क्या है तीन भाषा नीति, दक्षिण भारत में है उबाल, क्यों कर्नाटक के CM के बिगड़े बोल

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रस्तावित तीन भाषा फॉर्म्युले को लेकर दक्षिण भारत में बवाल मच गया है। इसे लेकर राजनीतिक पार्टियों कर रही हैं। डीएमके ने जहां इस मसौदे का कड़ा विरोध किया है, वहीं तमिलनाडु सरकार ने मामले को शांत करने का प्रयास करते हुए कहा कि वह दो भाषा फॉर्म्युले को जारी रखेगी।

Update:2019-06-03 13:19 IST

नई दिल्ली: राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रस्तावित तीन भाषा फॉर्म्युले को लेकर दक्षिण भारत में बवाल मच गया है। इसे लेकर राजनीतिक पार्टियों कर रही हैं। डीएमके ने जहां इस मसौदे का कड़ा विरोध किया है, वहीं तमिलनाडु सरकार ने मामले को शांत करने का प्रयास करते हुए कहा कि वह दो भाषा फॉर्म्युले को जारी रखेगी।

डीएमके ने इस मसौदे को ठंडे बस्ते में डालने की मांग करते हुए कहा कि यह राज्य पर हिंदी को थोपने के समान है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने इस शिक्षा नीति का विरोध किया है।

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने एक ट्वीट कर नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा (तीन भाषा) की नीति का विरोध किया है। कुमारस्वामी ने कन्नड़ में ट्वीट किया और लिखा, 'मानव संसाधन मंत्रालय (एचआरडी) की ओर से जारी मसौदे को कल मैंने देखा जिसमें हिंदी थोपने की बात की गई है। तीन भाषा की नीति के नाम पर किसी पर कोई भाषा नहीं थोपी जानी चाहिए. इसके बारे में हमलोग केंद्र सरकार को सूचित करेंगे।'

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हालांकि मोदी सरकार ने शिक्षा नीति ड्राफ्ट में बदलाव किया है जिसके तहत हिंदी के अनिवार्य होने वाली शर्त हटा दी गई है। पहले तीन भाषा फॉर्मूले में अपनी मूल भाषा, स्कूली भाषा के अलावा तीसरी लैंग्वेज के तौर पर हिंदी को अनिवार्य करने की बात कही थी, लेकिन सोमवार को जो नया ड्राफ्ट आया है, उसमें फ्लेक्सिबल शब्द का इस्तेमाल किया गया है।

यानी अब स्कूली भाषा और मातृ भाषा के अलावा जो तीसरी भाषा का चुनाव होगा, वह स्टूडेंट अपनी मर्जी के मुताबिक कर पाएंगे। यानी कोई भी तीसरी भाषा किसी पर थोपी नहीं जा सकती है।

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दरअसल, शिक्षा नीति से पहले आई कस्तूरीरंगन समिति ने अपनी रिपोर्ट में सरकार से अपील की है कि राज्यों को हिंदीभाषी, गैर हिंदीभाषी के तौर पर देखा जाना चाहिए। अपील की गई है कि गैर हिंदीभाषी राज्यों में क्षेत्रीय और अंग्रेजी भाषा के अलावा तीसरी भाषा हिंदी लाई जाए और उसे अनिवार्य कर दिया जाए।

भाषा का ये विवाद पूरी तरह से राजनीतिक हो गया है। दक्षिण भारत की राजनीतिक पार्टियों ने केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया रही हैं।

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