तमिल महाकवि और आजादी के सिपाही सुब्रह्मण्य भारती ,जानिए इनके बारे में

सुब्रह्मण्य भारती का जन्म 11 दिसंबर, 1882 को एक तमिल गाँव एट्टियपुरम, तमिलनाडु में हुआ था। शुरू से ही वह विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और कम समय में ही उन्होंने संगीत का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था।

Update: 2020-12-11 04:35 GMT
तमिल भाषा के महाकवि सुब्रमण्यम भारती का जन्म 11 दिसंबर 1882 में हुआ था. उनकी रचनाएं देशभक्ति की भावना से भरी हुई होती थीं और उससे प्रभावित होकर दक्षिण भारत में बड़ी संख्या में लोग आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए.

नई दिल्ली: भारत के महान् कवियों में से एक सुब्रह्मण्य भारती है। जिन्होंने तमिल भाषा में काव्य रचनाएँ कीं। इन्हें महाकवि भरतियार के नाम से भी जाना जाता है। सुब्रह्मण्य भारती एक जुझारू शिक्षक, देशप्रेमी और महान् कवि थे। उनकी देश प्रेम की कविताएं इतनी श्रेष्ठ हैं कि उन्हें भारती उपनाम से ही पुकारा जाने लगा।

सुब्रमण्यम भारती ऐसे साहित्यकार रहे जो सक्रिय रूप से ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ में शामिल रहे, जबकि उनकी रचनाओं से प्रेरित होकर दक्षिण भारत में आम लोग आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। ये ऐसे महान् कवियों में से एक थे, जिनकी पकड़ हिंदी, बंगाली, संस्कृत, अंग्रेज़ी आदि कई भाषाओं पर थी, पर तमिल उनके लिए सबसे प्रिय और मीठी भाषा थी। उनका ‘गद्य’ और ‘पद्य’ दोनों विधाओं पर समान अधिकार था।

 

विलक्षण प्रतिभा के धनी

सुब्रह्मण्य भारती का जन्म 11 दिसंबर, 1882 को एक तमिल गाँव एट्टियपुरम, तमिलनाडु में हुआ था। शुरू से ही वह विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और कम समय में ही उन्होंने संगीत का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 11 वर्ष की आयु में उन्हें कवियों के एक सम्मेलन में आमंत्रित किया गया, जहाँ उनकी प्रतिभा को देखते हुए भारती को ज्ञान की देवी सरस्वती का ख़िताब दिया गया था। भारती जब पाँच वर्ष के ही थे, तभी उनकी माता का निधन हो गया। बाद में पिता का निधन भी जल्दी हो गया। 11 वर्ष की ही अल्प अवस्था में उनका विवाह कर दिया गया। वह कम उम्र में ही वाराणसी अपनी बुआ के पास आ गए थे, जहां अध्यात्म और राष्ट्रवाद से प्रेरित हुए। इसका उनके जीवन पर काफ़ी प्रभाव पड़ा और उनकी सोच में भी बदलाव आया।

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भारती ने संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा का अध्ययन

4 साल के काशीवास में भारती ने संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा का अध्ययन किया। अंग्रेज़ी भाषा के कवि ‘शैली’ से वे विशेष प्रभावित थे। उन्होंने एट्टयपुरम् में ‘शेलियन गिल्ड’ नामक संस्था भी बनाई तथा ‘शेलीदासन्’ उपनाम से अनेक रचनाएँ लिखीं। काशी में ही उन्हें राष्ट्रीय चेतना की शिक्षा मिली, जो आगे चलकर उनके काव्य का मुख्य स्वर बन गयी। काशी में उनका सम्पर्क भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा निर्मित ‘हरिश्चन्द्र मण्डल’ से रहा। काशी में उन्होंने कुछ समय एक विद्यालय में अध्यापन किया।

 

नरम-गरम दल के बीच की तस्वीर स्पष्ट

 

