Kumbh 2025: मध्यकाल में प्रयाग

Kumbh 2025: अलबरूनी ने भारत पर अरबी भाषा में 20 पुस्तकें लिखीं हैं, पर उनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण पुस्तक "किताब-उल-हिन्द" में भारतीय संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था का वर्णन किया है।

Update:2024-11-28 15:44 IST

Prayag In Medieval Times

Kumbh 2025: मध्यकाल में भी संगम और उसमें स्नान का महत्व कम नहीं हुआ। परन्तु इस्लामी आक्रमणों और लूटपाट और अत्याचारों से देश की जनता त्राहि-त्राहि कर उठी, इसका प्रभाव देश की तत्कालीन स्थिति पर गहराई तक पड़ा तथा देश की राजनैतिक के साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दशा भी प्रभावित हुई। अलबरूनी ने भारत की मध्यकालीन स्थिति का वर्णन किया है। अलबरूनी ने भारत पर अरबी भाषा में 20 पुस्तकें लिखीं हैं, पर उनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण पुस्तक "किताब-उल-हिन्द" में भारतीय संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था का वर्णन किया है। "अलबरूनी का भारत" इसका हिन्दी अनुवाद है।

अलबरूनी पहला मुसलमान विद्वान था जिसने भारतीय साहित्य और ग्रन्थों को पढ़ने के लिए संस्कृत सीखी। उसने भगवत् गीता, पुराणों आदि का अध्ययन किया था। उसने अपने भारत सम्बन्धी विवरण में उल्लेख किया है,जिसमें वह यमुना नदी को "जौन" नाम से सम्बोधित करता है। वह लिखता है कि कन्नौज से चल कर जौन (यमुना) और गंगा नामक दो नदियों के बीचों बीच दक्षिण की ओर जाने वाला मनुष्य चार प्रसिद्ध नगरों से गुजरेगाजज्जमौ, अभापुरी, बर्हमाशिल और प्रयाग।


प्रयाग का वृक्ष अर्थात् वह स्थान जहां गंगा और जौन नदियों का संगम है, जिनका वर्णन धार्मिक सम्प्रदाय की पुस्तकों में है जहां पर हिन्दू उन विविधप्रकार की यातनाओं से अपने आपको व्यथित करते हैं जिनका वर्णन धार्मिक सम्प्रदाय की पुस्तकों में है। इस वृक्ष का वर्णन करते हुएअलबरूनी कहता है कि ब्राह्मण और क्षत्रियों में यह आत्महत्या की प्रथा बहुतायत थी, वे इस वृक्ष पर चढ़कर अपने आप को गंगा नदी में गिरा देते थे। एक विशेष नियम के अन्तर्गत अपने को जलाना ब्राह्मण और क्षत्रियोंको निषिद्ध था, इसलिए ऐसा वो तब करते थे जब ग्रहणकाल हो।कभी-कभी गंगा में स्वयं को डुबाने के लिए वो किसी व्यक्ति को नियुक्त करते थे, जो मृत्यु हो जाने तक उन्हें गंगा में डुबाये रखता था। प्रयाग से उस स्थान का अन्तर जहां गंगा समुद्र में गिरती है, बारह फर्सख हैं। देश के दूसरे प्रान्त, प्रयाग के वृक्ष से दक्षिणतः समुद्र तट की ओर फैले हुए हैं।अलबरूनी ने पुराणों में वर्णित कटु और विनता की कथा का भी वर्णन किया है।

इब्नबतूता 1325 से 1354 के बीच भारत आया। इब्नबतूता ने मोहम्मद तुग़लक़ के विषय में बताया कि जब सुल्तान दौलताबाद में था तब सुल्तान के पीने का पानी कंक नदी (गंगा) से मंगाया जाता था। वह यह भी बताता है कि भारत के लोग तीर्थयात्रा पर जाकर अपने आपको डुबा देते हैं और वहीं पर मृत व्यक्तियों की राख भी डालते हैं। वह यह भी कहता है कि गंगास्वर्ग की नदी है।

