन्य शामिल थे, 19 सितंबर को देर रात या दूसरे राज्यों से अलग-अलग इनपुट पर काम करने के बाद देर रात लौटे थे। उन सभी पर पारिवारिक जिम्मेदारियाँ थीं लेकिन जब ड्यूटी की बात आई तो सब इस ऑपरेशन के लिए तैयार हो गए।'
लिखा है कि - 'रेड शुरू होने से पहले, 19 सितंबर को लगभग 11 बजे, सिंह को शर्मा का फोन आया और कहा - 'सर, एल -18 के अंदर लोग हैं।हम अंदर जा रहे हैं। लगभग 10 मिनट के बाद, मेरा फोन बज उठा। फोन पर संजीव यादव था। उन्होंने कहा- 'सर, मोहन और हेड कांस्टेबल बलवंत को गोली लगी है और उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा है। आतंकवादी भी घायल हुए हैं लेकिन वे घर के अंदर हैं।'
इसलिए नहीं फनी थी बुलेट प्रूफ जैकेट्स
उन्होंने आगे लिखा है- इसी समय खुद सिंह और फिर स्पेशल सेल के डीसीपी आलोक कुमार भी यादव को आतंकवादियों को पकड़ने का निर्देश देते हुए बटला हाउस पहुंचे। सिंह ने इसे अपने करियर के सबसे तनावपूर्ण क्षणों में से एक बताते हुए कहा कि मैं दिल्ली पुलिस के प्रति लोगों के विचार समझ पा रहा था क्योंकि हमारे खिलाफ नारे लगाने वाली भीड़ वहां इकट्ठा हो गई थी।
फ्लैट पर पहुंचने पर, सिंह ने अपनी टीम को सब कुछ सिलसिलेवार समझाने को कहा। सिंह ने लिखा है कि 'राहुल ने बताया कि मोहन आगे की टीम का नेतृत्व कर रहा थे।
मोहन द्वारा धर्मेंद्र को छोड़कर सभी टीम के सदस्यों को सामान्य कपड़ों में ही रहने के लिए कहा। ऐसा इसलिए किया गया ताकि अगर लोग फ्लैट में नहीं भी मिलें तो भी बिना किसी को खबर हुए सभी वहां से वापस लौट सकें। सिंह ने कहा- 'यही वजह थी कि टीम से किसी ने भी बुलेट-प्रूफ जैकेट नहीं पहन रखा था।'
मोहन को लगी थी दो गोलियां
आतंकवादियों ने पहली टीम पर अंधाधुंध गोलीबारी की जिसके कारण शर्मा को सामने से दो गोलियां लगी थीं। हेड कांस्टेबल बलवंत को भी गोली लगी थी लेकिन वह बच गए।
किताब में लिखा है कि शर्मा की टीम ने गाड़ियों को खलीलुल्लाह मस्जिद के पास पार्क किया था, जिसमें बुलेट-प्रूफ जैकेट समेत AK-47 राइफल थे। शर्मा की टीम केवल छोटे हथियारों के साथ फ्लैट पर गई थी। इस दिन को जब भी करनाल याद करते हैं तो पूरा दृश्य उनकी आंखों के सामने आ जाता है।
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