रतिभान त्रिपाठी
प्रयागराज। केरल से कुंभदर्शन को आए आर. महादेवन गंगा की उत्ताल तरंगों को देखकर मंत्रमुग्ध हैं तो आस्ट्रेलिया के सिडनी से आए जेम्स और उनकी सहयोगी चेल्सा अखाड़ों का वैभव देखकर चकित। संतों की यज्ञशालाओं से उठता हविश का धुआं वातावरण को सुगंधित ही नहीं कर रहा, दिव्यता का अनुभव भी दे रहा है। खाकचौक में धूनी रमाये संतों की टोली और संगम के पावन जल में खड़े होकर जटा-जूट संवारते युवा संतों का उल्लास इस बात का साक्षी है कि कुंभ भौतिकता से इतर दिव्यता और आध्यात्मिकता से सराबोर है।
सागर मंथन से निकले हलाहल को पीकर नीलकंठ हुए महादेव जैसी भस्म रमाये नागाओं का समूह जब यहां निकल पड़ता है तो ऐसा लगता है मानो साक्षात? महादेव अपने गणों के साथ संगम की रेती पर रमण कर रहे हों। दंडी संन्यासियों के समूह समष्टि की समरसता के प्रत्यक्ष स्वरूप दिखते हैं। कुंभ की यह सतरंगी छटा किसी को भी बरबस मुग्ध कर लेती है। यहां गूंजते गीत और कर्णप्रिय संगीत सरस्वती के प्राकट्य का आभास देते हैं। हर-हर गंगे और हर-महादेव का उद्घोष करते स्नानार्थियों के समूह उस अनहद नाद को प्रकट करते दिखते हैं जो निरंतर हमारे भीतर गूंजता रहता है।
त्रिवेणी के जल में पडऩे से सूर्य की रश्मियां हीरे-मोतियों के उजाले को फीका करती दिखती हैं। यहीं वह अनंत ऊर्जा घनीभूत होकर अंतस में भर जाती महसूस होती है। संगम के गहरे जल में खड़े होकर शरीर पर रेणुका (संगम की बलुई मिट्टी) रगड़ते हुए कायाशोधन में लगे साधु को देखकर ऐसा लगता है मानो वह संगम के जलरूपी अमृत की संपूर्ण ऊर्जा अपने में समाहित कर लेने का आतुर हो। डमरूधारी साधुओं ने अपनी जटाओं में गेंदे की मालाएं ऐसे सजा रखी हैं मानों स्वयं नारद, याज्ञवल्क्य और भारद्वाज रामकथा सुनने-सुनाने की तैयारी में शृंगार किये बैठे हों। कौपीनधारी संतों के समूह अपनी संपूर्ण चेतना के साथ यहां विद्यमान हैं तो भक्तिरस में सराबोर रामलीला और रासलीला के कलाकार अवधी और ब्रज भाषाओं का सम्मेलन सा करते दिखते हैं। तभी अचानक आशा एंड कंपनी के लाउडस्पीकर पर 'चलो कुंभ चलें, प्रयाग चलें का आह्वान करता सुरीला गीत गूंजने लगता है। उस पर कान देने को कई लोग अचानक ठहर जाते हैं। सिर पर गठरी लादे त्रिवेणी रोड से संगम की ओर आते स्नानार्थी ग्रामीण परिवेश का समूचा दृश्य उपस्थित करते हैं तो मेले की चकर्ड प्लेटों वाली सड़कों पर फर्राटा भरती बेशकीमती गाडिय़ां देश की आधुनिकता व शहरी भारत का आभास देती हैं।
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वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश
कुंभ वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश दे रहा है। अरैल में सोमेश्वर महादेव के आगे संगम किनारे लहराते 72 देशों के राष्ट्रध्वज इसके साक्षी हैं कि कुंभ में संपूर्ण विश्व की संस्कृतियां समाहित होने का आतुर हैं। वह साक्षी बनना चाहती हैं उन देवताओं की, जो कुंभ का अमृत पान करने को देवलोक से धराधाम में आ चुके हैं। साधारण सनातनी की असाधारण आस्था और ज्ञानियों के संगम से निकले विचारों का संदेश देता यह कुंभ अपनी कहानी स्वयं कह रहा है। कुंभ मेले के लिए प्रयागराज में प्रवेश करते ही आपको शहर नया-नया दिखने लगता है। महर्षि भारद्वाज की 30 फिट ऊंची भव्य प्रतिमा इस बात की साक्षी है कि यह नगर पहले भारद्वाज की तपोभूमि और कथाभूमि है तब किसी अन्य की विरासत। सजे चौराहे और उनमें हरित गमले बताते हैं कि यहां महाउत्सव है। इमारतों की दीवारें कुंभ की पुरातनगाथा खुद कहती दिख रही हैं। हजारों प्रहरी सुरक्षा बोध कराते हैं। लोगों को रास्ता बताते और मदद करते स्वयंसेवक इस बात का जीवंत प्रमाण हैं कि परोपकार का माध्यम और संदेशप्रदाता है कुंभ।