राजनीति गलियारों में भी इनकी कविताओं की गूंज रहती है। भारती 1907 की ऐतिहासिक सूरत कांग्रेस में शामिल हुए थे जिसने नरम दल और गरम दल के बीच की तस्वीर स्पष्ट कर दी थी। भारती ने तिलक अरविन्द तथा अन्य नेताओं के गरम दल का समर्थन किया था।अंग्रेज शासन के विरुद्ध स्वराज्य सभा के आयोजन के लिए भारती को जेल जाना पड़ा। कोलकाता जाकर उन्होंने बम बनाना, पिस्तौल चलाना और गुरिल्ला युद्ध का भी प्रषिक्षण लिया। वे गरम दल के नेता लोकमान्य तिलक के सम्पर्क में भी रहे। भारती ने नानासाहब पेषवा को मद्रास में छिपाकर रखा। शासन की नजर से बचने के लिए वे पाण्डिचेरी आ गये और वहाँ से स्वराज्य साधना करते रहे। निर्धन छात्रों को वे अपनी आय से सहयोग करते थे। 1917 में वे गान्धी जी के सम्पर्क में आये और 1920 के असहयोग आन्दोलन में भी सहभागी हुए।

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तमिल राष्ट्रवाद का उल्लेख

दक्षिण के सुप्रसिद्ध कवि श्री सुब्रह्मण्य भारती जी की प्रारंभिक कविताओं में तमिल राष्ट्रवाद का उल्लेख मिलता है, किन्तु स्वामी विवेकानंद के प्रभाव में आने के बाद उनकी जीवन के उत्तरार्ध में लिखी कवितायें भारतीय हिन्दू राष्ट्रवाद का गुणगान करती हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा में स्वीकार किया कि यह परिवर्तन उनकी गुरु भगिनी निवेदिता और स्वामीजी के कारण उत्पन्न हुआ। देशभक्ति से ओतप्रोत स्वामीजी के भाषणों द्वारा पैदा की गई विचारों की चिंगारी का असर वीर सावरकर तथा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे राष्ट्रभक्तों पर भी दिखाई देता है।

*सुब्रह्मण्य भारती ने माता पिता को खोने के दु:ख को अपने काव्य में ढाल लिया। इससे उनकी ख्याति चारों ओर फैल गयी। स्थानीय सामन्त के दरबार में उनका सम्मान हुआ और उन्हें ‘भारती’ की उपाधि दी गयी।

*भारती का प्रिय गान बंकिम चन्द्र का ‘वन्दे मातरम्’ था। 1905 में काशी में हुए ‘कांग्रेस अधिवेशन’ में सुप्रसिद्ध गायिका सरला देवी ने यह गीत गाया। भारती भी उस अधिवेशन में थे। बस तभी से यह गान उनका जीवन प्राण बन गया। मद्रास लौटकर भारती ने उस गीत का उसी लय में तमिल में पद्यानुवाद किया, जो आगे चलकर तमिलनाडु के घर-घर में गूँज उठा।

*1907 में जब कांग्रेस गरम दल और नरम दल में बंट गई थी, तो इन्होंने गरम दल का साथ दिया था। वह स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता को अपना गुरु मानते थे। निवेदिता ने उन्हें महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने को प्रोत्साहित किया था।

 

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तमिल शैली का इस्तेमाल

*अपनी किताब गीतांजलि, जन्मभूमि और पांचाली सप्तम में उन्होंने आधुनिक तमिल शैली का इस्तेमाल किया, जिससे उनकी भाषा जनसाधारण के लिए बेहद आसान हो गई। भारती कई भाषाओं के जानकार थे। उनकी पकड़ हिन्दी, बंगाली, संस्कृत और अंग्रेजी सहित कई भारतीय भाषाओं पर थी। वे तमिल को सबसे मीठी बोली वाली भाषा मानते थे।

*भारती का योगदान साहित्य के क्षेत्र में तो महत्वपूर्ण है ही, उन्होंने पत्रकारिता के लिए भी काफी काम और त्याग किया। उन्होंने 'इंडिया', 'विजय' और 'तमिल डेली' का संपादन किया। भारती देश के पहले ऐसे पत्रकार माने जाते हैं जिन्होंने अपने अखबार में प्रहसन और राजनीतिक कार्टूनों को जगह दी।

*जिंदगी ने उनका 40 साल से ज्यादा साथ नहीं दिया। लगातार जेल में रहने की वजह से वह बीमार रहने लगे थे। उसी दौरान जिस हाथी को वह रोज खाना खिलाया करते थे उसी ने उन्हें कुचल दिया, जिसके कुछ दिनों के बाद उनकी मौत हो गई।

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