चैतन्य महाप्रभु, जो गौड़ीय वैष्णववाद के संस्थापक थे, कृष्णभक्त थे और'हरे कृष्ण' मंत्र को लोकप्रिय किया, प्रयाग में अपने शिष्य रूप गोस्वामी को धरम सिखाया था। यह भी माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु सन् 1514 ई. में हुए कुम्भ मेले में उपस्थित थे। बाबर नेअपने चार वर्षीय समयावधि में प्रयाग को देखा था। वह अपनी आत्मकथा'बाबरनामा' में प्रयाग को 'प्याग', तथा यमुना को 'जौन' नाम से सम्बोधित करता है।अकबर के काल में प्रयाग का महत्व बढ़ा। अकबरकालीन इतिहासका बदायूनी ने ‘मुन्तखब- उत-तवारीख’ में बताया है कि 1575 में अकबर ने प्रयाग की यात्रा की और उन्होंने गंगा और यमुना के संगमस्थल पर एक क़िला बनवाया तथा शाही नगर की नींव डाली और उसका नाम'इलाहाबास' रखा।

उसने लिखा है "इसे लोग पवित्र स्थान मानते हैं, और अपने धर्ममत में, जिसकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता पुनर्जन्म है, बताये गये पुण्यों की प्राप्ति की इच्छा से सभी प्रकार के कष्ट सहने के लिए तैयार रहते हैं... एकऊँचे वृक्ष की चोटी से नदी के गहरे पानी में कूदकर प्राण दे देते हैं।"अकबर का इतिहासकार अबुल फजल लिखता है कि बहुत दिनों से बादशाह की यह मनोकामना थी कि गंगा और यमुना के संगमस्थल पर जिसमें भारतवासियों की बड़ी श्रद्धा है तथा जो देश के साधु-संन्यासियों के लिए तीर्थस्थान है, पियाग (प्रयाग) नामक कस्बे में एक बड़े शहर की स्थापना की जाये तथा वहां अपनी पसन्द का एक किला बनवाया जाय। निजामुद्दीन अहमद ने बताया कि 1584 में अकबर ने गंगा और यमुना नदियों के संगम के समीप "झूसी प्याक" में एक शहर और एक किले का निर्माण कराने का आदेश दिया और शिल्पकार के रूप में हिम्मत अली को नियुक्त किया।

तीर्थराज प्रयाग और यहां पर स्नान की महत्ता बताते हुए गोस्वामीतुलसीदास ने श्री रामचरितमानस में वर्णन किया है-

माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई।।

देव-दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहि सकल त्रिबेनी ।।

पूजहिं माधव पद जल जाता। परसि अछैवट हरषहिं गाता ।।

भरद्वाज आश्रम अति पावन। परम रम्य मुनिवर मन भावन ।।

तहां होइ मुनि रिसय समाजा। जाहिं जे मज्जन तीरथ राजा ।। 

जहाँगीर ने अक्षयवट को काटने का एक प्रयास किया जो कि इलाहाबादके किले में बहुत फैल गया था, परन्तु उसका यह प्रयास विफल हुआ। इस पर जहाँगीर ने कहा कि हिन्दुत्व कभी नहीं मरेगा, यह पेड़ इसका चिन्ह है। इस पेड़ का सम्मान तीर्थयात्री बहुत करते हैं परन्तु स्वबलिदान(आत्महत्या) देने की प्रथा आज समाप्त हो गयी है।गंगाजल की महत्ता से प्रभावित होकर मुगल बादशाह औरंगजेब ने बीमारहोने पर गंगाजल मंगवाया था।1665 ई० में टैवर्नियर (फ्रांसीसी यात्री) ने अपने वर्णन में लिखा है कि यह एक बड़ा शहर है। जहां गंगा-यमुना का संगम होता है।

( उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘ कुंभ-2019’ से साभार।) 

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