लहरा रही हैं अखाड़ों की ध्वजाएं
अखाड़ा मार्ग पर महानिर्वाणी, निरंजनी, अग्नि, जूना, आवाहन, अटल, आनंद अखाड़ों की ध्वजाएं लहरा रही हैं। यहीं पर निर्वाणी, दिगंबर, निर्मोही अनी अखाड़ों के साथ साथ पंचायती पनया उदासीन, पंचायती बड़ा उदासीन और निर्मल अखाड़ों के भी शिविर हैं, जहां सबके अपने-अपने इष्टदेवों की नित्यप्रति उपासना चल रही है। एक तरफ खालसों में पूजा पाठ और प्रवचन की धूम है तो दूसरी ओर महामंडलेश्वरों से अपने यहां व्यष्टियों (विशिष्ट संतों का भोज) और समष्टियों (सामूहिक भोज) की तैयारियां शुरू कर दी हैं।
अफसरों पर नाराज हो रहे बाबा
कुंभ क्षेत्र में सब कुछ अच्छा ही अच्छा नहीं है। सरकार ने अपना काम तो कर दिया, लेकिन उसके कारिंदे अपनी कला दिखाने से बाज नहीं आ रहे। दंडी बाड़े की अपनी समस्याएं हैं जिनके लिए बूढ़े संत अपने हरकारे भेजते हैं। प्रशासन अनसुनी करता है तो वह खुद मौजूद होते हैं। ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी बताते हैं कि उन्हें जो सुविधाएं पिछले कुंभ मे मिली थीं, प्रशासनिक अफसरों ने उन पर कैंची चला दी। जो देने को कहा, वह दे भी नहीं रहे। अब वह किससे कहें। वह चेतावनी देने से भी बाज नहीं आते हैं कि समस्या दूर करो नहीं तो योगी जी से शिकायत कर देंगे, फिर न कहना। प्रशासन के अफसर हाथ जोड़कर सामने खड़े हो जाते हैं कि महाराज जी, आज ही समाधान हो जाएगा। ऐसे ही अनेक दृश्य यहां देखने को मिल रहे हैं। संतों की शिकायत कई मायने में सही भी दिखती है। कुछ लोगों ने अपनी संस्थाओं के नाम पर प्रशासन से मुफ्त में यहां जमीन और सुविधाएं ले लीं और फिर कुछ धनी बाबाओं को बेच दीं। छानबीन हो तो ऐसे भी तथ्य यहां मिलते हैं यानी पावन क्षेत्र में ठगों का नेटवर्क भी काम कर रहा है।
देखते ही बनती है भव्यता
संतों के शिविरों में उनका वैभव देखते ही बनता है। ऊंचे सिंहासन, कीमती मालाएं, महंगे झूमर और सोफे भी भारतीय अध्यात्म जगत के वैभव का एक पहलू हैं। जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि का शिविर देखें तो ज्ञान और धन दोनों का वैभव एक साथ यहां मिलेगा। ऐसे ही निम्बार्काचार्य, मध्वाचार्य, रामानंदाचार्य, रामानुजाचार्य, समेत अनेक संतों के आश्रम यहां वैभव की गवाही दे रहे हैं। अरैल क्षेत्र में स्वामी निदानंद सरस्वती मुनि का परमार्थ आश्रम शिविर अपने आप में वैश्विकता की झलक देता है। यहां देश विदेशी संतों और पर्यटकों की खासी जमात है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संगम में पूजन कर यहीं आकर अपना संदेश दिया है। स्वामी चिदानंद मुनि आये दिन किसी न किसी वीवीआईपी को बुलाकर गंगा आरती कराते हैं। वह अपने किसी न किसी कार्यक्रम के माध्यम से मेले में चर्चा के केंद्र में बने हुए हैं।
सबको जोड़ रहा मेला
कुंभ मेले में कुंभ के अनेक आयाम हैं। यहां स्वच्छता का संदेश गूंजता है तो उसे अमल में लाते स्वच्छाग्रही भी लाल सड़क से लेकर मुक्ति मार्ग और मोरी मार्ग से लेकर अरैल तक घूम रहे हैं। गंगा में पुष्पार्पण करते भक्त हैं तो उन पुष्पों को फौरन अपने जाल में छान लेने वाले किशोर भी ताकि गंगाजल निर्मल रहे। हवनकुंडों में अगर उत्तर का अनाज हविश के रूप में है तो दक्षिण के चंदन की समिधा भी है। समिधा प्रज्जवलन से उठी अग्निशिखाएं त्यागवृत्ति की संदेशवाहक के रूप में हैं। कुंभ दक्षिण से उत्तर को और पूरब से पश्चिम को जोड़ रहा है। यहां असम के व्यंजन हैं तो गुजरात के ढोकला का भी भोग लग रहा है। तमिलनाडु के दोसा और इडली खाने को पंजाब के रजिंदर रेस्टोरेंट में आधा घंटे से भी ज्यादा इंतजार करने को तैयार हैं।